इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
शशि पाधा, कृष्ण कुमार तिवारी किशन,
डॉ. सरस्वती माथुर, राजेंन्द्र वर्मा और आनंद शर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक
शुचि लाई हैं पर्वों के अवसर पर विशेष रूप से अभिव्यक्ति के
पाठकों के लिये-
शाही काजू करी।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
२२- बगीचे में फेंगशुई। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
२२-
आई वी की हरित छवियाँ। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२२-
बैंगनी की विभिन्न छवियाँ |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१५ नवंबर को) विरसा मुंडा, विद्या
सिन्हा, नारायण आप्टे, नाथूराम गोडसे, सानिया मिर्जा ...
विस्तार से
|
संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-
आचार्य संजीव वर्मा सलिल की कलम से यतीन्द्रनाथ राही के नवगीत संग्रह-
चुप्पियाँ फिर गुनगुनायीं का परिचय। |
वर्ग पहेली- २८०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.एस.ए. से अनिल प्रभा
कुमार की कहानी-
जिनकी गोद भराई नहीं होती
चाय
का प्याला साथ की तिपाई पर रखते हुए, माँ ने प्यार से उसके सिर
पर हाथ फेरा।
"उठ जा बेटे, आज तो तेरे लिये तेरी भाभी ने बहुत सा इन्तज़ाम
किया हुआ है। चलना नहीं।"
उसने कुनमुना कर आँखे खोलीं। निगाहें माँ की बजाए साथ लगी
बैसीनेट में लेटी बच्ची पर पड़ीं। मुस्कुरा उठी, हाथ बढ़ा कर
उसका पाँव सहला दिया।
बच्ची उठ चुकी थी, किलकारियाँ मार रही थी। माँ ने बच्ची को उठा
कर उसे पकड़ा दिया। ढेर सारी चुम्मियाँ लेने के बाद वह हड़बड़ा कर
उठी - "अरे यह तो गीली है?"
"मैं इसका ख़्याल कर लूँगी, तू उठ कर तैयार हो जा।" कहते हुए
माँ ने बच्ची को उससे ले लिया।
"माँ, भाभी को इतना ताम-झाम करने की क्या ज़रूरत थी। बेबी -
शॉवर तो बच्चा पैदा होने से पहले किया जाता है, बाद में थोड़े
ही।"
"मैंने ही उसे रोका था। जब तक गोद लेने की सारी औपचारिकताएँ
पूरी होकर, बेबी घर न आ जाए, तब तक हम कुछ नहीं करना चाहते थे।
...
आगे-
*
कल्पना रामानी की
लघुकथा-
मातृ-मन
*
रवीन्द्र उपाध्याय का आलेख
द्यूतक्रीडा
इतिहास के झरोखे से
*
पर्यटन में स्वाती तिवारी की
कलम से-
वन
झरने की धार
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का चौथा भाग |
|
डॉ. सरला सिंह की
लघुकथा- बस्ता
*
अशोक उदयवाल से जानें
नारियल के नाना उपयोग
*
अनिरुद्ध जोशी शतायु का
आलेख- पिरामिडों का रहस्य
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का तीसरा भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
फ्रेम से बाहर
“विजय,
हमारी शादी नहीं हो सकती।” नेहा ने आवाज़ में बिना कड़वाहट
लाते हुए कहा।
“मगर क्यों? हम दोनों प्यार करते हैं, पिछले तीन सालों से एक
दूसरे को जानते हैं, तुम्हारे ममी पापा मुझे पसन्द करते हैं और
मेरे परिवार वाले भी तुम्हें बहू बनाना चाहते हैं। फिर दिक्कत
क्या है?”
“बात यह है विजय कि मुझे बच्चे अच्छे नहीं लगते। मैं किसी भी
क़ीमत पर माँ नहीं बनूँगी और तुम्हारे माँ बाप को घर का वारिस
चाहिए होगा। ऐसे में हम दोनों अपने रिश्ते नॉर्मल नहीं रख
पाएँगे। तनाव पैदा होगा ही। फिर शायद हम दोनों को अलग होना
पड़े। उससे बेहतर है कि हम विवाह के बारे में सोचें ही नहीं।”
“अगर तुम मुझसे शादी नहीं करोगी तो क्या सारी उम्र कुँवारी
रहोगी?... अरे जिससे भी शादी करोगी, बच्चे तो पैदा होंगे ही।”
“दरअसल अब तो मुझे शादी भी एक गैर-ज़रूरी सी इंस्टीट्यूशन लगती
है। मैं शायद लिव-इन अरेंजमेण्ट में ज़्यादा खुश रह पाऊँगी...
आगे- |
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