अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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 १. ८. २०१७

इस माह-

अनुभूति-में-
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत, विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों की मनभावन रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं-  तिरंगा सैंडविच

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४ उपाय- ११- डायरी लिखें

बागबानी- के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस पखवारे प्रस्तुत है- ११- पीस लिली

भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव- जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं- ११- बेक्किनाकेरि जिसने खुले में शौच से मुक्ति पायी।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अगस्त) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

कलम गही नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के सत्रहवें जन्मदिन का अवसर और नवांकुर पुरस्कारों की घोषणा

वर्ग पहेली- २९२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
कमलेश बख्शी-की-कहानी- सूबेदार बग्गा सिंह

अपनी व्हील चेअर पर आहिस्ता-आहिस्ता हाथ चलाता वह आर्मी अस्पताल के वार्ड, कमरों में ज़ख्मी-बीमार जवानों के पलंग के साथ-साथ हालचाल पूछता आगे बढ़ता रहता। यह उसका अस्पताल में प्रवेश के बाद पहला काम होता। कोई पत्र न लिख सकने की स्थिति में होता तो कह देता "चाचा, मैं ठीक हूँ, लिख देना"। चाचा गोद में रखी डायरी उठाता, पेन उठाता पता लिख लेता। वह यहाँ चाचा व्हील चेयर वाला चाचा ही जाना जाता है उसका कोई नाम, रैंक, गाँव, कोई रिश्तेदार है, कोई नहीं जानता।

जब से कारगिल में घुसपैठियों से फौज की मुठभेड़ हो रही है वह बहुत चिंतित हो गया। उसके कानों से छोटा-सा ट्रांजिस्टर लगा ही रहता। टी.वी. पर भी देखता रहता, बर्फ़ीले शिखर, खाइयाँ, बन्दूकें उठाए वीर जवान देख उसकी आँखों में वैसे ही दृश्य तैर जाते कानों में धमाके समा जाते। उन शिखरों खाइयों से उसका भी गहरा नाता है। वहाँ दुश्मन घुस आए। उसकी बाहें इस उम्र में भी झनझना उठती हैं, उसकी आधी जाँघों में भी हरकत हो जाती है।...आगे-
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भूपेंद्र सिंह कटारिया का
 व्यंग्य- हमारे नेता जी
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शशि पाधा का संस्मरण
वीरता की परंपरा- नायक हवा सिंह
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अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
हिंदी फ़िल्मों में राष्ट्रीय भावना
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पुनर्पाठ में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाकटिकटों पर क्रांतिकारी वीरांगनाएँ

पिछले माह-

संदीप यादव का व्यंग्य
साँपों का दुग्ध उत्सव जारी है
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शशि पाधा से पर्व परिचय
नाग देवता की पूजा अर्चना का पर्व नाग पंचमी
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अशोक कुमार शुक्ला का आलेख
नाग वंश और आस्तिक बाबा का दरबार
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पुनर्पाठ में सरस्वती माथुर का आलेख
नागों के सम्मान का पर्व- नागपंचमी

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है हंगरी से
गीता शर्मा-की-कहानी- नया ब्यायफ्रेंड

बाहर तेजी से गुजरती बसों, कारों की आवाज़ से सुचित्रा ने सुबह होने का अंदाज़ा लगा लिया। 'पता नहीं यहाँ जल्दी आँख क्यों नहीं खुलती है?’ मुश्किल से एक आँख खोल कर उसने साइड टेबल से घड़ी उठा कर देखा। आठ बज रहे थे। 'अभी तो आठ ही बजे हैं, अभी से उठ कर क्या करूँगी,' सोच कर फिर से कंफर्टर लपेट कर लेट गई। 'क्या सुकून भरी जिंदगी है यहाँ’, सुचित्रा के होठों पर मुस्कराहट खेल गई। 'जब से यहाँ आई हूँ न बी.पी. बढ़ा है न ही माइग्रेन हुआ है। दिल्ली में तो हर दूसरे दिन माइग्रेन में ब्रूफेन खा- खा कर भी दर्द से तड़पती रहती थी'। नवीन बार-बार मना करते, “इतनी ब्रूफेन मत खाया करो। मालूम है न कितनी खतरनाक दवा है यह, कोई प्राब्लम हो जाएगी तब पछताओगी।” नवीन का प्रवचन उसके सिर दर्द को और भी बढ़ा देता। ‘एक तो वैसे ही माइग्रेन में बातचीत का मन नहीं करता। न रोशनी भाती है न खाना- पीना, ऊपर से नवीन कमरे में घुसते ही सीख देने लगते हैं। उस समय तो जवाब देने की भी इच्छा नहीं होती है'। ...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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