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अफ्रीकी
नव वर्ष क्वांजा
-रचना
श्रीवास्तव
दुनिया के हर कोने में भिन्न भिन्न तरह के उत्सव और
त्यौहार मनाये जाते हैं जिनकी अपनी अपनी विशेषता होती
है। भिन्न होते हुए भी इन उत्सवों का मुख्य उद्देश्य
होता है परिवार को एक साथ करना और खुशियाँ मनाना। ये
मोहक त्यौहार ही हैं जो भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में
रंगों के कुछ छींटे बिखेर देते हैं और लोग थकान का
चोला उतार खुशियों के नए परिधान धारण कर लेते हैं।
बहुत से त्यौहार ऐसे हैं जिनको कैसे मनाया जाता है
क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी सभी को होती हैं
लेकिन कुछ पर्वों के बारे में हम कम जानते हैं।
क्रिसमस और हनूका के साथ ही मनाया जाने वाला ऐसा ही एक
पर्व है क्वांज़ा। अपेक्षाकृत नया पर्व क्वांज़ा
अमेरिका में मुख्यतः अफ्रीकी मूल के लोगों द्वारा
मनाया जाता है। एक सप्ताह चलने वाला यह उत्सव क्रिसमस
के अगले दिन (२६ दिसम्बर) से आरम्भ होकर नववर्ष (१
जनवरी) तक चलता है। हनूका की ही तरह इस पर्व में भी
मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं परन्तु उनकी संख्या सात
होती है। क्वांज़ा पर्व का नाम स्वाहिली भाषा के
वाक्यांश "माटुंडा या क्वांज़ा" अर्थात "उपज का फल" से
लिया गया था और इसकी जड़ें अश्वेत राष्ट्र आन्दोलन से
जुडी थीं। यह उत्सव कैलिफोर्निया राजकीय विश्वविद्यालय
(लॉंग बीच) के "मौलाना कैरेंगा" द्वारा १९६६ के
दिसम्बर में आरम्भ किया गया था। अमेरिका के इतिहास में
अफ्रीकी मूल के लोगों का यह पहला अलग उत्सव था, शायद
यही मौलाना कैरेंगा का उद्देश्य भी था।
मौलाना कैरेंगा के अनुसार इस त्यौहार को मनाने के
पीछे मुख्यतः तीन उद्देश्य थे- पहला अफ़्रीकी संस्कृति
को पुनः स्थापित करना और इसकी पुनः पुष्टि करना दूसरा
निरंतर सामुदायिक उत्सव मनाकर अफ्रीकन-अमेरिकन लोगों
के बीच के संबन्धों को पुनः पुष्ट करते हुए सुदृढ़
बनाया जाए और तीसरा नगुजो सबा (सात सिद्धांतों) का
सबसे परिचय हो जाए।
नगुजो सबा या सात सिद्धांत इस प्रकार हैं- उमोज़ा
(एकता), कुजिचागुलिया (आत्मनिर्णय), उजिमा (साथ काम और
ज़िम्मेदारी), उजामा (आर्थिक सहकारिता), निया (
उद्देश्य), कुउम्बा (रचनात्मकता) तथा इमानी (विश्वास
या श्रद्धा)। क्वान्जा पर्व इन्हीं सात सिद्धांतों पर
आधारित है। इस्लाम को मानने वाले मौलाना ने ईसाइयत को
केवल गोरों का धर्म बताया था। मौलाना ने आरम्भ में
क्वांज़ा को क्रिसमस के अश्वेत विकल्प के रूप में
प्रस्तुत करते समय प्रभु यीशु के बारे में भी काफी कुछ
कहा था। परंतु समय के साथ यह अलगाव बीती बात बन चुका
है।
इस उत्सव को मनाने के लिये घर को रंग बिरंगे अफ्रीकन
कपड़े से सजाया जाता है जिसे केनते या अकन केनते कहते
हैं इस कपड़े को सिल्क और सूती धागे के मिश्रण से
बनाया जाता है इसमें सात रंग होते हैं और उन सभी रंगों
का अपना मतलब होता है। इस अवसर पर महिलाएँ विशेष
परिधान धारण करती है जिसको कफ्तान कहते हैं इस समय जब
लोग मिलते हैं तो कहते हैं "जोयोउस क्वांज़ा" सात दिन
चलने वाले इस उत्सव में मेज पर कुछ विशेष सामग्री रखी
