स्वाद और
स्वास्थ्य |
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नारियल के नाना
उपयोग
क्या आप जानते हैं?
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नारियल विश्व में सर्वाधिक उगाए जाने वाले वृक्षों में
से एक है।
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संस्कृत साहित्य में ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में
नारियल का उल्लेख मिलता है।
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नारियल को क्रोहन्स डिजीज के इलाज के लिए एक रामबाण
औषधि माना गया है। |
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विश्व में सर्वाधिक उगाए जाने वाले वृक्षों में से
नारियल भी है। यह खजूर जाति का पेड़ है, जिसका
शास्त्रीय नाम ‘कोकास न्यू की फेर’ है जिसके फल को
नारियल कहते हैं। संस्कृत में नारियल के लिए-
नारिकेल, नारिकेर एवं नालिकेल शब्द का प्रयोग
मिलता है जिसका अर्थ है जल में क्रीड़ा। संसार के
सभी उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों के समुद्र तट नारियल
के घने वनों से आच्छादित हैं। यह केरल, कर्नाटक,
तमिलनाडु, आंधप्रदेश, बंगाल, उड़ीसा, असम राज्यों
तथा अडंमान निकोबार तथा लक्षद्वीप आदि केन्द्र
शासित प्रदेशों में पैदा होता है। मूलतः यह उष्ण
कटिबंध का वृक्ष है। निरन्तर कड़ी धूप का सामना
करने के कारण इसमें ताप सहने की अद्भुत क्षमता है।
दक्षिण भारत के सुरम्य प्रदेश केरल का नामकरण इसी
‘नारिकेल' से हुआ है। नारियल का धार्मिक
अनुष्ठानों और यहाँ के सांस्कृतिक एवं दैनिक जीवन
में बहुत महत्व है। इसी कारण प्रदेश का नाम ‘केरल'
पड़ गया। किसी वृक्ष की महत्ता का यह अत्यन्त
सुन्दर दृष्टांत है। शायद यह विश्व का अकेला फल है
जिसके नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय दिवस भी है जो २
सितंबर को मनाया जाता है। इसकी घोषणा इंडोनेशिया
के जकार्ता शहर में एशियन एंड पैसिफिक कम्यूनिटी
द्वारा इसकी स्थापना के दिन की गयी थी। आज संसार
में जितना नारियल होता है, उसमें भारत का स्थान
दूसरा है।
अनेक नाम-
इस फल को संस्कृत में नारिकेल, मराठी में नारलमाड
गुजराती में नारियल बांग्ला में नारिकेल, तेलगु
में नारिकेलमु कहते हैं, तामिल में तेंन्नामारम,
मलयालम में तेंगा, कन्नड़ में टेंगू, पंजाबी में
नरेल, कोंकण में माड कहते हैं। इसे लैटिन में
न्युसिफेरा, अरबी में जैजो, फारसी में नारगील कहते
हैं।
इतिहास-
इसकी उत्पत्ति न्यूजीलैंड के तट से मानी जाती है
जहाँ से यह विश्व में फैल गया। एक अन्य मत के
अनुसार ५४५ वीं शताब्दी में इसे एक मिस्री पर्यटक
ने इसे भारत और श्रीलंका में देखा था। उसके बाद
मार्को पोलो ने इसे इन्डोनेसिया में खोज निकाला।
१९९५ में नारियल फल के फॉसिल के बारेमें उत्तरी
क्वींसलैंड में जानकारी मिली थी, जहाँ लगभग बीस
लाख वर्ष पहले नारियल के वृक्ष की संभावना की
जानकारी मिली। संस्कृत साहित्य में ईसा पूर्व चौथी
शताब्दी में नारियल का उल्लेख मिलता है। तमिल
साहित्य में पहली शताब्दी से चौथी शताब्दी के बीच
