मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


संस्कृति


सोलह शृंगार बत्तीस आभूषण

- रवीन्द्रनाथ उपाध्याय


भारतीय समाज ने स्त्रियों के सोलह शृंगारों और बत्तीस आभूषणों की अवधारणा को सबसे पहले कब आत्मसात् किया, यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। सौभाग्य से १३वीं या १४वीं शताब्दी के संस्कृत कवि वल्लभदेव की 'सुभाषितावली' के एक श्लोक में सोलह शृंगारों की सूची दी गई है जो अबतक उपलब्ध प्राचीनतम उल्लेख है। बत्तीस आभूषणों की बात करें तो प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में स्त्री-पुरुषों द्वारा धारण किए जाने वाले आभूषणों और अलंकारों के नामों की तो भरमार है लेकिन बत्तीस आभूषणों की कोई मान्य सूची प्राप्त नहीं हो सकी है।

सोलह शृंगारों के संबंध में वल्लभदेव का श्लोक यह है-
"आदौ मज्जन चीर हार तिलकं नेत्रांजनं कुण्डले
नासा मौक्तिक केशपाशरचना सत्कंचुकं नूपुरौ।
सौगन्ध्यं कर कंकणं चरणयो रागो रणन्मेखला
ताम्बूलं करदर्पणं चतुरता शृंगारका: षोडषा:।।"
इस श्लोक के अनुसार सोलह शृंगार इसप्रकार हैं-
मज्जन(स्नान),चीर(अधोवस्त्र),हार, तिलक,आँखों में काजल, कुण्डल, नासा मुक्ता(नाक में मुक्ता की कील), केश विन्यास, कंचुक, नूपुर, अंगराग(सुगंध), कंकण, चरणराग, करधनी, तांबूल(पान) और करदर्पण(आरसी)।
सोलहवीं शती के संस्कृत कवि रूपगोस्वामी ने अपने 'उज्ज्वलनीलमणि' नामक ग्रंथ में उपर्युक्त सूची में से चीर, कंचुक, हार, कंकण, नूपुर और करदर्पण को हटाकर असितपट्ट(कृष्ण वर्ण का दुपट्टा), केशों में पुष्प, अलक्तक(आलता), शरीर पर पत्रावली(मकरीभंग), हाथ में कमल और कपोल पर तिल को जोड़ दिया है लेकिन उनकी सूची को बहुत आदर नहीं मिला क्योंकि मुख्य अवयव सूची में स्थान नहीं पा सके थे।

देश काल की भिन्नता और स्थानीय रिवाजों के कारण सोलह शृंगारों की सूची में कुछ हेरफेर होना स्वाभाविक था। १६वीं शती में ही अधररंग(लिपस्टिक) का चलन हो गया था इसलिए मलिक मुहम्मद जायसी ने जब सोलह शृंगार गिनाए तो उन्होंने अधररंग भी जोड़ दिया, साथ में सिंदूर और पायल का भी उल्लेख कर दिया। जायसी की सूची यह है-१.मज्जन, २.स्नान, ३.वस्त्र, ४.पत्रावली, ५.सिंदूर, ६.तिलक, ७.कुण्डल, ८.अंजन, ९.अधरों को रंगना, १०.तांबूल, ११.कुसुमगंध, १२. कपोलों पर तिल, १३.हार, १४.कंचुकी, १५.क्षुद्रघंटिका और १६. पायल।

जायसी ने मज्जन और स्नान को अलग-अलग माना तथा करकंकण का उल्लेख नहीं किया। यही हेर-फेर केशवदास जी के छन्द में देखने को मिला-
"प्रथम सकल सुचि मंजन अमलबास
जावक सुदेस किस पास को सम्भारिबो।
अंगराग भूषन विविध मुखबास-राग
कज्जल ललित लोल लोचन निहारिबो।
बोलन हँसन मृदुचलन चितौनि चारू
पलपल पतिब्रत प्रन प्रतिपालिबो।
'केसौदास' सो बिलास करहु कँवरि राधे
इहि बिधि सोरहै सिंगारन सिंगारिबो।।"