जाती है जिसे क्वांज़ा प्रतीक कहते हैं इन प्रतीकों
में शामिल है मजाव (फसल), जो अफ्रीका के फसल काटने के
समय को धूमधाम से मनाने और साथ साथ काम करने के ईनाम
का प्रतीक है, मकेका (चटाई) यह अफ्रीकन परंपरा और
इतिहास का प्रतीक है और इसीलिये यह वह अधार है जिस पर
अफ्रीकी लोग खड़े हैं, मुहिंदी (भुट्टा) यह बच्चों का
और उस भविष्य का प्रतीक है जो इन बच्चों में समाहित
है, मिशुमा सबा (सात मोमबत्तियाँ) ये नगुजो सबा यानी
की उन सात सिद्धांतों का प्रतीक है जिन पर क्वांजा
उत्सव आधारित है। किकोम्बे चा उमोजा (एकता का प्याला)
इन सिद्धांतों की बुनियाद और एकता का प्रतीक है,
ज़वादी (उपहार) अभिभावक की मेहनत, प्रेम और
बच्चों के द्वारा की गई प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
क्वांज़ा प्रतीकों के साथ 'किनारा' को भी सजाया जाता
है शब्द किनारा स्वाहिली भाषा का है जिसका मतलब होता
है मोमबत्ती रखने वाला।
क्वांज़ा उत्सव में सात मोमबत्ती किनारा में लगाई जाती
है - बाईं तरफ तीन लाल, दाहिनी तरफ तीन हरी और बीच में
एक काले रंग की मोमबत्ती लगाई जाती है लाल, हरा और
काला छुट्टियों के प्रतीकात्मक रंग है हफ्ते भर किनारा
पर नई मोमबत्ती लगाई जाती है मध्य भाग में रखी काली
मोमबत्ती पहले जलाई जाती है फिर सबसे बाहर की लाल
मोमबत्ती से प्रारंभ करते हुए क्रमशः एक लाल एक हरी
मोमबत्ती जलाई जाती है इसी तरह से क्वन्जा का प्रत्येक
दिन सात सिद्धांतों में से एक-एक सिद्धांत को समर्पित
होता है। हर रंग की मोमबत्ती का भी अपना एक मतलब होता
है काली मोमबत्ती अफ्रीकन जाति का प्रतीक है लाल
मोमबत्ती अफ्रीकन क्रान्ति की प्रतीक है और हरी
मोमबत्ती अफ्रीका की धरती का प्रतीक है।
इस उत्सव के दिन सावहिली में "हबारी गानी" कह कर
संबोधित करते हैं इसका मतलब होता है "नया क्या है?"
इस उत्सव को धीरे धीरे इतनी सफलता मिली कि यूनाईटेड
स्टेट पोस्टल सर्विसेज ने २२ अक्टूबर, १९९७ में
क्वांज़ा डाक टिकट जारी किया था जिस पर सिन्थिया सैंट
जेम्स द्वारा बनाई गई कलाकृति अंकित थी। २००४ में
डेनियल मिन्टर के द्वारा रूपांकित किया गया दूसरा
क्वांज़ा डाक टिकट जारी किया गया था। २००९ में माया
अन्जेलो ने वृत्तचित्र द ब्लैक कैंडल बनाया जो
क्वांज़ा पर्व के विषय में था।
नेशनल रिटेल फाउनडेशन के द्वारा किये गए एक अनुसन्धान
के अनुसार सन २००४ में लगभग ५० लाख लोगों ने क्वांज़ा
मनाया था २००६ में पौने तीन करोड़ लोगों ने क्वांज़ा
पर्व को मनाया। सन २००९ में क्वन्जा पर्व मनाने वालों
की संख्या बढ़ कर तीन करोड़ हो गई थी। इस पर्व को
कनाडा में अश्वेत कनेडियन भी उसी तरह मनाने लगे हैं
जिस तरह अमेरिका में लोग मनाते हैं कनाडा की एक संस्था
लेंग्वेज पोर्टल के अनुसार इस पर्व को इतनी प्रसिद्धि
मिली कि अब ये पर्व ग्रेट ब्रिटेन, फ़्रांस, जमैका और
ब्राज़ील में भी मनाया जाता है लेकिन इन देशों से
अधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की गई है।
ब्राज़ील में क्वांजा शब्द कुछ संस्थाओं के द्वारा
ब्लेक अवेयरनेस डे त्यौहार के पर्यायवाची के रूप में
भी प्रयोग किया जाता है।
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