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१. १. २०२२

इस माह-

अनुभूति में- 1
सर्दियों के मौसम में कोहरे के विभिन्न आयामों को समर्पित, अनेक रचनाकारों द्वारा रची, ढेर-सी रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

पिछले कुछ वर्षों से अनेक व्यस्तताओं के चलते यह स्तंभ रुक गया था।  इसका अपना एक संवाद था, नये साल में आशा है फिर से बन सकेगा।...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल सब्जियों के लिये करी-विधियों की शृंखला में प्रस्तुत कर रही हैं- काजूकरी वाले पनीर

बागबानी में- बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- इग्जोरा की रंगीन बहार

स्वाद और स्वास्थ्य में- स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है- माइक्रोवेव किये जाने वाले पॉपकार्न के विषय में।

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि जनवरी  के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

वे पुराने धारावाहिक- जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी भी बार-बार याद करते हैं इस शृंखला में जानें हम लोग के विषय में।

वर्ग पहेली-३४५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य और संस्कृति-

समकालीन कहानियों में इस सप्ताह प्रस्तुत है
स्वाती तिवारी की कहानी- मृगतृष्णा

आसमान छूने की मेरी अभिलाषा ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन भी खींच ली, पर तब ... मैं जमीन को देखती ही कहाँ थी। मैं तो ऊपर टँगे आसमान को ताकते हुए अपना लक्ष्य पाना चाहती थी। तब अगर कुछ दिखाई देता था तो वह था केवल दूर-दूर तक फैला नीला आसमान, जहाँ उड़ा तो जा सकता है, पर उसका स्पर्श नहीं किया जा सकता है। ऊँचाइयों का कब स्पर्श हुआ है जब हाथ उठाओं वे और ऊँची उठ जाती हैं--मरीचिका की तरह। एक भ्रम की तरह आसमान जो नीला दिखता है पर कैसा है, कौन जानता है? जमीन कठोर हो, चाहे ऊबड़-खाबड़, पर उसका स्पर्श हमें धरातल देता है, पैरों को खड़े रहने का आधार। पर यह अहसास तब कहाँ था? मैं तो जमीन के इस ठोस स्पर्श को पहचान ही नहीं पाई। अंदर-ही-अंदर आज यह महसूस होता है कि जमीन से सदा जुड़े रहना ही आदमी को जीवन के स्पंदन का सुकून दे सकता है। आज दस वर्षों बाद उसी शहर में लौटना पड़ रहा है, याद है मुझे वह भी नए साल की शुरुवात का दिन था। अरुण नया साल खूब उत्साह और उल्लास के साथ जश्न आगे...
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राजा चौरसिया का व्यंग्य
नववर्ष की हार्दिक शुभकामना

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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
संक्रांति और पतंगों की उड़ान

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पंडित आशुतोष की पुराणकथा
श्रीराम की पतंग जो स्वर्ग तक गयी
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पुनर्पाठ में डॉ.गणेशकुमार पाठक
मकर संक्रांति एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पिछले अंकों के नववर्ष विशेषांकों से-

कहानियों में-

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शिमला क्लब की एक शाम
- राजकुमार राकेश

लघुकथाओं में-

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गरमाहट
- त्रिलोचना कौर

व्यंग्य में—

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नया साल
- हरिशंकर परसाईं

यात्रा विवरण में-

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उजाले की चलती दौड़ती लकीर
- गोविंद मिश्र

निबंध में—

bullet अनंत काल में एक वर्ष का अर्थ
- डॉ. सुभाष राय

ललित निबंध में-

bullet नव वर्ष संकल्प की आँच
- परिचय दास

दृष्टिकोण में—

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नए साल में संकल्प लें
- रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु'

पर्व परिचय में-

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अफ्रीकी नव वर्ष क्वांजा
- रचना श्रीवास्तव

फुलवारी में—

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बच्चों के लिये कहानी: नये साल का उत्सव
-
इला प्रवीण

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यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : रतन मूलचंदानी

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