"तूँ
क्यों गुम सुम बैठा है, क्यों नहीं मन की चाबी खोलता। तेरा
हिस्सा तो तुझे मिल रहा है, कोई कमीं लग रही है क्या ?"
पिता जी के स्वर्गवास के बाद चारों भाईयों में सम्पत्ति के
बटवारे पर बड़े भाई ने पूछा।
"आप सब समझदार है, बड़े हैं, आपने दुनिया देखी है। आप लोगो
के सामने मैं क्या बोलूँ?' नजर बार बार रसोई की तरफ उठ रही
थी जहाँ जूठे बर्तनों के ढेर लगे हुए थे।
"फिर भी बोल कुछ तेरी चुप्पी बता रही तूँ संतुष्ट नहीं है,
कुछ और चाहिये।"
"भईया, बड़की जीजी से अब काम नहीं होता, वे भी तो पापा की
ही संतान हैं न?" वह आकुलता से बोल पड़ा।
एक ताला खुलने पर कई चाबियाँ काम करने लगीं, जंग लगीं भी।
१ मई २०१८ |