अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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लेखकों से
 १. २. २०१९

इस माह-

अनुभूति में-
आचार्य श्रीधर, अभिषेक कुमार सिंह, दिगंबर नसवा, शशि पुरवार और कुमार रवीन्द्र की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह सर्दी के मौसम का अंतिम आनंद लेते हुए हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं - बाजरे की मीठी पूरी

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- २- स्वस्थ भोजन का चुनाव करें और अपना खाना स्वयं पकाएँ।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं। सुरक्षा और सुझाव-

अभिरुचि में- विभिन्न देशों के व्यक्तिगत डाक-टिकटों की जानकारी से सम्बंधित प्रशांत पंड्या का आलेख- डाक टिकटों पर आपकी फ़ोटो

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (फरवरी) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- आचार्य संजीव वर्मा सलिल की कलम से हरिहर झा के नवगीत संग्रह- ''फुसफुसाते वृक्ष कान में'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३१०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में यूएसए से सुधा ओम ढीगरा की कहानी- तलाश जारी है

वह कई दिनों से कहानी की तलाश में घूम रहा है। शहर का चप्पा-चप्पा, कोना-कोना उसने छान मारा। पर उसे कहानी कहीं भी नहीं मिली। अंत में थक हार कर वह गोल्डन ट्री वैली पार्क में एक बेंच पर आकर बैठ गया। गुनगुना मौसम है और सामने से धूप आ रही है। उसने आँखों पर धूप का चश्मा चढ़ाया और बेंच से अपनी पीठ सटा कर धूप का आनंद लेने लगा। यहाँ के जीवन की भाग दौड़ में उसे कभी-कभार ही ऐसा मौका मिलता है। तभी उसने देखा, अधेड़ उम्र के दो भारतीय अपनी-अपनी कुर्सी लेकर वहाँ आए। उसकी बेंच से थोड़ी दूरी पर खाली जगह है, उन्होंने वहीं अपनी कुर्सियाँ खोल कर रख दीं। फिर वे एक फ़ोल्डिंग मेज ले आए, उसे खोला और उन कुर्सियों को मेज के दोनों तरफ रख दिया। उसके बाद वे शतरंज ले आए और उसे मेज पर सजा दिया। वह कनखियों से उन्हें देख रहा है...अंत में वे अपनी-अपनी थर्मस और गिलास ले कर आए। उन्होंने अपनी थर्मसें एक दूसरे के आमने-सामने टिका दीं और साथ ही फोम के गिलास भी, जिन्हें प्रयोग के बाद फैंका जा सकता है। थकान और धूप से.. आगे-
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प्रेरणा गुप्ता की
लघुकथा- नयी काम वाली बाई
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सुभाष वसिष्ठ का रचना प्रसंग
नवगीतों में मध्यम वर्ग का संघर्ष
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भारतेन्दु मिश्र की कलम से श्रद्धांजलि
अवधी मुहावरों के गीतकार - कुमार रवीन्द्र
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पुनर्पाठ में कृष्णा सोबती का संस्मरण
फोन बजता रहा...

पिछले अंक-में--- नव वर्ष के अवसर पर

त्रिलोचना कौर की
लघुकथा- गरमाहट
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परिचय दास का ललित निबंध-
नव वर्ष - संकल्प की आँच
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अपर्णा द्विवेदी का आलेख
नव वर्ष के विभिन्न रूप
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पुनर्पाठ में बृजेश कुमार शुक्ला का आलेख
नई कविता में नया साल
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भावना सक्सेना की कहानी- नयी भोर

कई दिन ऐसे बीतते हैं जैसे कि एक दिन में सैकड़ों जिंदगियाँ जी आए हैं, लेकिन फिर भी कोई एक काम रह जाता है अधूरा और वह भी ऐसा जिसे आप सबसे ज्यादा मन से करना चाह रहे थे। सुबह उठते ही जिसे सोचा लेकिन वही नहीं हो पाता। पिछले दो दिन से वह उर्मिला काकी से मिलने और उन्हें विद्यालय के नववर्ष के उत्सव का निमंत्रण देने जाने की... आगे-

और
लकी राजीव की कहानी मोह के धागे

अलार्म बंद करके मैं रजाई में दुबकी रही! सवा छ: ही था, आधा घंटा और सही। वैसे भी टहलने तो जाना नहीं था...पार्क याद आते ही मन खिन्न हो गया! कल तक तक तो केवल यही वजह ही रह गई थी, खुश रहने की, अब वो भी खत्म हो चुकी थी। सामने वाले घरों की सफेद, पीली बत्तियाँ जल चुकी थीं। एक-एक करके सब ताला लगाकर पार्क की ओर... आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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