| 
                    
					 “विजय, 
					हमारी शादी नहीं हो सकती।” नेहा ने आवाज़ में बिना कड़वाहट 
					लाते हुए कहा। “मगर क्यों? हम दोनों प्यार करते हैं, पिछले तीन सालों से एक 
					दूसरे को जानते हैं, तुम्हारे ममी पापा मुझे पसन्द करते हैं और 
					मेरे परिवार वाले भी तुम्हें बहू बनाना चाहते हैं। फिर दिक्कत 
					क्या है?”
 “बात यह है विजय कि मुझे बच्चे अच्छे नहीं लगते। मैं किसी भी 
					क़ीमत पर माँ नहीं बनूँगी और तुम्हारे माँ बाप को घर का वारिस 
					चाहिए होगा। ऐसे में हम दोनों अपने रिश्ते नॉर्मल नहीं रख 
					पाएँगे। तनाव पैदा होगा ही। फिर शायद हम दोनों को अलग होना 
					पड़े। उससे बेहतर है कि हम विवाह के बारे में सोचें ही नहीं।”
 “अगर तुम मुझसे शादी नहीं करोगी तो क्या सारी उम्र कुँवारी 
					रहोगी?... अरे जिससे भी शादी करोगी, बच्चे तो पैदा होंगे ही।”
 “दरअसल अब तो मुझे शादी भी एक गैर-ज़रूरी सी इंस्टीट्यूशन लगती 
					है। मैं शायद लिव-इन अरेंजमेण्ट में ज़्यादा खुश रह पाऊँगी... 
					विजय हम दोनों को अपनी अपनी आज़ादी भी रहेगी और एक दूसरे के 
					प्रति कमिटमेंट भी। हम दोनों एक दूसरे की निजी इच्छाओं का आदर 
					करते हुए एक दूसरे के साथ ज़िन्दगी बिता सकते हैं।”
 
 “तुमने मुझे बहुत मुश्किल इम्तहान में डाल दिया है नेहा। लेकिन 
					मैं तुम्हारी बात से न तो नाराज़ हूँ और न ही इस रिश्ते को 
					तोड़ने के बारे में सोच रहा हूँ। यह प्रॉब्लम सिर्फ़ तुम्हारी 
					ही नहीं है। हम दोनों की है। हमें इसकी तह तक जाना होगा और 
					इसका कोई न कोई हल ढूँढना होगा।”
 “क्या तुम्हारा माँ बनने को बिल्कुल भी जी नहीं चाहता? कहा 
					जाता है कि औरत जब तक माँ न बने, तब तक अधूरी रहती है। क्या 
					तुम्हें यह अधूरापन कचोटेगा नहीं?”
 “मेरी ज़िन्दगी में बच्चों के लिये कोई जगह ही नहीं है विजय। 
					जब कभी किसी बच्चे को रोते सुनती हूँ तो लगता है कि दुनिया का 
					सबसे कर्कश शोर सुन रही हूँ। बच्चे की मुस्कुराहट में मुझे 
					साँप की फुफकार सुनाई देती है। तुम नहीं समझ पाओगे। आज पहली 
					बार तुमने कहा कि हम दोनों शादी करेंगे और हमारे बच्चे होंगे। 
					आज से पहले तुमने बच्चों की बात कभी नहीं की। इसलिये मैंने भी 
					कभी अपने मन की बात तुम्हें नहीं बताई।”
 
 विजय के लिये नेहा की बात समझ पाना कोई आसान काम नहीं था। 
					दोनों ने हमेशा अपने वर्तमान के बारे में बातें की हैं, अपने 
					अपने कैरियर के बारे में सोचा है, भविष्य की कल्पनाएँ की हैं, 
					किन्तु कभी भी अपने अतीत एक दूसरे के सामने नहीं खोले। विजय 
					नेहा को खोना नहीं चाहता। किन्तु वह नेहा की बात को बिना विचार 
					किये मान भी नहीं लेना चाहता। पेशे से वकील है। बिना किसी बात 
					पर पूरा विचार किये हाँ या ना नहीं कहेगा।
 
