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					बड़े बाँध और डैम सेफ़्टी बिलप्रभात कुमार
 
 
										सिंचाई, पेय 
										जल की उपलब्धता तथा वर्षा जल-संरक्षण हेतु 
										बाँध निर्माण की परंपरा सदियों पुरानी है। 
										वर्ष २०१७ तक संग्रहीत आँकड़ों के अनुसार 
										भारत में लगभग ५७०० बड़े बाँध हैं, जिनमें 
										५२५४ बन चुके हैं और ४४७ निर्माणाधीन हैं। 
										इसके अलावा, छोटे और मझोले आकार के हजारों 
										बाँध देश भर में फैले हैं। इतनी वृहत 
										संख्या में बाँधों का कुशल और सुरक्षित 
										संचालन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 
										असुरक्षित बाँध डाउनस्ट्रीम में रहने वाली 
										आबादी के जान-माल और पर्यावरण के लिए खतरा 
										हो सकता है। वैधानिक एवं संस्थागत 
										प्रशासनिक संरचना के अभाव में ‘बाँध 
										-सुरक्षा’ एक विचारणीय मुद्दा बन चुका है। 
										बाँधों की सुरक्षा हेतु समान पॉलिसी 
										अपनाने, दिशा-निर्देशों के निर्धारण तथा 
										विनियमन की आवश्यकता काफी समय से महसूस की 
										जा रही है। हाल में, इस दिशा में सक्रिय 
										प्रयास होने से बाँध सुरक्षा कानून बनने 
										की उम्मीद बंधी है। भारत सरकार की कैबिनेट 
										कमिटी द्वारा डैम सेफ़्टी बिल को जून २०१८ 
										में स्वीकार लिया गया है। संसद द्वारा बिल 
										के पारित किए जाने पर, देशभर में फैले 
										बाँधों के जिम्मेदारीपूर्वक संचालन एवं 
										सुरक्षा हेतु निगरानी तंत्र विकसित हो 
										सकेगा। 
 भारत में बड़े बाँधों का निर्माण एवं 
										विस्तार
 
 विश्व के लगभग सभी हिस्सों में मानव 
										सभ्यता के आरंभ से ही जल-संग्रहण हेतु 
										बाँधों का निर्माण शुरू हुआ। जॉर्डन में 
										जावा के आसपास लगभग ३००० ईसा पूर्व बनाया 
										गया बाँध सबसे पुराना माना जाता है। भारत 
										में भी सिंचाई और जलापूर्ति हेतु बाँधों 
										का निर्माण ईसापूर्व में ही शुरू हो गया 
										था। लगभग ३०० ईसा पूर्व में कौटिल्य 
										द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में राजा 
										द्वारा किए जानेवाले कल्याणकारी कार्यों 
										में ‘सेतुबंधन’ को प्रमुख माना गया गया 
										है। जल-संग्रहण हेतु ‘सेतु’ शब्द का 
										प्रयोग दो अर्थों में है-
 
 -सहोदक सेतु, जो कुओं और तालाबों के लिए 
										प्रयुक्त होता था।
 -आहार्योदक सेतु, जो पहाड़ियों के बीच बने 
										तटबंध को कहा जाता था।
 
 चौथी सदी ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य 
										के राज्यपाल पुष्यगुप्त द्वारा पलासिनी और 
										सुवर्णसिक्ता नदी पर सेतुबंधन (तटबंध 
										निर्माण) कर सुदर्शन झील का निर्माण कराया 
										गया था। ११५० ईस्वी के आसपास कल्हण द्वारा 
										लिखे गए ‘राज-तरंगिनी’ में बाँधों एवं 
										नहरों के निर्माण से कश्मीर के विकास का 
										विवरण मिलता है। मालवा के परमार राजा 
										‘भोज’ द्वारा ११ वीं सदी में दो पहाड़ों के 
										बीच बाँध बनाकर कृत्रिम रूप से भोपाल झील 
										का निर्माण कराया गया था।
 
