साधो, बीता साल गुज़र गया और नया साल शुरू हो गया। नए
साल के शुरू में शुभकामना देने की परंपरा है। मैं तुम्हें शुभकामना देने में हिचकता
हूँ। बात यह है साधो कि कोई शुभकामना अब कारगर नहीं होती। मान लो कि मैं कहूँ कि
ईश्वर नया वर्ष तुम्हारे लिए सुखदाई करें तो तुम्हें दुख देने वाले ईश्वर से ही
लड़ने लगेंगे। ये कहेंगे, देखते हैं, तुम्हें ईश्वर कैसे सुख देता है। साधो, कुछ
लोग ईश्वर से भी बड़े हो गए हैं। ईश्वर तुम्हें सुख देने की योजना बनाता है, तो ये
लोग उसे काटकर दुख देने की योजना बना लेते हैं।
साधो, मैं कैसे कहूँ कि यह वर्ष तुम्हें सुख दे।
सुख देनेवाला न वर्ष है, न मैं हूँ और न ईश्वर है। सुख और दुख देनेवाले दूसरे हैं।
मैं कहूँ कि तुम्हें सुख हो। ईश्वर भी मेरी बात मानकर अच्छी फसल दे! मगर फसल आते ही
व्यापारी अनाज दबा दें और कीमतें बढ़ा दें तो तुम्हें सुख नहीं होगा। इसलिए
तुम्हारे सुख की कामना व्यर्थ है।
साधो, तुम्हें याद होगा कि नए साल के आरंभ में भी
मैंने तुम्हें शुभकामना दी थी। मगर पूरा साल तुम्हारे लिए दुख में बीता। हर महीने
कीमतें बढ़ती गईं। तुम चीख-पुकार करते थे तो सरकार व्यापारियों को धमकी दे देती थी।
ज़्यादा शोर मचाओ तो दो-चार व्यापारी गिरफ्तार कर लेते हैं। अब तो तुम्हारा पेट भर
गया होगा। साधो, वह पता नहीं कौन-सा आर्थिक नियम है कि ज्यों-ज्यों व्यापारी
गिरफ्तार होते गए, त्यों-त्यों कीमतें बढ़ती गईं। मुझे तो ऐसा लगता है, मुनाफ़ाख़ोर
को गिरफ्तार करना एक पाप है। इसी पाप के कारण कीमतें बढ़ीं।
साधो, मेरी कामना अक्सर उल्टी हो जाती है। पिछले
साल एक सरकारी कर्मचारी के लिए मैंने सुख की कामना की थी। नतीजा यह हुआ कि वह घूस
खाने लगा। उसे मेरी इच्छा पूरी करनी थी और घूस खाए बिना कोई सरकारी कर्मचारी सुखी
हो नहीं सकता। साधो, साल-भर तो वह सुखी रहा मगर दिसंबर में गिरफ्तार हो गया। एक
विद्यार्थी से मैंने कहा था कि नया वर्ष सुखमय हो, तो उसने फर्स्ट क्लास पाने के
लिए परीक्षा में नकल कर ली। एक नेता से मैंने कह दिया था कि इस वर्ष आपका जीवन
सुखमय हो, तो वह संस्था का पैसा खा गया।
साधो, एक ईमानदार व्यापारी से मैंने कहा था कि नया
वर्ष सुखमय हो तो वह उसी दिन से मुनाफ़ाखोरी करने लगा। एक पत्रकार के लिए मैंने
शुभकामना व्यक्त की तो वह 'ब्लैकमेलिंग' करने लगा। एक लेखक से मैंने कह दिया कि नया
वर्ष तुम्हारे लिए सुखदाई हो तो वह लिखना छोड़कर रेडियो पर नौकर हो गया। एक पहलवान
से मैंने कह दिया कि बहादुर तुम्हारा नया साल सुखमय हो तो वह जुए का फड़ चलाने लगा।
एक अध्यापक को मैंने शुभकामना दी तो वह पैसे लेकर लड़कों को पास कराने लगा। एक
नवयुवती के लिए सुख कामना की तो वह अपने प्रेमी के साथ भाग गई। एक एम.एल.ए. के लिए
मैंने शुभकामना व्यक्त कर दी तो वह पुलिस से मिलकर घूस खाने लगा।
साधो, मुझे तुम्हें नए वर्ष की शुभकामना देने में
इसीलिए डर लगता है। एक तो ईमानदार आदमी को सुख देना किसी के वश की बात नहीं हैं।
ईश्वर तक के नहीं। मेरे कह देने से कुछ नहीं होगा। अगर मेरी शुभकामना सही होना ही
है, तो तुम साधुपन छोड़कर न जाने क्या-क्या करने लगेंगे। तुम गांजा-शराब का
चोर-व्यापार करने लगोगे। आश्रम में गांजा पिलाओगे और जुआ खिलाओगे। लड़कियाँ भगाकर
बेचोगे। तुम चोरी करने लगोगे। तुम कोई संस्था खोलकर चंदा खाने लगोगे। साधो, सीधे
रास्ते से इस व्यवस्था में कोई सुखी नहीं होता। तुम टेढ़े रास्ते अपनाकर सुखी होने
लगोगे। साधो, इसी डर से मैं तुम्हें नए वर्ष के लिए कोई शुभकामना नहीं देता। कहीं
तुम सुखी होने की कोशिश मत करने लगना।
१ जनवरी
२००८ |