इसका उल्लेख है। हिन्दु महाकाव्य रामायण और
महाभारत और पुराण में भी नारियल का उल्लेख मिलता
है।
चीनी जनश्रुति के अनुसार ‘ई’ नामक राजकुमार का जब
सिर काट दिया गया तो उसका सिर पास के वृक्ष की
शाखा से अड़ गया और वहीं ‘नारियल’ बन गया। कुछ
ग्रंथों में इसकी उत्पत्ति का श्रेय शिव-मित्र नाम
के एक साधु को भी दिया गया है। केरल के तट पर
बच्चे के जन्म पर माता-पिता पाँच नारियल के वृक्ष
लगाते हैं जिससे भविष्य में कभी इसके फल की कमी न
हो।
नारियल के उपयोग-
कठोर भाग के अन्दर कोमल, बड़ी सरलता से काटकर
निकाले जाने योग्य, श्वेत खाद्य पदार्थ होता है
जिसे ‘गिरी' कहते हैं। इसके अन्दर पानी होता है
जिसको निकाला जा सकता है। कच्चे फल ‘डाम’ का पानी
बड़ा ही स्वादिष्ट होता है। साथ ही रुचिकर भी।
कच्चे नारियल का जल स्वादिष्ट शीतल, हृदय के लिए
हितकर, अग्निदीपक, प्यास एवं पित्त को शांत करने
वाला होता है। यह पानी शीतल, हल्का, प्यास बुझाने
वाला व थकावट को दूर करने वाला होता है। गिरी का
पानी जब बिल्कुल सूख जाता है तो अन्दर के सूखे भाग
को पृथक कर लिया जाता है जिसे हिंदी में ‘गोला’ व
‘खोपरा’ कहते हैं यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत
ही लाभदायक है।
खोपरे से तेल निकाला जाता है। तेल मुख्यतः खाने के
काम में आता है। साथ ही उद्योगों में विशेषतः
साबुन वनस्पति और सौंदर्य प्रसाधनों के उद्योग में
काम में आता है। नारियल का बाहरी रेशा, जिसे जटा
भी कहते हैं, रस्से, चटाइयाँ, ब्रश, जाल, थैले आदि
बनाने के काम आता है। गद्दे बनाने में भी इसका
उपयोग होता है। नारियल बाहरी कठोर छिलके से पानी
या तेल रखने के पात्र और हुक्के बनते हैं। इन
पात्रों पर सुंदर नक्काशी के काम किए जा सकते हैं।
इसका धड़ मकानों की धरन, फर्नीचर आदि बनाने और
जलावन के काम आता है, पत्तों से पंखे, टोकरियाँ,
चटाइयाँ आदि बनती हैं और ये छतों के छाजन में भी
प्रयुक्त होते हैं। यह अत्यंत मजबूत होता है और
समुद्र के खारे पानी में भी गलता नहीं।
नारियल की खेती-
बीज के लिए स्वस्थ, गठीले ४० वर्ष के पुराने पेड़
का फल चुना जाता है। बरसात के पहले किसी
संवर्धनशाला में इसे मिट्टी से ढँककर गाड़ देते
हैं। लगभग डेढ़ वर्ष का हो जाने पर पौधे को खेतों
में २० से ३० फुट की दूरी पर लगाते हैं। अच्छी
वृद्धि के लिए पौधे को धूप और खाद की आवश्यकता
होती है। नारियल में साल में ५ से १० बार तक फल
लगते हैं तथा प्रत्येक वर्ष पेड़ में साधारणतया ६०
से १०० फल तक होते हैं। वर्षा के मौसम में नारियल
ज़्यादा उपजता है। नारियल के पेड़ के बीजारोपण से
लेकर फल उत्पादन का समयांतरल पाँच वर्ष का होता
है। परिपक्व पेड़ सालाना छह बार फसल देता है,
जिससे लगभग ३५०० नारियल प्रति एकड़ पेड़ से उतारा
जाता है।
उत्पादन के प्रमुख प्रदेश-
नारियल उत्पादन में केरल, मैसूर, मद्रास और आंध्र
सबसे आगे हैं। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा,
असम, अरब सागर, लक्षदीव (लक्कादीव) और बंगाल की