 लगभग २००० वर्ष पूर्व तमिलनाडु राज्य में 
										तिरुचिरापल्ली के निकट कराईकाल चोल द्वारा 
										बनाया गया कल्लनई बाँध, जिसे ग्रैंड एनिकट 
										के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया के 
										सबसे पुराने बाँधों में से एक है। ३२९ 
										मीटर लंबे और ६ मीटर ऊँचे इस बाँध के 
										जलाशय से आज भी कावेरी डेल्टा क्षेत्र के 
										लगभग ४ लाख एकड़ में सिंचाई की जाती है। 
										दिल्ली से सटे सूरजकुंड में तोमर वंशीय 
										शासक सूरजपाल सिंह द्वारा ८ वीं सदी में 
										पत्थरपूरित (रॉकफिल) बाँध का निर्माण 
										कराया गया था। अरावली पहाड़ी के बीच स्थित 
										इस बाँध का उपयोग वर्षा-जल संग्रहण कर पेय 
										जल एवं सिंचाई के लिए किया जाता था।
 प्रायद्वीपीय भारत में सदावाही नदियों का 
										अभाव होने के चलते उत्तर भारत की तुलना 
										में बाँधों का विकास पहले आरंभ हुआ। 
										१८६९-१८७९ ईस्वी में ६९ मीटर ऊँचा 
										खड़गवासला बाँध (महाराष्ट्र) तथा १८८७-१८९५ 
										ईस्वी में ५७ मीटर ऊँचा मुल्लापेरियार 
										बाँध (केरल) का निर्माण हुआ। १९०० ईस्वी 
										तक देश में ६८ बड़े बाँध थे, जिनमें भारत 
										रत्न विश्वेशररैया द्वारा कर्नाटक में 
										बनवाया गया कृष्णराज सागर बाँध (१९३२), 
										तमिलनाडु में बना मेत्तूर बाँध (१९३४) आदि 
										महत्वपूर्ण हैं। आंध्रप्रदेश में 
										दौलेश्वरम (१८५०) एवं प्रकाशम बैराज 
										(१८५५), छत्तीसगढ़ में तंडुल बाँध (१९२१) 
										और मुर्रूमसिल्ली बाँध (१९२३) सहित 
										महाराष्ट्र में दो दर्जन से अधिक बाँधों 
										का निर्माण स्वतंत्रता के पहले हो चुका 
										था। सबसे बड़े बाँधों में शामिल हीराकुद 
										बाँध (ओड़ीसा), टेहरी बाँध (उत्तराखंड), 
										सरदार सरोवर बाँध (गुजरात), सलाल बाँध 
										(जम्मू एवं कश्मीर), चमेरा बाँध (हिमाचल 
										प्रदेश), ओंकारेश्वर और इंदिरासागर (मध्य 
										प्रदेश) बाँध आदि का निर्माण स्वतंत्रता 
										पश्चात हुआ है।
 
 बड़े बाँध की परिभाषा:
 
 बड़े बाँधों के निर्माण, संचालन और सुरक्षा 
										संबंधी अध्ययन एवं अनुभव को साझा करने 
										हेतु अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संस्था 
										‘आईकोल्ड’ (इंटरनेशनल कमीशन ऑन लार्ज डैम) 
										का १९२८ ईस्वी में गठन हुआ। भारत सहित १०० 
										से अधिक देशों में आईकोल्ड की राष्ट्रीय 
										समितियाँ हैं। आईकोल्ड की परिभाषा के 
										अनुसार, निम्नतम आधार विंदु से १५ मीटर से 
										अधिक शीर्ष की ऊँचाई वाले बाँध बड़े बाँध 
										की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावे, १० से 
										१५ मीटर ऊँचाई वाले वैसे बाँध जो निम्न 
										शर्तों को पुरा करते हैं, बड़े बाँध कहलाते 
										हैं-
 
