समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
कमलेश बख्शी-की-कहानी-
सूबेदार
बग्गा सिंह
अपनी व्हील चेअर पर
आहिस्ता-आहिस्ता हाथ चलाता वह आर्मी अस्पताल के वार्ड, कमरों
में ज़ख्मी-बीमार जवानों के पलंग के साथ-साथ हालचाल पूछता
आगे बढ़ता रहता। यह उसका अस्पताल में प्रवेश के बाद पहला काम
होता। कोई पत्र न लिख सकने की स्थिति में होता तो कह देता
"चाचा, मैं ठीक हूँ, लिख देना"। चाचा गोद में रखी डायरी
उठाता, पेन उठाता पता लिख लेता।
वह यहाँ चाचा व्हील चेयर वाला चाचा ही जाना जाता है उसका कोई
नाम, रैंक, गाँव, कोई रिश्तेदार है, कोई नहीं जानता।
जब से कारगिल में घुसपैठियों
से फौज की मुठभेड़ हो रही है वह बहुत चिंतित हो गया। उसके
कानों से छोटा-सा ट्रांजिस्टर लगा ही रहता। टी.वी. पर भी
देखता रहता, बर्फ़ीले शिखर, खाइयाँ, बन्दूकें उठाए वीर
जवान देख उसकी आँखों में वैसे ही दृश्य तैर जाते कानों में
धमाके समा जाते। उन शिखरों
खाइयों से उसका भी गहरा नाता है। वहाँ दुश्मन घुस आए। उसकी
बाहें इस उम्र में भी झनझना उठती हैं, उसकी आधी जाँघों में
भी हरकत हो जाती है।...आगे-
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भूपेंद्र सिंह कटारिया का
व्यंग्य- हमारे नेता
जी
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शशि पाधा का संस्मरण
वीरता की परंपरा-
नायक हवा सिंह
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अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
हिंदी फ़िल्मों में राष्ट्रीय भावना
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पुनर्पाठ में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाकटिकटों पर
क्रांतिकारी वीरांगनाएँ |