[इस छंद में वैसे तो शृंगारों की संख्या कम है लेकिन इसकी टीका करते हुए सरदार कवि ने उबटन, स्नान, अमलपट्ट, जावक, वेणी गूँथना, सिंदूर,ललाट में खौर, कपोल पर तिल, केसरलेपन, मेंहदी, पुष्पाभूषण, स्वर्णाभूषण, मुखबास, दंतमंजन, तांबूल और काजल को लेकर सोलह की सूची पूरी कर दी है।]
श्री महेन्द्र नाथ वसु ने "हिन्दी विश्वकोश" में सोलह शृंगारों की जो सूची दी है वह वल्लभदेव जी की सूची से थोड़ी ही भिन्न है।

उपर्युक्त सूचियों को देखने से ही लगता है कि प्रत्येक सूची में कुछ-न-कुछ छूट गया है। कठिनाई यह है कि शृंगारों की सूची में अंगशुद्धि, कांतिवृद्धि, परिधान और आभूषण- सभी का समावेश कर पाना नितांत असंभव है। जब आभूषणों की संख्या बत्तीस बताई गई है तो उनमें जो अनिवार्य आभूषण थे, उन्हें शृंगारों में शामिल करके छुट्टी पा ली गई.

डा० मोतीचंद्र ने अपनी पुस्तक 'प्राचीन भारतीय वेष-भूषा' में प्राचीनकाल के स्त्री-पुरुषों के परिधानों और अलंकारों का प्रामाणिक वर्णन प्रस्तुत किया है। अजंता के भित्तिचित्रों, एलोरा, खजुराहो, कोणार्क, साँची, भरहुत और कलचुरी की मूर्तियों तथा प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि प्राचीन काल के स्त्री-पुरुषों के मन में अपने शारीरिक सौन्दर्य और आभूषणों के लिए अत्यधिक ललक थी। वाल्मीकि रामायण में वनगमन के समय श्रीराम तो अपना शिरोभूषण 'मौलि-मणि' उतार कर जटा-जूट बाँध लेते हैं, लेकिन सीताजी अपने गहने नहीं उतारतीं। गंगाजी पार करने के बाद वे एक मुद्रिका तो केवट को दे देती हैं और रावण द्वारा अपहरण किए जाने पर अपने शेष आभूषण किष्किंधा के समीप गिरा देती हैं। उन आभूषणों को देख कर लक्ष्मण कहते हैं-"नाहं जानामि केयूरे नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरं त्वभि जानामि नित्यं पादाभिवन्दनात्।" (मैं उनके बाजूबन्दों को नहीं पहचानता न ही उनके कुण्डलों को पहचानता हूँ। हाँ, नित्यप्रति उनके चरणों की वन्दना करने के कारण उनके नूपुरों को पहचानता हूँ।)

महाभारत के वनपर्व के २३३ वें अध्याय में सत्यभामा को दिए गए उपदेश में द्रौपदी कहती हैं- "महाराज युधिष्ठिर की जो दासियाँ थीं वे हाथों में शंख की चूड़ियाँ, भुजाओं में बाजूबन्द और कण्ठ में सुवर्ण का हार पहन कर बड़ी सजधज के साथ रहती थीं। उनकी मालाएँ एवं आभूषण बहुमूल्य थे। उनकी अंगकांति बहुत सुन्दर थी। वे चंदन मिश्रित जल से स्नान करती थीं तथा मणि व सुवर्ण के गहने पहना करती थीं।" संभव है कि दासियों के बारे में यह कथन अतिशयोक्ति हो लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि कुलीन स्त्रियाँ ऐसे आभूषण अवश्य धारण करती थीं।