 -जिसके शीर्ष की लंबाई ५०० मीटर से ज्यादा 
										हो
 -जिसके जलाशय की कुल धारिता १० लाख घनमीटर 
										से अधिक हो
 -जिसके फ़्लड रेगुलेटर की जल-निस्सरण 
										क्षमता २००० घनमीटर प्रति से ज्यादा हो
 -जिसका अभिकल्पन (डिजाइन) विशेष हो या जो 
										कठिन आधार पर बनाया गया हो
 उपर्युक्त परिभाषा को भारत में भी अपनाया 
										गया है, किन्तु मृदा बाँध (अर्थेन डैम) के 
										लिए भारतीय स्टैंण्डर्ड कोड ८८२६-१९७८ की 
										परिभाषा को अपनाया गया है। कोड अनुसार, १० 
										से १५ मीटर ऊँचाई वाले रॉकफिल या मिट्टी 
										के वैसे बाँध जिसमें ७.५ लाख घनमीटर से 
										अधिक मृदा सामग्री इस्तेमाल हुई हो या 
										जिसका जल भंडारण १० लाख घनमीटर से अधिक हो 
										या जिसकी बाढ़ विसर्जन क्षमता २००० क्यूमेक 
										से अधिक हो, बड़े बाँध हैं। १०० मीटर से 
										ज्यादा ऊँचाई अथवा एक अरब घनमीटर से 
										ज्यादा भंडारण क्षमता वाले बाँधों को 
										‘राष्ट्रीय महत्व के बाँध’ की श्रेणी में 
										रखा गया है। आज देश में राष्ट्रीय महत्व 
										के ५९ बाँध हैं जबकि १० निर्माणाधीन हैं।
 
 विभिन्न राज्यों एवं अन्य एजेंसियों से 
										प्राप्त सूचनाओं के आधार पर केंद्रीय जल 
										आयोग, जल संसाधन मंत्रालय (भारत सरकार) 
										द्वारा ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ डैम’ तैयार किया 
										गया है। नेशनल रजिस्टर अनुसार, बड़े बाँधों 
										का लगभग दो तिहाई महाराष्ट्र (२३५४), मध्य 
										प्रदेश (९०६) एवं गुजरात (६३२) राज्य में 
										है।
 एनएचपीसी जैसी केंद्रीय संस्थाएँ जिसमें 
										बाँधों का निर्माण मुख्य रूप से 
										जल-विद्युत उत्पादन हेतु किया गया है, 
										मानसून पूर्व तथा पश्चात अर्धवार्षिक 
										सुरक्षा निरीक्षण अनिवार्य रूप से किया 
										जाता है। सभी बाँधों की संकलित निरीक्षण 
										रिपोर्टें डैम सेफ़्टी ऑर्गेनाइजेशन, 
										केंद्रीय जल आयोग को मूल्यांकन हेतु पेश 
										की जाती हैं। अलग-अलग राज्यों में जलाशय 
										का उपयोग सिंचाई, जल आपूर्ति एवं विद्युत 
										उत्पादन हेतु किया जा रहा है। इन बाँधों 
										के लिए सुरक्षा निरीक्षण की अलग-अलग और 
										अनियमित प्रक्रिया है। मरम्मत हेतु जरूरी 
										वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति भी सुचारु और 
										नियमित नहीं है। ऐसे में बाँधों का एकीकृत 
										रूप से संरक्षण एवं सुरक्षित संचालन की 
										आवश्यकता समझी जा सकती है।
 
 बाँधों की सुरक्षा एवं सेफ़्टी बिल-
 
 बड़े बाँधों की संख्या के आधार पर अमेरिका 
										और चीन के बाद भारत तीसरे स्थान पर है। 
										नेशनल रजिस्टर ऑफ़ डैम के अनुसार, देश में 
										लगभग ८०% से ज्यादा बाँध २५ साल से अधिक 
										पुराने हैं जबकि १९५ बाँधों को बने १०० 
										साल हो चुके हैं। पुराने बाँधों की 
										सुरक्षा संबंधी तकनीकी सहायता तथा वित्तीय 
										मदद हेतु भारत सरकार ‘बाँध पुनर्वास एवं 
										सुधार कार्यक्रम’ (ड्रिप) चला रही है। 
										विश्व बैंक की सहायता से चलाए जा रहे 
										ड्रिप कार्यक्रमानुसार, अतिआवश्यक २५० से 
										अधिक बाँधों का पुनर्वास वर्ष २०२० तक 
										किया जाना है। बड़े बाँधों के सुरक्षित 
										निर्माण, निगरानी, निरीक्षण और संचालन 
										हेतु जरूरी तकनीकी तथा वित्तीय ढाँचा 
										मजबूत करने हेतु पिछले कुछ सालों में हुई 
										प्रगति इस प्रकार है-
 