 नेहा अपनी बात कह कर वापिस आ गई है अपने अपार्टमेण्ट में। 
					अकेली रहती है। इसी शहर में पैदा हुई, बड़ी हुई। इसी शहर में 
					उसके माता पिता भी रहते हैं। फिर उसे अकेले रहने की क्या 
					आवश्यकता है? उसके पिता नरेन शायद स्थिति को समझते हैं और नेहा 
					से कभी शिकायत नहीं करते। किन्तु माँ! भला माँ कैसे इस स्थिति 
					के साथ अपने आपको एडजस्ट करे। पूनम हमेशा नेहा को समझाने का 
					प्रयत्न करती है। उसके फ़्लैट में भी जाती है, मगर हर बार हार 
					कर वापिस चली आती है।
 
 नेहा ने फ़्लैट भी घाटकोपर से बहुत दूर लिया है। लोखण्डवाला 
					अँधेरी में। अपने माँ बाप से दूर रहना चाहती है। उनके प्रति एक 
					चुप्पी साध रखी है। कुछ कहती नहीं। बस माँ की बात सुन लेती है 
					और कड़वाहट से भरी मुस्कान चेहरे पर ले आती है। पूनम को समझ ही 
					नहीं आता कि बेटी को वापिस बुलाए तो कैसे। वह जब तक नेहा को 
					उसके जुड़वाँ भाइयों का वास्ता नहीं देती, नेहा माँ की बात 
					सुनती रहती है। लेकिन जैसे ही उसकी माँ अभय और अक्षय का नाम 
					लेती है, नेहा अपना रटा रटाया जवाब दोहरा देती है, “माँ, आप 
					चलिये, मुझे अभी बैठ कर स्क्रिप्ट पर काम करना है। कल शूटिंग 
					है और अभी तक सीन भी तैयार नहीं हुए।
 
 अभय और अक्षय का नाम सुनते ही नेहा अपने बचपन में वापिस पहुँच 
					जाती है। अभी शायद दो ढाई वर्ष की ही होगी। अपने पापा से ज़िद 
					करने बैठ जाती, “पापा मुझे एक काका ला दो न! मैं उसके साथ 
					खेलूँगी।”
 
 नरेन बस बेटी के सिर पर हाथ फेरता और सीने से लगा कर प्यार कर 
					लेता। नरेन अपने काम के सिलसिले में फ़्रैंकफर्ट गया था। वहाँ 
					कॉफऑफ स्टोर से अपनी नेहा के लिये एक रबर का बना शिशु खरीद 
					लाया था। नेहा उसे देख कर इतरा इतरा कर सबको बताती, “यह मेरा 
					मिंकु है। मेरा भैया।”
 
 नेहा अपने छोटे काके के साथ मस्त हो गई थी। नरेन और पूनम अपनी 
					बच्ची की सादगी पर खुश होते रहते। नेहा की छोटी से छोटी ज़रूरत 
					भी नरेन के लिये जैसे भगवान का आदेश होती। पूनम नेहा को 
					गायत्री मंत्र सिखाती। फिर आरती और नेहा अपनी तोतली ज़बान में 
					शुरू हो जातीं, “ओम भूल भवा शवा... ”
 पिता और बेटी में एक खेल भी चलता रहता। नरेन पूछता, “नेहा 
					किसकी बेटी है?” और नेहा का लम्बा सा जवाब आता, “पापा, ममी, 
					दादी, बाऊजी, नेहा, मिन्कू सबकी बेटी है, नेहा।”
 
 खेल कैसे अपना महत्व खो देते हैं। अचानक अतीत में जाकर ग़ायब 
					हो जाते हैं। आज न तो इस सवाल का ही कोई महत्व है और न ही जवाब 
					का।
 किन्तु जब इन खेलों का महत्व था, उन दिनों नरेन के एक दोस्त की 
					पत्नी ने होली स्पिरिट में अपने पुत्र को जन्म दिया। नरेन, 
					पूनम और नेहा भी नये मेहमान को देखने अस्पताल गये। नरेन और 
					पूनम ने बच्चे को शगुन डाला और नेहा उसके निकट जा कर खड़ी हो 
					गई। वह उस सफेद कपड़े में लिपटे शिशु को देखे जा रही थी। वह 
					कभी अपनी गोद में उठाए अपने मिंकु को देखती तो कभी नवजात शिशु 
					को छू कर देखती। वह समझने का प्रयास कर रही थी कि यह नवजात भला 
					उसके अपने मिन्कु से किस तरह अलग है। बालसुलभ मन कुछ समझ नहीं 
					पा रहा था। इतने में नवजात शिशु कुनमुनाया। नेहा के नेत्र फैल 
					गये। ‘ये काका तो रोता भी है!’
 