खाड़ी के अंडमान एवं निकोबार द्वीपों में भी
नारियल उपजता है। भारत के अतिरिक्त लंका,
फिलीपाइन्स, इंडोनीशिया, मलेशिया और दक्षिण सागर
के द्वीपों, अमरीका के उष्णकटिबंधीय प्रदेशों और
प्रशांत महासागर के उष्ण द्वीपों में नारियल
प्रचुरता से उपजता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में-
नारियल को क्रोहन्स डिजीज के इलाज के लिए एक
रामबाण औषधि माना गया है। इस बीमारी में रोगी की
आँतों में जलन, डायरिया, मल में रक्त आना, वजन कम
होना आदि लक्षण होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार
क्रोहन्स डिजीज के उपचार में प्रयोग किए जाने वाले
कॉर्टिकोस्टेराइड्स के समकक्ष नारियल में
फाइटोस्टेराल्स नामक समूह तत्व होता है जो
क्रोहन्स डिजीज में मुकाबला करता है। नारियल हमें
मोटापे से भी बचाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक
स्वस्थ वयस्क के भोजन में प्रतिदिन १५ मिग्रा जिंक
होना जरूरी है जिससे मोटापे से बचा जा सके। ताजा
नारियल में जिंक भरपूर मात्रा में होता है। हैजे
में यदि उल्टियाँ बंद न हो पा रही हों तो रोगी को
तुरंत नारियल पानी पिलाना चाहिए। इससे उल्टियाँ
बंद हो जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार नारियल की
तासीर ठंडी होती है। नारियल का पानी हल्का, प्यास
बुझाने वाला, अग्निप्रदीपक, वीर्यवर्धक तथा मूत्र
संस्थान के लिए बहुत उपयोगी माना गया है।
घरेलू नुस्खे-
नारियल के तेल की मालिश त्वचा तथा बालों के लिए
बहुत अच्छी होती है साथ ही मस्तिष्क भी ठंडा रहता
है। गर्मी में लगने वाले दस्तों में एक कप नारियल
पानी में पिसा जीरा मिलाकर पिलाने से दस्तों में
तुरंत आराम मिलता है।
बुखार के कारण बार-बार लगने वाली प्यास के इलाज के
लिए नारियल की जटा को जलाकर गर्म पानी में डालकर
रख दें। जब यह पानी ठंडा हो जाए तो छानकर इसे रोगी
को पीने दें। इससे प्यास मिटती है।
आँतों में कृमि की समस्या से निपटने के लिए हरा
नारियल पीसकर उसकी एक-एक चम्मच मात्रा का सुबह-शाम
नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। नारियल के पानी की
दो-दो बूँद सुबह-शाम कुछ दिनों तक नाक में टपकाने
से आधा सीसी के दर्द में बहुत आराम मिलता है।
सभी प्रकार की चोट-मोच की पीड़ा तथा सूजन दूर करने
के लिए नारियल का बुरादा बनाकर उसमें हल्दी मिलाकर
प्रभावित स्थान पर पट्टी बाँधें और सेकें। विभिन्न
त्वचा रोगों जैसे खाज-खुजली में नारियल के तेल में
नीबू का रस और कपूर मिलाकर प्रभावित स्थान पर
लगाने से लाभ मिलता है।
स्वस्थ सुंदर संतान प्राप्ति के लिए गर्भवती महिला
को ३-४ टुकड़े नारियल प्रतिदिन चबा-चबाकर खाने
चाहिए। इसके साथ एक चम्मच मक्खन, मिसरी तथा थोड़ी
सी पिसी काली मिर्च मिलाकर चाटें। बाद में थोड़ी
सी सौंफ चबाएँ। इसके आधे घंटे बाद तक कुछ भी
खाना-पीना नहीं चाहिए। पुराने सूजाक और मूत्रकृच्छ
में भी इससे आश्चर्यजनक लाभ होता है।
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नवंबर २०१६ |
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