इस माह- |
अनुभूति में-
जगदीश
पंकज,
डॉ शिवजी
श्रीवास्तव,
कल्पना
मनोरमा, शकुंतला
बहादुर, गीता हिजरानी अगीरा और भावेशचंद जायसवाल की रचनाएँ। |
कलम गही नहिं
हाथ- |
दुबई में सुपर-रिच लोग किस-किस चीज की सवारी करते हैं यह देखकर आँखें फटी
रह सकती हैं, दिल में तूफान शुरू हो सकता है, और हाँ ...आगे पढ़ें |
घर-परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं,
हर मौसम में स्वादिष्ट-
सफेद
करी में बेक सब्जियाँ। |
बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर
फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है-
पोर्टुलका की देखभाल। |
स्वाद और स्वास्थ्य
में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है-
च्युंइंग
गम
के विषय में। |
जानकारी और मनोरंजन में |
गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं
कि सितंबर महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म
लिया? ...विस्तार से
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वे पुराने धारावाहिक-
जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी
भी याद करते हैं इस शृंखला में जानें
फौजी
के विषय में। |
नवगीत संग्रहों
और संकलनों से परिचय की शृंखला में- शुभम श्रीवास्तव ओम का नवगीत संग्रह-
शोक गीतों के समय में- ऋताशेखर मधु की कलम से। |
वर्ग
पहेली-३५३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से |
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हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य-और-संस्कृति-में |
समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
भारत से रंजना गुप्ता की कहानी-
तर्पण
अट्ठारह सितम्बर दो हजार पाँच की
वह पितृ विसर्जन की अमावस्या की रात थी, मन अनायास इतना विकल
था, कि रात भर करवटें बदलती रही, अज्ञात आशंका हृदय को रह रह
कर आंदोलित कर रही थी कुछ ऐसा था, जो वातावरण को करुण व
मार्मिक बना रहा था। पुन: पुन: बचपन की तमाम यादें मन को कचोट
रही थी! पर यह सारा परिदृश्य मेरी, सोचने समझने की शक्ति से
परे हो रहा था, कुछ घड़ी बाद धीरे धीरे ही सही नींद ने अपने
पंख फैलाने शुरू कर दिए फिर कब सो गई, पता नहीं लगा। मुझे सुबह
जल्दी उठ कर अखबार पढने की आदत है! नित्य की भाँति दरवाजा खोल
कर, अखबार के पन्ने पलट ही रही थी, कि तभी अन्दर के पृष्ठों पर
एक विज्ञापन देख कर निगाह ठहर गई, रेलवे स्टेशन की बेंच पर
पिछली रात एक लावारिस लाश मिली है, जो पूरी तरह से पहचान में
नहीं आ रही है, सूखी काली त्वचा शरीर से चिपक चुकी है, कंकाल
मात्र शव की शिनाख्त के लिए यह एक महज सरकारी विज्ञप्ति थी, मन
अशांत हो उठा, कौन हो सकता है? किस बेचारे की इतनी दर्दनाक मौत
हुई? लगता है पेट में कई दिनों से अन्न का एक दाना भी नहीं गया
था। आगे-
***
सुधा भार्गव की लघुकथा
कीमत
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दृष्टिकोण में आचार्य
बलवंत से जानें
हिंदी का
महत्व
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पर्व परिचय में मालती शर्मा का
आलेख
किशोरियों का
अश्विन पर्व भोंडला
***
आज-सिरहाने-में-राम
मूरत-राही-के-लघुकथा-संग्रह-
'भूख
से भरा पेट' पर नमिता सचान सुंदर
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पिछले अंकों से- |
सरस दरबारी की लघुकथा
सबसे प्रिय चीज
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पर्व-परिचय में आनंद
शर्मा
से जानें
बुल्गारिया के रक्षाबंधन बाबा मार्ता के विषय में
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कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
गणेश पाइन से परिचय
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डॉ. शिवेन कृष्ण रैणा का आलेख
कश्मीर के कृष्ण-भक्त
कवि परमानंद दास
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समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
यूएसए से
सविता बाला नायक की कहानी-
वीक एंड
“लोग तो अमेरिका आने को तरसते
हैं और तू यहाँ से जाने का कह रहा है!”
“हाँ, कह रहा हूँ! जिनको अच्छा लगता है वे रहें यहाँ । मुझे
अच्छा नहीं लगा इस लिए मुझे तो अब इंडिया वापिस जाना ही है!”
“इंडिया में है क्या? यहाँ कितने आराम हैं। इंडिया में नौकरी
के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। पर यहाँ तो आराम से कोई न कोई ढँग
का काम मिल ही जाता है।”
“तो ठीक है न, तू रह यहाँ!
“अच्छा देख, यहाँ जब दिल किया वीकेंड में कहीं भी निकल जाओ,
दूसरे शहर तक घूमने चले जाओ, कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं!
कितनी आज़ादी महसूस होती है। क्या तुम इंडिया में यह सब इतने
आराम से कर पाते थे?”
“यार, मैंने तो यह देखा कि पिछले महीने मेरे बच्चे की तबियत
इतनी खराब हुई कि जान पर बन आई। घर में बच्चे को देखने के लिए
बस मैं और मेरी बीवी थे, कोई पूछने तक नहीं आया! नहीं रहना
मुझे ऐसी जगह जहाँ मुझे ऐसा अकेलापन लगे।
आगे-
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