मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
पवन जैन की लघुकथा- मन की चाबी


"तूँ क्यों गुम सुम बैठा है, क्यों नहीं मन की चाबी खोलता। तेरा हिस्सा तो तुझे मिल रहा है, कोई कमीं लग रही है क्या ?"

पिता जी के स्वर्गवास के बाद चारों भाईयों में सम्पत्ति के बटवारे पर बड़े भाई ने पूछा।

"आप सब समझदार है, बड़े हैं, आपने दुनिया देखी है। आप लोगो के सामने मैं क्या बोलूँ?' नजर बार बार रसोई की तरफ उठ रही थी जहाँ जूठे बर्तनों के ढेर लगे हुए थे।

"फिर भी बोल कुछ तेरी चुप्पी बता रही तूँ संतुष्ट नहीं है, कुछ और चाहिये।"
"भईया, बड़की जीजी से अब काम नहीं होता, वे भी तो पापा की ही संतान हैं न?" वह आकुलता से बोल पड़ा।

एक ताला खुलने पर कई चाबियाँ काम करने लगीं, जंग लगीं भी।

१ मई २०१८

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।