आभूषणों में इतनी विविधताएँ हैं कि उनका पूरा विवरण देने से इस लेख का कलेवर बहुत विस्तृत हो जाएगा, लेकिन कुछ प्रधान आभूषणों की चर्चा के बिना लेख अधूरा रह जाएगा। कुछ लोकप्रसिद्ध आभूषण निम्नलिखित हैं-

bullet

मुक्ताजाल- इसे रत्नावली या रत्नांजलि भी कहते हैं। यह मोतियों की लड़ी है जो सिर के बालों पर आगे से पीछे तथा ललाट पर सामने से बालों को कसे रहती है। अजन्ता के भित्तिचित्रों में इसे देख सकते हैं। आजकल इसकी जगह सोने की एक लड़ी माँग के बीच में तथा दूसरी ललाट के बीच से दोनों तरफ़ रहती है। इसी से माँग-टीका लटकता है।

bullet

माँगटीका या सितारा- राजस्थान में रखड़ी या घुंडी कहते हैं।

bullet

चूड़ामणि- यह बालों के मध्य में कमलपुष्प की तरह।

bullet

सेलड़ी-वेणी के छोर से लटकने वाला शंक्वाकार आभूषण जिसमें छोटी घंटियाँ लटकती हैं।

bullet

नासामुक्ता- नाक के बाईं तरफ़ के छेद में पहनी जाती है। आजकल हीरे वाली कील का चलन है।

bullet

नथ- कहीं कहीं नथनी भी कहते हैं। यह सोने के तार का तीन अंगुल व्यास का वलयाकार गहना है।

bullet

त्रिकण्टक-यह कान का आभूषण है। दो मनकों के साथ पन्ने को जड़कर बनता है। हर्षचरित में हर्ष के जन्मोत्सव पर नृत्य करती राजमहिषियाँ त्रिकण्टक पहने थीं।

bullet

कनक कमल- कान का आभूषण, उल्टे कमल के आकार का जिसे कानों में फँसाया जाता था।(मेघदूत)

bullet

कुण्डल- सर्वप्रिय कर्णाभूषण, मणि जटित या केवल सुवर्ण के। पुरुष भी पहनते थे। आजकल भी कुछ नवयुवक पहनते हैं।

bullet

कर्णिका- झुमकी।

bullet

बाली- इसे कर्णवतंस भी कहा गया है। यह छोटी या दो अंगुल व्यास की गोलाकार होती है। आजकल तो बड़ी-बड़ी बालियों का चलन है।

bullet

मौलि- शिरोभूषण (राम के संदर्भ में उल्लेख हो चुका है।)

bullet

मुकुट/ किरीट- जनसाधारण के लिए नहीं, राजाओं व रानियोंके लिए।

bullet

मुक्ताकलाप-एक लड़ी की मोतियों की माला। इसे एकावली भी कहा गया है। (कुमारसंभव में पार्वती के स्तनों पर सुशोभित)

bullet

इंद्रनील मुक्तामयी- मोतियों का हार जिसमें बीच-बीच में इंद्रनील लगे हों।

bullet

निष्क- यह स्वर्ण मनकों से निर्मित हार है लेकिन इसे गूगल के एक लेख में सिक्कों वाला हार बताया गया है।

bullet

हेम सूत्र (गले की चेन)-यह बहुत प्रचलित आभूषण है। इसी को छोटे-छोटे मूल्यवान् रत्नों से अलंकृत करके तथा सुवर्ण का मणिजटित या सादा सजावटी लटकन (पेंडेंट) जोड़ कर "मंगल सूत्र" बना दिया गया है।

bullet

कण्ठा- यह चपटे भारी गोल या चौकोर सोने के बीड्स का गहना है। यह गले को घेरे रहता है, नीचे नहीं लटकता।

bullet

हार- यह स्त्रियों का सबसे प्रिय आभूषण है और इसकी इतनी किस्में हैं और उनके इतने नाम हैं कि उन्हें आभूषणों के व्यापारी भी नहीं जानते। वृहत्संहिता में चार हाथ की १००८ मनकों की माला को इन्दुछन्द, दो हाथ लम्बी ५०४ मनकों के हार को विजयछंद, १०८ मनकों की माला को हार, ८१ मनकों की माला को देवछंद और ६४ मनकों की माला को अर्धछन्द कहा गया है। वासुदेव शरण अग्रवाल ने एक स्त्री की मृण्मूर्ति के गले में २७ मनकों की माला को 'नक्षत्रमाला' कहा है। हार जब लम्बा हो तो उसे लम्बनम् की संज्ञा दी गई है।

