इस माह- |
अनुभूति-में-
राम गरीब विकल, विवेक चौहान, कमलेश यादव, अश्वघोष के साथ नई कविता कार्यशाला से रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- इस पखवारे रामनवमी
के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि
प्रस्तुत कर रही हैं
मेवे के लड्डू। |
स्वास्थ्य
में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४
उपाय-
७-
स्वस्थ भोजन करें। |
बागबानी-
के अंतर्गत घर की सुख स्वास्थ्य और समृद्धि के लिये शुभ पौधों की शृंखला में इस
पखवारे प्रस्तुत है-
७- इंगलिश आई वी |
भारत के
सर्वश्रेष्ठ गाँव-
जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं-
७- आर्सेनिक
को पराजित करने वाला बलिया। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस माह (अप्रैल में)
कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...
विस्तार से
|
संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-
डॉ. मधु प्रधान की कलम से सत्येंद्र तिवारी के नवगीत संग्रह-
''मनचाहा
आकाश'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- २८८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुमति सक्सेना लाल-की-कहानी-
आखिरी घर
अजब
लगता है सोच कर कि किस्मत ने मुझे ज़िंदगी के आखि़री मुहाने पर
अपने घर के इतना नज़दीक पहुँचा दिया, फिर भी इतना दूर। थोड़ा सा
टहल कर उस घर के आस-पास जाने की इच्छा तक नहीं होती। कौन है
भला मेरा वहाँ। मुझे तो कुछ भी नहीं पता कैसी थी बापू की
पत्नी। कितने बच्चे थे उनके। जाऊँ उस घर में तो क्या बताऊँ उन
सबको? ईंट गारे से बने मकान भर को क्या घर पुकारा जा सकता है?
सोचती हूँ बगल में अब कौन रहता होगा? ओम प्रकाश या कोई और?
क्या करना है मुझे। अब तो कुछ जानने सोचने की इच्छा भी नहीं
होती। इसी सड़क पर कोठियों के पीछे बनी गली के उस ओर था हमारा
छोटा सा घर। यहीं के गर्वन्मैंट गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी मैं।
उस घर के आँगन और सामने की गली में खेलते-कूदते सोचा था कहीं,
कि थोड़ी ही दूर पर बने इस वृद्धा आश्रम में बीतेंगे मेरी
ज़िन्दगी के आखि़री दिन। शाम होती है तो आकर खिड़की पर खड़ी हो
जाती हूँ। धुंधलका होने से पहले ही पूरे बाजार की रोशनियाँ जल
जाती हैं। इतनी तेज़ चमक के साथ कि आँखें चौंधियाने लगती हैं।
इतने सालों से उजियाले की आदत छूट गई है न।...आगे-
*
विनोद कुमार दवे का
व्यंग्य- मोबाइल
*
विमलेश त्रिपाठी का आलेख
हिंदी कविता के दो अतिवाद
*
पर्व परिचय में अग्निशेखर से
जानें
'नवरेह' है कश्मीरियों का विशेष नवसंवत्सर
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का दसवाँ भाग |
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अंतरा करवड़े की लघुकथा
जवाब
*
अशोक उदयवाल से स्वास्थ्य चर्चा
स्वास्थ्य के लिये उपयोगी नींबू
*
रवीन्द्रनाथ उपाध्याय से
संस्कृति में
सोलह शृंगार
बत्तीस आभूषण
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का नवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
वर्षा ठाकुर-की-कहानी-
रावत टी स्टाल
“भाईसाब
ये रावत टी स्टाल यहीं हुआ करता था न?”
“हाँ भइया यहीं था पर अब दूसरी जगह चला गया। रोड चौड़ा हुआ था
तो वो भी टूट गया"।
अरूप निराश सा था। बरसों पुरानी बद्रीनाथ यात्रा के वक्त की एक
ये भी तो याद थी जो संग रह आई थी, फिर किसी दिन ताजा हो आने के
लिये। क्या चाय थी वो! कहते थे कि रावत काका अपने हाथों से चाय
का मसाला बनाके रखते थे।
“अभी कहाँ बनी है?”
“बनी तो यहाँ से थोड़ी दूर है। सामने से बाएँ मुड़के पूछते हुए
चलते जाइयेगा। गाड़ी घुसने की जगह नहीं। पर..”
“पर क्या?”
“रावत काका अब नहीं रहे। छुटकू ही अब दुकान चलाता है, पर हाथ
में वही स्वाद है। काका भी बड़े नेक निकले, अपना कोई वारिस नहीं
था तो नौकर को सब कुछ थमा गये"।
पिया सोच रही थी, कितने फुरसतिये हैं पहाड़ी लोग। पता पूछो तो
साथ में इतिहास भी बता देते हैं।
और अरूप सोच रहा था, शायद ये किस्सा...आगे- |
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