इस माह- |
अनुभूति
में-
1
चित्र कविता के अंतर्गत दिये गए चित्र पर अनक रचनाकारों की
भावभीनी रचनाएँ... |
-- घर परिवार में |
रसोईघर में- इस
माह गरमी के मौसम को शीतल बनाते हुए, हमारी रसोई संपादक
शुचि प्रस्तुत कर रही हैं -
गुलाब का शर्बत |
स्वास्थ्य
में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के
२७ उपाय-
२१-
फास्टफूड को ना ना ना |
बागबानी-
वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो
सकते हैं। जानें-
६-
शुक्र के लिये गूलर। |
भारत के
विचित्र गाँव-
जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं-
कसोल जहाँ इजराइली बसते हैं। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस माह (जून) की विभिन्न तिथियों में) कितने
गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया?
...विस्तार
से
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संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत
है- शशिकांत गीते की कलम से मयंक श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह-
''सहमा हुआ घर'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- ३०२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
इस माह
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यूएसए से अनिलप्रभा कुमार
की कहानी-
वायवी
वह किताब आँखों के सामने रखकर
बैठी रही। न आँखें पढ़ने की कोशिश कर रही थीं और न ही दिमाग
समझने की। मन पता नहीं कहाँ-कहाँ की अन्धी सुरंगों मे भटक कर
लौट आता है। यहीं इसी घर में, जहाँ भविष्य की दिशा बताने वाला
सूरज कभी चढ़ता ही नहीं। काल-कोठरी शायद इससे भी बदतर होती
होगी। अँधेरी, छोटी सी जगह, कोई बात करने वाला नहीं, भरपेट
खाना भी शायद नहीं मिलता होगा और दरवाजे पर ताला- पहरा। बापू
ऐसी ही किसी जगह पर साँसें लेता होगा जैसे मैं और माँ इस
छोटी-सी कोठरी में अबोले साँसें लेती हैं। बापू भी शायद याद
करता होगा, माँ को, मुझे। जैसे माँ करती है, साँस-साँस में,
बिन बोले, बिन कहे।
ज़िन्दगी इस घर में दिन, हफ़्तों, महीनों और सालों के हिसाब से
नहीं बीतती। साँसों के हिसाब से बीतती है। यह साँस, अगली साँस,
फिर एक और साँस। अटकी हुई साँसें । चलती हैं पर रुक कर, पीछे
मुड़-मुड़ कर देखती हुईं। पीछे छूटा वक्त शायद आकर हाथ पकड़ ले और
साँसें फिर सम पर आ जाएँ। बाकी तो सब कुछ असमतल है ही।...आगे-
अज्ञात की लघुकथा
नोटिस
*
विश्वास पाटिल का ललित निबंध
कड़वी नीम के मीठे फूल
*
प्रभात कुमार का आलेख
बड़े बाँध और डैम सेफ़्टी बिल
*
पुनर्पाठ में- शेरजंग गर्ग का
संस्मरण-
एक था टी हाउस
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पवन जैन की लघुकथा
मन की चाभी
*
राम गरीब विकल से
रचना प्रसंग में-
लोक चेतना
के संवाहक नवगीत
*
विद्यानिवास मिश्र का
ललित निबंध-
तुम चंदन हम पानी
*
पुनर्पाठ में- योगेन्द्र चंद्र शर्मा से-
जानें -
मई दिवस की यात्रा कथा
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
आलोक कुमार सतपुते
की
कहानी-
साध्वी
अखबार में निधन वाली जगह पर मेरी
नजर पड़ी। संजना शुक्ला, उम्र २६ वर्ष, के निधन के समाचार ने
मुझे भीतर तक हिला दिया। मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि हमारी संजना
नहीं रही। मैंने फोटो को ध्यान से देखा फिर मुझे यकीन करना ही
पड़ा। संजना मेरे ही ऑफ़िस में काम करने वाली एक लड़की थी।
हालाँकि वह शादीशुदा और एक तीन साल के बच्चे की माँ थी, पर
उसका खिलंदड़पन उसे लड़कियों की श्रेणी में रख देता था। वह एक
बेहद ही खूबसूरत लड़की थी। जितना ख़ूबसूरत उसका चेहरा था, उससे
भी कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत उसका दिल था। वह रोज नये-नये कपड़े
पहनकर ऑफ़िस आया करती थी। हालाँकि वह साधारण सी क्लर्क ही थी,
पर उसके पहनने-ओढ़ने के ढंग से ऐसा लगता था कि वह एक सम्पन्न
परिवार की लड़की है। वह ज्वेलरी भी अलग-अलग तरीके की पहना करती
थी। वह हमेशा ही खिलखिलाती रहती। उसके आने से ऑफ़िस में खुशियाँ
बिखर जाती थीं। हमारे ऑॅफिस की उसकी दूसरी साथी लड़कियाँ उससे
जलती थीं।
...आगे-
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