											
												|  | 
												
												केंद्र सरकार द्वारा सन १९८२ में 
												केन्द्रीय जल आयोग की अगुवाई में 
												स्थाई समिति का गठन किया गया 
												जिसका उद्देश्य वर्त्तमान स्थिति 
												की समीक्षा तथा बाँध सुरक्षा हेतु 
												सामान प्रक्रिया तैयार करना था। |  
												|  | 
												
												देशभर में बाँध सुरक्षा की 
												प्रक्रिया में समरूपता लाने के 
												लिए स्थाई समिति ने १९८६ में अपनी 
												रिपोर्ट पेश की तथा बाँध सुरक्षा 
												विधेयक का प्रारूप तैयार किया 
												गया। ‘नेशनल कमिटी ऑन डैम सेफ्टी’ 
												की मीटिंग में राज्यों के 
												प्रतिनिधियों से रिपोर्ट पर 
												समय-समय पर चर्चा होती रही। |  
												|  | 
												
												आरम्भ में, इस विषय पर राज्यों 
												द्वारा विधेयक लाकर कानून बनाने 
												पर जोर दिया गया। कई राज्य केंद्र 
												सरकार द्वारा केंद्रीय विधेयक 
												लाकर बाँध सुरक्षा के लिए सामान 
												प्रक्रिया अपनाने के पक्षधर थे। |  
												|  | 
												
												बिहार सरकार से २००६ में ‘बिहार 
												डैम सेफ्टी बिल’ पारित किया जबकि, 
												पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश की 
												विधान सभाओं ने २००२ में केंद्र 
												सरकार द्वारा बाँध सुरक्षा बिल 
												लाने हेतु अपनी सहमति दी। |  
												|  | 
												
												बाँध सुरक्षा के लिए सार्थक पहल 
												करते हुए वर्ष २०१० में ‘डैम 
												सेफ़्टी बिल’ लोक सभा में पेश किया 
												गया किंतु १५ वीं लोकसभा का 
												कार्यकाल बीच में खत्म हो जाने से 
												बिल पारित नहीं हो सका। 
												प्रस्तावित बिल के कुछेक 
												प्रावधानों पर तमिलनाडु सरकार ने 
												आपत्ति जताई थी। |  
												|  | 
												
												विभिन्न राज्यों, संगठनों एवं 
												विशेषज्ञों से प्राप्त सुझाव व 
												संशोधन पश्चात, जल संसाधनों की 
												स्थायी समिति की अनुसंसा पर १३ 
												जून २०१८ को संसद की कैबिनेट 
												कमिटी द्वारा पास कर दिया गया। 
												जुलाई २०१८ के मॉनसून सत्र में 
												संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित 
												किए जाने पर इसपर कानून बन जाने 
												की उम्मीद है। 
												 |  
											
											डैम सेफ़्टी बिल के प्रावधानों के 
											अनुसार, बाँध सुरक्षा के नियमों, 
											निर्देशों तथा सुरक्षा मानदंडो के 
											अनुपालन हेतु निम्नलिखित संस्थाओं का 
											गठन प्रस्तावित है-
					
											 
												
