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लघु-कथा

लघुकथाओं के क्रम में इस माह प्रस्तुत है
सुधा भार्गव की लघुकथा- कीमत


पिता की मृत्यु के बाद पाँच वर्षों से महक भारत नहीं गई थी। इस वर्ष उसका बड़ा भाई बहुत बुला रहा था। भाभी के भी कई बार तकाजे आ चुके थे। इसलिए वह अपने को रोक न पाई। भतीजे-भतीजी और भाभी के लिए ढेर सी सौगातें ले लीं। समझ नहीं आ रहा था, भाई के लिए क्या ले? कुछ लेता भी तो नही था।कहता–‘तुझे कुछ देना ही है तो हमेशा अपना प्यार देती रहना।’

बहन के आने से पहले ही भाई सब सुविधाएँ जुटाने में लग गया। जानता था, लंदन में लौकी, पपीता बहुत मँहगे मिलते हैं। और आम! आम की तो बात आते ही न जाने वह कहाँ खो गया । “आम की तो बहना दीवानी है। बचपन में वह लपककर कैसे मेरी गुठली छीन लेती थी । चूसती रहती जब तक उसकी हड्डियाँ न दिखाई दे जाये। आम मिलने पर भी वहाँ कहाँ भरपेट खा पाती होगी ।“ आम भी उसने पहले से ही खरीदकर घर में रख लिए। हर एक पर बहन का नाम ही लिखा था।

“गुनी, महक गोलगप्पे, भेलपूरी बड़े शौक से खाती हैं, उसकी तैयारी कर ली? और हाँ, समोसे भी अभी बनाकर रख दे। जब वह आ जाएगी तब खूब बातें करेंगे, वरना तू रसोई में ही घुसी रहेगी।`` आफिस से आते ही भाई बड़े उत्साह से अपनी पत्नी से बोला।
“ओह महक के भइया,पहले से बना दिया तो सब खराब हो जाएगा--मुझे भी अपनी ननदबाई की खातिरदारी करनी आती है! आप चिंता न करो।” गुनी, बहन के प्रति अपने पति की भावनाओं को महसूस कर मुस्करा दी।

बहन आई। भाई के आँगन में चिड़ियाँ चहक उठीं। रातें दिन में बदल गईं। बातों का सिलसिला शुरू होता तो ननद-भावज को पता ही नहीं लगता रात कब गुजर गई। भाई ने भी तो आफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले रखी थी। जब देखो बहन के इर्दगिर्द घूमता रहता। कभी कहता –“महक दो गोलगप्पे और खा ले।“ कभी कहता-“अरे मैं आम काटता हूँ तू खाती जा।“ उस का वश चलता तो जहान की खुशियाँ बहन के चरणों में रख देता।

महक के जाने का समय आ गया, उसे अपने बेटे से मिलने बंबई भी जाना था। उससे मिलने को बेताब थी। लरजते आँसुओं को पलकों में छिपाए भाई ने बहन को विदा किया। यादों को दिल में समाये, मिठाई का पिटारा बगल में दबाये महक ट्रेन में बैठ गई। वह सारे रास्ते मिठाई की प्यार भरी खुशबू में डूबी रही। उसके लिए तो वह अनमोल थी जो दुनिया के किसी कोने में नहीं मिल सकती थी।

स्टेशन पर बेटे ने कार भेज दी थी। सुविधा से वह बेटे के घर पहुँच गई।
शाम घिर आई ,शानदार बंगले में महक , बहू के साथ बैठी बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। लंबा-चौड़ा व्यापार था, धन की कोई कमी नहीं, पर बेटा धन कमाने की मशीन बन गया था। वह काफी रात बीते आया। कुशल क्षेम पूछने के बाद बोला–“माँ, मामा ने मेरे लिए क्या भेजा है?”
“बेटा, मिठाई भेजी है। बड़ी ही स्वादिष्ट है, खाना खाने के बाद खा लेना, या पहले खा ले।”
“उँह! मिठाई भी कोई खाता है आजकल? तुम तो जानती हो सारी मिठाई नौकरों के पेट में जाती है, फिर क्यों लायींॽ”
“बेटा, तुम नहीं समझ सकोगे। इनकी कीमत आँकने के लिए जो आँखें चाहिए वे तुम्हारे पास नहीं हैं।’’

१ सितंबर २०२२

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