bullet

विजयंतिका- मोतियों और मणियों से जड़ा गले का गहना। (आजकल कुंदन कहते हैं।)

bullet

फलक हार- सोने की माला में बराबर दूरियों पर गुँथे हुए तीन-तीन या पाँच-पाँच रत्नों के फलक वाले हार का नाम।

bullet

हँसुली-यह गले को घेरने वाला गहना है। सामने मोटा और पीछे की ओर क्रमश: पतला होता जाता है। देहात की ग़रीब औरतें चाँदी की हँसुली पहनती हैं। इधर हाल में कुछ अभिनेत्रियों ने फिर इसे पुनर्जीवित किया है।

bullet

केयूर(बाजूबन्द)- तरह-तरह के बाजूबन्दों का उल्लेख मिलता है, उनमें मायूर-केयूर भी था जिसपर मोर की आकृति बनी होती थी।

bullet

अंगद- सोने का सर्पाकार कड़े जैसा भुजाओं में पहना जाने वाला आभूषण। स्त्री- पुरुष दोनों पहनते थे।

bullet

वलय- कलाई में पहनने का कड़ा।

bullet

कंकण- कलाइयों में पहने जाने वाला। चूड़ियों के अगल-बगल तथा उनके बीच में कंगनों की शोभा और बढ़ जाती है।

bullet

अंगुलीय(मुद्रिका)- अंगूठियाँ रत्नजटित-सुवर्ण की या केवल सुवर्ण की होती थीं। तक्षशिला से सोने,चाँदी, ताँबे, लोहे, पत्थर और शंख की तमाम मुद्रिकाएँ मिली हैं।

bullet

चूड़ियाँ- सोने की, हाथी दाँत की, शंख की और शीशे की।

bullet

मेखला- यह कई लड़ियों वाली होती है और कमर पर नाभि के नीचे बाँधी जाती है। इसे कमरबंद, करधनी या किंकिणी भी कहते थे। इससे छोटी छोटी घंटियाँ भी जुड़ी रहती थीं। मानस में पुष्पवाटिका प्रसंग में 'कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि' वाली चौपाई प्रसिद्ध ही है।

bullet

नूपुर- चाँदी के, सुहागिन स्त्रियों का चिह्न।

bullet

साँकल या छागल- चाँदी के तारे छल्ले। दोनों पैरों में कई-कई पहने जाते थे। इन्हें छाड़ा भी कहते थे।

bullet

मंजीर- पैरों में पहनी जाने वाली पाजेब जो छोटी घंटियों ये युक्त होती थी। (बिहारी लाल ने विपरीत-रति वाले दोहे में "करै कोलाहल किंकिनी गह्यो मौन मंजीर" लिख कर रसिकजन का मनोरंजन किया है।)

bullet

वैकक्ष-दो लम्बी लड़ियाँ मोतियों की वक्ष पर एक दूसरे को काटती हुई।

कहाँ तक गिनाऊँ? नकबेसर, खुटिला, खुभी, झलमली, हुमेल, पहुँची, अनौटा, झेला आदि इतने विविध नामों वाले आभूषण हैं कि उनके बारे में यह भ्रम हो जाता है कि कौन किस अंग में पहना जाता था। चलते-चलते केशवदास की नायिका का दर्शन कर लीजिए। नख से शिख तक आभूषणों से लदी दीपमालिका जैसी जगमग कर रही है-
"बिछिया अनौट बाँके घुँघरू जराय जरी
जेहरि छबीली छुद्रघंटिका की जालिका।
मूँदरी उदार पौंउची कंकन वलय चूरी
कण्ठ कण्ठमाल हार पहरे गुणालिका।
बेणीफूल सीसफूल कर्णफूल माँगफूल
खुटिला तिलक नकमोती सोहै बालिका।
केसौदास नीलबास ज्योति जगमग रही
देह धरे स्याम संग मानो दीपमालिका।।" (कविप्रिया से)

१५ मार्च २०१७

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।