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इतिहास


 
पिरामिडों का रहस्य
- अनिरुद्ध जोशी शतायु


पिरामिड एक भारतीय अवधारणा

कैलाश पर्वत एक पिरामिडनुमा पर्वत ही है। उसे देखकर ही प्राचीनकाल में हिन्दुओं ने अपने मंदिरों, महलों आदि की स्थापना की थी। सनातन धर्म के मंदिरों की छत पर बनी त्रिकोणीय आकृति उन्हीं प्रयोगों में से एक है। जिसे वास्तुशास्त्र एवं वैज्ञानिक भाषा में पिरामिड कहते हैं। यह आकृति अपने-आप में अदभुत है। यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों या आज के दक्षिण भारतीय मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। दक्षिण भारत के मंदिरों के सामने अथवा चारों कोनों में पिरामिड आकृति के गोपुर इसी उद्देश्य से बनाए गए हैं कि व्यक्ति को उससे भरपूर ऊर्जा मिलती रहे। ये गोपुर एवं शिखर इस प्रकार से बनाए गए हैं ताकि मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों के चारों ओर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का विशाल एवं प्राकृतिक आवरण तैयार हो जाए। आप जानते ही हैं कि ऋषि-मुनियों की कुटियाँ भी उसी आकार की होती थीं। प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थीं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के घर पिरामिडनुमा ही पाए जाते हैं।

हालाँकि जानकार लोग कहते हैं कि आज से लगभग ५००० वर्ष पूर्व जब मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ, तब भारत में सर्वत्र विशालकाल तुंग वृक्षों वाले वन थे तथा तत्कालीन भारत की जलवायु पूर्णत: संतुलित, उत्तम तथा आरोग्यप्रद थी। इस कारण भारत में पिरामिड बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके विपरीत मिस्र के गर्म रेगिस्तान में वृक्षावली तथा जल के अभाव की स्‍थिति में पिरामिड बनाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। पिरामिडों में एक और जहाँ पीने के जल का संरक्षण किया जाता था तो दूसरी ओर उससे बिजली भी उत्पादित ‍की जाती थी। अनेक विद्वानों का मानना है कि मिस्र के पिरामिड का निर्माण भारतीय विद्वानों की देखरेख में हुआ था। रेखा गणित का जन्म भारत में हुआ था। यदि सिंधु घाटी की सभ्यता बची रहती तो निश्चित ही हमें पिरामिडों के बारे में खोज करने की जरूरत नहीं होती। बलूचिस्तान से लेकर कश्मीर और कश्मीर से लेकर नर्मदा गोदावरी के तट भव्य मंदिरों और महलों का मध्यकाल में जो विध्वंस किया गया उसके अब अवशेष भी नहीं बचे हैं।

भारत के असम में पिरामिड

असम के शिवसागर जिले के चारडियो में हैं अहोम राजाओं की विश्‍वप्रसिद्ध ३९ कब्रें। इस क्षेत्र को 'मोइडम' कहा जाता है। बताया जाता है कि उनका आकार भी पिरामिडनुमा है और उनमें रखा है अहोम राजाओं का खजाना। अहोम राजाओं का शासन १२२६ से १८२८ तक रहा था। उनके शासन का अंत होने के बाद उनके खजाने को लूटने के लिए मुगलों ने कई अभियान चलाए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। कहते हैं कि इस खजाने को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मुगलों ने प्रयास किए। सेनापति मीर जुमला ने उनकी कब्रों की खुदाई करवाना शुरू कर दिया। उसने वहाँ स्थित कई मोइडमों को तहस-नहस करवा दिया, लेकिन हमले के चंद दिनों बाद ही मीर की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस कब्र को खोदकर यहाँ के रहस्य को जानने का प्रयास किया लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर एक बार म्याँमार के सैनिकों ने हमला कर कब्र के खजाने को लूटने का प्रयास किया लेकिन उनको खून की उल्टियाँ शुरू हो गईं और वे सभी मारे गए। ३९ अहोम शासक इन पिरामिडों में बनी कब्रों में चिरनिद्रा में सो रहे हैं। इन राजाओं को जिसने भी जगाने की कोशिश की, उसको मौत की नींद सोना पड़ा है। इन मोइडमों के साथ रहस्यों और दौलत की एक ऐसी दुनिया लिपटी हुई है, जिसकी वजह से इन कब्रों पर जिसने भी बार-बार आक्रमण करने के साथ इनसे छेड़खानी की और उनकी बर्बादी की लकीर खींची, मौत ने उसे गले लगा लिया। लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि मोइडम की कब्रों में बेशुमार खजाना था जिसको लूटने की चाहना से लोग आते थे और लूटकर चले जाते थे। लूट के माल के बाद खजाने को लेकर आपस में ही झगड़कर मर जाते थे। इस तरह यहाँ रखा सोना पहले मुगलों, फिर अंग्रेजों और फिर बर्मा के सैनिकों ने लूट लिया।