 जब तक अस्पताल में रहे, नेहा अपने मिन्कु को देखती रही और 
					पालने में पड़े नवजात शिशु के साथ उसकी तुलना करती रही। दोनों 
					के बीच के अन्तर को समझने का प्रयास जारी था। घर पहुँचते 
					पहुँचते नेहा थक गई थी। जल्दी ही सो गई और पालने में पड़े शिशु 
					के सपने देखती रही। सुबह उठने के बाद भी उसकी परेशानी क़ायम 
					थी। अब वह चाहती थी कि उसका मिन्कु भी कुनमुनाए, हँसे और उससे 
					बातें करे।
 मन ही मन फ़ैसला किया और जा कर सीधी नरेन और पूनम के सामने 
					खड़ी हो गई, “पापा, मुझे ये वाला काका नहीं चाहिये।” और उसने 
					अपना मिन्कु नरेन की गोद में डाल दिया। “मुझे ब्लड वाला काका 
					चाहिये। वैसा ही काका जैसा कल अस्पताल में देखा था।”
 
 “ब्लड वाला काका!” पूनम और नरेन थोड़े हैरान हुए और जब बात समझ 
					में आई तो दोनों हँसने लगे। “पापा, ममी, आप दोनों हँसिये मत और 
					अस्पताल से वैसा काका मेरे लिये ले कर आओ।” नेहा ने फ़रमान 
					सुना दिया था।
 पूनम और नरेन के लिये बात आई गई हो गई। मगर नेहा गुमसुम हो गई। 
					उसे अपने मिन्कु में कमियाँ ही कमियाँ दिखाई दे रही थीं। भला 
					ऐसा कैसे हो सकता है कि पालने वाला काका हिलता भी था, मुँह से 
					आवाज़ भी निकालता था और छूने पर अपने जैसा भी लगता था? फिर 
					उसका मिन्कु क्यों वैसा नहीं करता? नेहा की भूख भी कम होती जा 
					रही थी। उसने दो दिन तक दूध भी नहीं पिया। हर वक़्त ब्लड वाले 
					काके के बारे में सोचती रहती।
 
 पूनम से रहा नहीं गया, “नरेन, वैसे नेहा गलत तो नहीं कह रही। 
					तुम सोचो अगर कल को हम दोनों को कुछ हो जाए तो नेहा पूरी 
					दुनिया में अकेली हो जाएगी। ऐसा कोई भी तो नहीं जिसे वह अपना 
					कह पाए। मुझे लगता है कि हमारा एक बच्चा और होना चाहिये।”
 
 “पुन्नो, मुझे तो बस एक ही डर लगता है। दरअसल हम नेहा को इतना 
					प्यार करते हैं, खासतौर पर मैं तो उस पर जान देता हूँ। अगर कल 
					को हमारा दूसरा बच्चा हो गया तो उस बच्चे के साथ अन्याय हो 
					जाएगा। मैं तो कभी भी उस बच्चे को प्यार नहीं कर पाऊँगा।”
 
 पूनम ने हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा, “जब मुझसे शादी 
					की थी तब भी तो यही कहते थे कि अब दुनिया में किसी और को प्यार 
					नहीं दे पाओगे। नेहा ने अपने प्यार का इन्तज़ाम ख़ुद ही कर 
					लिया न! दूसरा बच्चा भी तुम्हारे दिल में प्यार की लौ स्वयं ही 
					जला लेगा।”
 “यार तुम्हारे पास हर बात का जवाब मौजूद रहता है। तुम कमाल की 
					औरत हो।”
 “जी नहीं, मैं किसी कमाल वमाल की औरत नहीं हूँ। मैं तो बस आपकी 
					औरत हूँ!” अब शरारत पूनम की आँखों में भी दिखाई देने लगी थी। 
					उसकी शरारत का ही असर था कि कुछ ही पलों में पूनम नरेन की 
					बाहों में समा गई।
 
