नागपंचमी का पर्व है साँपों
का दुग्ध उत्सव जारी है-
नागराज तक्षक बुढ़ा गए हैं, लेकिन नागपंचमी पर पार्टी करने
का शौक गया नहीं। सदियों से वे यह मिल्क पार्टी थ्रो करते
आए हैं। पहले इस पार्टी में विभिन्न नाग प्रदेशों के
राजा-महाराजा और उनके मंत्री शामिल होते थे। लेकिन समय के
साथ सब बदल गया। अब न फन वाले वे कोबरा रहे, न बात-बात पर
फुफकारते करैट। इसलिए अब उनके उत्सव में आमंत्रित अतिथि भी
न फन वाले होते हैं, न फुफकारने वाले। बस, मीठी-मीठी बात
करने वाले लोग होते हैं।
पिछली बार की तरह इस बार भी तक्षक की पार्टी में
रामभरोसेजी नजर आ रहे हैं। वे अपने क्षेत्र के जाने-माने
नेता हैं। तक्षक का उनके प्रति विशेष स्नेह है। साँप
प्रकाऱ के कई लोगों को रामभरोसेजी पालते आए हैं। इसलिए भी
तक्षक से उनके विशेष रिश्ते बने हुए हैं।
‘महाराज की जय हो’, तक्षक से मिलते ही रामभरोसेजी दूध से
भरा गिलास हवा में लहराते हुए बोले। ‘अब हम काहे के
महाराज। अब तो कोई हमें पूजता नहीं। वो तो आप लोगों की
मेहरबानी है कि नागपंचमी पर हम लोग मिल लेते हैं।’ तक्षक
बड़ी ही विनम्रता के साथ बोले। संगत में आकर तक्षक भी अब
जहरीले नहीं रहे।
‘मेहरबानी तो आपकी है। अगर आप नहीं होते तो हम नेता लोग
कहाँ से पैदा होते? दूध पीकर जहर उगलना आपसे ही सीखा है…
हा हा हा’ नेताजी ने ठहाका लगाया।
नेताओं के साथ सांपों की तुलना तक्षक को चुभ गई। जो भी हो,
अपनी जात का अपमान कोई सहन कर सकता है भला! मन में विचार
भी आया, महाभारत काल होता तो इसी समय जहर उगलकर भस्म कर
देते, लेकिन अब तो कलयुग के प्रताप से साँपों की प्रजाति
जहर भी नहीं बचा। मनुष्यों के साथ आस्तीन में रहते रहते
सारा जहर उनको ही स्थांतरित हो गया। कड़वा घूंट पीते हुए
साँप मे बात को पलट दिया, ‘रामभरोसेजी, बाकी लोग कहाँ हैं?
आए नहीं।’
‘आएँगे क्यों नहीं, आपकी पार्टी का तो महीनों इंतजार रहता
है। लो सिंह साहब तो आ भी आ गए।’
सिंह साहब एक बड़े रुतबेदार अफसर हैं। एक भी फाइल उनकी
निगरानी के बगैर आगे नहीं बढ़ती। रामभरोसेजी जैसे नेताओं के
साथ उनके अच्छे ताल्लुकात हैं। वे साँपों के अभिन्न मित्र
हैं, साँप उनके गुरू हैं, हर सीधे साधे व्यक्ति के प्रति
जहर उगलना और बात बात में फुफकारना उनकी आदत है। जनता को
जब वे काटते हैं तो उनका काटा पानी भी नहीं माँगता। तक्षक
के वे सबसे बड़े चेले हैं लेकिन व कहते हैं न कि गुरु गुड़
रह गया और चेला शक्कर हो गया। अब तक्षक के पास वह अहंकार
और जोरे दम न रहा जबकि सिंह साहब सारे सरकारी महकमें के
तक्षक बने घूमते हैं।
‘मलाई मारकर दूध देना।’ सिंह साहब को देखते ही तक्षक ने
वेटर से कहा। तक्षक जानते हैं कि सालों से सत्ता की मलाई
खाने वाले सिंह साहब उनकी दूध पार्टी में भी मलाई वाला दूध
ही पीना पसंद करते हैं।
‘फाइल का क्या हुआ, कुछ प्रगति हुई उसमें?’ तक्षक ने सिंह
साहब से पूछा। दरअसल, हम खुलासा कर दें कि तक्षक भी इन
दिनों प्रापर्टी के बिजनेस में उतर आए हैं। उनका एक
प्राजेक्ट महीनों से अटका हुआ है। वे उसी की बात कर रहे
हैं।
‘अरे आपका प्रोजेक्ट कहाँ अटकने वाला है। हम आप एक ही
परिवार के हैं। कुछ फार्मलिटीज बची है। जल्दी ही क्लियर हो
जाएगा।’ मलाई की कटोरी की ओर हाथ बढ़ाते हुए सिंह साहब
बोले। सिंह साहब का पेट हालाँकि अब कटोरी भर मलाई से भरता
नहीं है। उनको मलाई के हंडे खाने की आदत है दरअसल उनका
कुनबा अब बहुत बढ़ गया और थोड़ी बहुत मलाई से अब उनका काम
चलता नहीं। लेकिन जितना मिल जाए उसे हड़प लो की नीति से
सिंह साहब ने मेवा पड़ी हुई, इत्र से महकती मलाई की कटोरी
को अपने हाथों में ले लिया।
धीरे-धीरे पार्टी की रौनक बढ़ती जा रही है। शहर के
जाने-माने ठेकेदार, इंजीनियर, वकील, पुलिस के पूर्व अफसर,
फारेस्ट के अधिकारी आदि पहुँच गए हैं। नागिन डाँस भी शुरू
हो गया है। नागिनें आजकल डांस करना भूल चुकी हैं लेकिन
मानव प्रजाति में आजकल नई प्रकार की नागिनों का अभ्युदय
हुआ है। वे उसी प्रकार लोगों को आकर्षित करती हैं जैसे नाग
प्रजाति की नागिनें लेकिन नागिनों की तरह वे भी मारी जाती
हैं, लूटी जाती हैं, छली जाती हैं। उनकी शिरोमणि के पीछे
लोग जान देकर पड़े रहते हैं फिर भी वे अपने कार्य में लगी
रहती हैं शायद इसलिये भी कि इसके सिवा इन्हें कोई काम नहीं
आता।
खैर मैं पाठकों को अधिक भावुक किये बिना इतना ही कहना
चाहता हूँ कि पहले तो साल में एक दिन नागपंचमी आती थी अब
साल का हर दिन या कोई भी दिन नागपंचमी हो जाता है।
धार्मिकता और सद्भाव तो अब रहा नहीं बस मानव में नाग का
रूपांतरण रह गया है। सरकारी दफ्तरों में हर कुर्सी पर नाग
बैठे हैं कौन कब फुफकार दे और कब कौन डस ले कहा नहीं जा
सकता। आप सावधान रहें। |