													| संस्था का नाम | कार्य /
													अधिकार |  
													| राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा 
													प्राधिकरण (NDSA) | बाँध सुरक्षा के लिए तय नीति, 
													दिशा-निर्देशों एवं मानकों का 
													अनुपालन तथा विनियमन हेतु 
													सर्वोच्च संस्था |  
													| राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा समिति 
													(NDSC) | केन्द्रीय समिति का काम बाँध 
													सुरक्षा पॉलिसी बनाना, 
													रेगुलेशन हेतु सुझाव पेश 
													करना, बाँधों के आँकड़े इकट्ठा 
													करना, विफलता के कारणों की 
													जाँच तथा राजकीय समिति को 
													सलाह प्रदान करना होगा। |  
													| केन्द्रीय बाँध सुरक्षा संगठन 
													(NDSO) | केंद्र सरकार के अंतर्गत 
													आनेवाले बोर्ड, इकाइयों या 
													सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम 
													द्वारा संचालित बाँधों के लिए 
													तकनीकी एवं प्रबंधन सहायता। |  
													| राजकीय बाँध सुरक्षा समिति 
													(SDSC) | राज्य सरकार के अंतर्गत 
													आनेवाले बोर्ड, इकाइयों या 
													सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम 
													द्वारा संचालित बाँधों के लिए 
													तकनीकी एवं प्रबंधन सहायता। |  
													| राजकीय बाँध सुरक्षा संगठन 
													(SDSO) | २० से अधिक बाँधों के 
													स्वामित्त वाले राज्यों में 
													बाँध सुरक्षा की जाँच, 
													निगरानी, तथा रख-रखाव की 
													ज़िम्मेदारी |  
													| राजकीय बाँध सुरक्षा सेल 
													(SDSC) | २० या २० से कम बाँधों के 
													स्वामित्त वाले राज्यों में 
													बाँध सुरक्षा की जाँच, 
													निगरानी, तथा रख-रखाव की 
													ज़िम्मेदारी |  
													| गैर-राजकीय बाँध सुरक्षा 
													संगठन (NSDSO) | निजी स्वामित्त वाले १० से 
													अधिक बाँधों के लिए में बाँध 
													सुरक्षा कानून अनुपालन की 
													ज़िम्मेदारी। |  
													| गैर-राजकीय बाँध सुरक्षा सेल 
													(NSDSC) | निजी स्वामित्तव वाले १० या 
													१० से कम बाँधों के लिए बाँध 
													सुरक्षा कानून अनुपालन की 
													ज़िम्मेदारी। |  
											बाँधों 
											की सुरक्षा और जोखिमरहित संचालन की 
											ज़िम्मेदारी स्वामित्व का अधिकार रखने 
											वाली संस्था की होगी। डैम सेफ़्टी बिल 
											पास हो जाने पर निम्नलिखित सुधार की 
											संभावना है-  
											
												|  | 
												डैम 
												सेफ़्टी कानून के लागू होने पर 
												राज्य तथा केंद्रीय शासित राज्यों 
												में बाँध सुरक्षा के लिए समान 
												प्रक्रिया अपनाना संभव होगा।
												 |  
												|  | 
												
												बाँधों की निगरानी, आवधिक सुरक्षा 
												निरीक्षण तथा समीक्षा, निश्चित 
												प्रक्रिया के अधीन नियमित रूप से 
												होगी। बिल के प्रावधान अनुसार 
												आपातकालीन कार्य योजना तथा आपदा 
												प्रबंधन योजना पर अमल की 
												ज़िम्मेदारी बाँधों के मालिकों की 
												होगी।  |  
												|  | 
												
												मौसम तथा जल विज्ञान आँकड़ों का 
												प्रेक्षण, अंतर्वाह पूर्वानुमान 
												(इनफ़्लो फोरकास्ट), आपातकालीन बाढ़ 
												चेतावनी तंत्र की स्थापना, बाँधों 
												के लिए आवश्यक यंत्रीकरण आदि 
												सुनिश्चित हो सकेगा। 
												 |  
												|  | 
												
												बाँधों के सुरक्षित संचालन तथा 
												आवश्यक मरम्मत हेतु जरूरी निधि का 
												आबंटन सुनिश्चित हो सकेगा। |  
												|  | 
												
												केंद्र अथवा राज्य सरकार के सक्षम 
												प्राधिकार द्वारा मंजूरी पश्चात 
												ही नए बाँधों के निर्माण या बदलाव 
												हो सकेगा। 
												 |  
											
											मानवीय जरूरतों को पूरा करने तथा देश 
											की प्रगति में बाँध की भूमिका बेहद 
											अहम रही है। असुरक्षित बाँधों से 
											उत्पन्न जोखिम का निर्धारण तथा 
											सुरक्षा निश्चित करने हेतु कुशल 
											प्रशासनिक तंत्र का होना भी उतना ही 
											महत्वपूर्ण है। भारी निवेश से बने 
											अतिमहत्वपूर्ण इंजीनियरी संरचना की 
											सुरक्षा एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय 
											ज़िम्मेदारी है। बाँध सुरक्षा कानून 
											बनने से बाँधों का सतत निरीक्षण एवं 
											निगरानी हमारी कार्यसंस्कृति का 
											हिस्सा बन सकेगा, ऐसी उम्मीद की जा 
											सकती है।
					
											
					  
											
					१ जून २०१८ |