 रात को डिनर टेबल पर नरेन ने नेहा को अपनी गोद में बिठा लिया-
 “नेहा बेटा, हमने तुम्हारी बात मान ली है। अस्पताल को ऑर्डर कर 
					दिया है कि हमें एक ब्लड वाला काका चाहिये। उन्होंने भी हाँ कर 
					दी है। मगर वो कह रहे हैं कि वेटिंग लिस्ट बहुत लम्बी है। हमसे 
					पहले कतार में बहुत से और लोग भी हैं। हमारा नम्बर आते आते नौ 
					दस महीने तो लग ही जाएँगे। अब तुम खुश हो जाओ। ममी पापा आपके 
					लिये ब्लड वाला काका ज़रूर ले कर आएँगे।”
 नेहा की आँखें खुशी से भर आईं, “सच्ची पापा! आप ब्लड वाला 
					मिन्कु ले कर आएँगे? मैं अपनी सारी फ़्रेण्डस को बताऊँगी कि आप 
					अस्पताल से ब्लड वाला काका ले कर आने वाले हैं।”
 
 नेहा का इन्तज़ार शुरू हो गया। रोजाना एक ही सवाल, “पापा, अभी 
					कितने महीने पूरे हो गये? आप लोग अस्पताल कब जाएँगे? हमारा 
					काका भी ब्लड वाला ही होगा न? वो कुन-मनु कुन- मुन करेगा न?”
 पूनम के टेस्ट से पता चल गया कि वह गर्भवती है, “लो जी हमने कर 
					दिया इन्तज़ाम आपकी बिट्टो के मिन्कु जी का। अब आप अपना ख़्याल 
					रखा करिये। कुछ भी भारी सामान नहीं उठाना है। अब हमारा काम तो 
					ख़त्म हो गया, हम कर चुके अपनी मेहनत। अब आपकी बारी है।”
 “आपका काम अच्छा है। बस कुछ ही मिन्टों में ख़त्म। हमारी मेहनत 
					तो पूरे नौ महीने चलने वाली है!”
 
 नेहा के काम बहुत बढ़ गये हैं। अब उसे ज़िद है कि पालना जल्दी 
					से साफ़ किया जाए ताकि काका उसमें लेट सके। वो अस्पताल से आने 
					वाले ब्लड वाले मिन्कु के लिये कपड़े बनवाना चाहती है। आजकल 
					अपने आपसे बातें करती रहती है। घर के किसी कोने को पकड़ कर बैठ 
					जाती है। नरेन दूर से देखता है। पूनम खुश है कि नेहा नये आने 
					वाले मेहमान को लेकर उत्साहित है।
 अस्पताल वाले भी शायद नेहा के दिल की बात जान गये हैं। इसीलिये 
					उन्होंने पूनम और नरेन को एक नई ख़बर दी है। नेहा यह ख़बर सुन 
					कर ख़ुश भी है और हैरान भी, “नेहा बेटा, अस्पताल वालों ने कहा 
					है कि हमारी नेहा क्योंकि अच्छी बच्ची है और ममी पापा को तंग 
					नहीं करती है इसलिये वो हमें एक नहीं दो दो ब्लड वाले काके 
					देंगे। अब तुम ही बताओ कि एक काके का नाम तो तुमने रख लिया 
					मिन्कु, तो अब दूसरे का नाम क्या रखोगी?”
 
 नेहा को अपने पापा की बात समझ ही नहीं आ रही थी। कहाँ तो एक 
					काके के लिये प्रतीक्षा हो रही थी। अब अचानक दो दो काके! 
					“पापा, सची में दो दो काके मिलेंगे ? आप सच कह रहे हो न? ”
 “बिट्टो पापा कभी आपसे झूठ बोलते हैं क्या? ”
 “नहीं। मेरे पापा कभी झूठ नहीं बोलते हैं।... पर पापा अब मेरा 
					काम कितना ज्यादा हो जाएगा। मुझे मिन्कु के साथ साथ चिन्कु का 
					भी ख़्याल रखना पड़ेगा। है न, पापा?”
 