अमेरिका में पिरामिड

अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। २५० ईस्वी से ९०० ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। यों तो इस इलाके में ईसा से १०००० साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और १८०० साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाकों में गाँव भी बसने शुरू हो चुके थे। लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई १००० साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और ६०० साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् २५० से ९०० के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन् ९०० के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए।

अंटार्कटिका में पिरामिड

रेडियो रूस की वेबसाइट के अनुसार अमेरिका और योरप के वैज्ञानिकों ने सन् २०१३ में बर्फीले अंटार्कटिका में ३ पिरामिडों की खोज की है जिनमें से १ पिरामिड तो समुद्र तट के पास ही है, लेकिन २ पिरामिड तट से १६ किलोमीटर दूर समुद्र में डूबे हुए हैं। ये तीनों ही पिरामिड मानव द्वारा निर्मित हैं, क्योंकि हजारों वर्ष पहले अंटार्कटिका का यह क्षेत्र बर्फीला होने की जगह पेड़-पौधों और हरियाली से पटा हुआ था। यहाँ उस काल में मनुष्य रहता था। अंटार्कटिका की भूमि पर घने जंगल हुआ करते थे और तरह-तरह के जीव-जंतु भी रहते थे। आज अंटार्कटिका महाद्वीप का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्फ की मोटी पर्त से ढँका हुआ है।

मिस्र के पिरामिड-

जब पिरामिड की बात आती है तो मिस्र या इजिप्ट के पिरामिडों की ज्यादा चर्चा होती है। ऐसा क्यों? क्योंकि वे अभी तक अच्छे से संरक्षित हैं जबकि भारत, चीन और मध्य एशिया के पिरामिड तो युद्ध में तबाह हो गए। दरअसल मिस्र के पिरामिड पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ हैं जो अब मकबरों में बदल गए हैं। मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीजा में तीन। हालाँकि जमीन में अभी भी इतने ही और पिरामिड दबे हुए हैं। गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के ७ अजूबों की सूची में शामिल है। यह पिरामिड ४५० फुट ऊँचा है। लगभग ४००० वर्षों तक यह दुनिया की सबसे ऊँची संरचना रहा है।

पिरामिड में प्रकाश, जलवायु तथा ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रूप में रहता है जिसके चलते कोई भी वस्तु विकृत नहीं होती। यह रहस्य प्राचीन काल के लोग जानते थे। इसीलिए वे अपनी कब्रों को पिरामिडनुमा बनाते थे और उसको इतना भव्य आकार देते थे कि वह हजारों वर्ष तक कायम रहे। प्राचीन मिस्री सम्राट अखातून का नाम संस्कृत में अक्षय्यनूत का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है शरीर अक्षय तथा नित नया रहता है।

इस प्रकार पिरामिड विद्या अमरता की विद्या है। प्रतिदिन कुछ समय तक पिरापिड में रहने से व्यक्ति की बढ़ती उम्र रुक जाती है। मिस्र के पिरापिडों पर आज भी शोध जारी है। हर बार यहाँ नए रहस्यों का पता चलता है। समय समय पर दुनिया भर के इंजीनियर और वैज्ञानिक पिरामिड और ममी से जुड़े रहस्यों को समझने के लिए शोध करते रहते हैं। इसी तरह के एक शोध में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में कुछ वैज्ञानिक एक १२ सेंटीमीटर लंबी बोतल के अंदर के राज जानना चाह रहे हैं जो इथोपिया के एक पिरामिड से मिली है। ये खूबसूरत छोटी सी बोतल धातु की नहीं है। मिट्टी और सगंमरमर की बनी है। बोतल करीब साढ़े तीन हजार साल पुरानी बताई जा रही है जिसमें सूख चुका इत्र है। वैज्ञानिकों ने इस बोतल का सीटी स्कैन किया तो पता चला कि इत्र सूख चुका है। खोज बीन करने वालों के मुताबिक इस इत्र का इस्तेमाल मिस्र की तत्कालीन राजकुमारी फाराओ हेट्सेप्सुट करती थीं। हेट्सेप्सुट ने तब के मिस्र पर पच्चीस साल तक राज किया। बहरहाल, वैज्ञानिक चाहते हैं कि इस इत्र की हूबहू नकल तैयार की जाए।

हालाँकि मिस्र के विश्व-प्रसिद्ध गीजा के पिरामिड के अंदर क्या है यह जानने में अभी और समय लगेगा। इसके अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है और वैज्ञानिकों को अभी तक यह समझ में नहीं आ रहा है कि पिरामिड के ऊपर ऐसा क्या है जो इतनी तेज बिजली का उत्पादन कर सकता है कि संपूर्ण पिरामिड बिजली से रोशन हो जाए। एक अरबी, गाइड की सहायता से ग्रेट पिरामिड के सबसे ऊपर पहुँचे। सर सीमन ने इसका खुलासा किया था कि ग्रेट पिरामिड का संबंध आसमानी बिजली से है। इसी तरह गीजा के पिरामिड ही नहीं दुनिया भर के पिरामिड अभी भी रहस्य की चादर में लिपटे हुए हैं।

१ नवंबर २०१६

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