 अन्जाने में नेहा ने अपने होने वाले जुड़वाँ भाई को नाम भी दे 
					दिया था। अब नेहा, पूनम और नरेन मिन्कु और चिन्कु के जन्म की 
					प्रतीक्षा कर रहे थे। नेहा को ग़ुस्सा भी आ रहा था कि ममी दिन 
					ब दिन मोटी होती जा रही है, “ममी आप अगर ऐसे ही मोटी होती गईं 
					न, तो एक दिन फट जाएँगी।”
 नरेन चिन्तित है कि जुड़वाँ बच्चों के होने से नेहा पर क्या 
					असर पड़ेगा, “पुन्नो, नेहा कहीं अकेली न पड़ जाए। दो दो बच्चों 
					की ज़िम्मेदारी उठाने में हम कहीं नेहा को नेगलेक्ट ना करने 
					लगें।”
 “आप बिल्कुल चिन्ता न करें। बच्चे बहुत एडजस्टिव होते हैं। हर 
					हालात में ख़ुश रहना जानते हैं ये लोग।”
 नेहा के सपने अब मिन्कु और चिन्कु के इर्द गिर्द ही घूमते 
					रहते। सोते जागते उनके बारे में अपने आपसे ही बातें करती रहती। 
					उन्हें नहलाना, खाना खिलाना, तैयार करना आदि आदि।
 
 अस्पताल के प्राइवेट कमरे में दो मरीज़ थे। दोनों के बीच एक 
					पार्टीशन लगा था। नेहा आहिस्ता आहिस्ता अपनी माँ के पलंग के 
					निकट पहुँची। मगर पालना तो खाली था। वहाँ तो एक भी ब्लड वाला 
					काका नहीं था। पापा ने तो दो दो की बात कही थी। माँ की तरफ़ 
					देखा। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ था। चुपके से पापा का हाथ पकड़ 
					कर धीमी आवाज़ में पूछा, “पापा, मिन्कु चिन्कु कहाँ हैं? ”
 नरेन ने पूनम की तरफ देखा, “वो नर्स अभी ले गई है। सफाई का 
					टाइम है। अभी लाती ही होगी।”
 नेहा के लिये एक एक पल गुज़ारना कठिन हो रहा था। अन्ततः नर्स 
					शिशुओं को ले आई। नेहा उन दोनों को उचक उचक कर देख रही थी। 
					एकदम गोरे और लाल दिखाई दे रहे थे। उसके पापा और ममी ने उसकी 
					बात मान ली थी। और हमेशा की तरह एक नहीं दो दो चीज़ें ला कर दी 
					थीं। “ममी ये दोनो हमारे हैं न, हम इनको घर ले जा सकते हैं?”
 “हाँ मेरी बिट्टो ये दोनो तुम्हारे ही हैं। अब तुमको ही इनका 
					ध्यान रखना है।”
 “पापा देखो कैसे मज़े मज़े में सो रहे हैं ! इनको पता है कि 
					इनकी दीदी इनको मिलने आई है? घर आने दो इनको, फिर इनको देखती 
					हूँ।”
 
 नर्स भीतर आई। पूनम का तापमान थर्मामीटर लगा कर देखा। “तुम 
					देखा, अभी ईदर बॉयस का सीज़न होता। परसों से सभी के लड़के ही 
					पैदा हो रहे। और तुम्हारा तो दो दो हो गया। वैरी लक्की कपल!”
 नेहा कुछ समझ नहीं पाई कि लड़के पैदा होने से लक्की कैसे हो 
					जाते हैं। उसे समझ कर लेना भी क्या था। उसे तो सिर्फ़ अपने 
					मिन्कु चिन्कु से काम था। “ममी, मैं मिन्कु चिन्कु के खिलौने 
					यहाँ ले आऊँ? ... दोनों बोर हो जाते होंगे।”
 नरेन और पूनम बस हँस दिये।
 मिन्कु और चिन्कु घर आ गये। ममी के पलंग के साथ रखे पालने को 
					बार बार छूने का प्रयास करती नेहा। आज फिर उसने वही किया। पहले 
					मिन्कु को किस किया और फिर चिन्कु को। और दोनों रोने लगे। आज 
					पूनम ने डाँट लगा दी, “क्या कर रही है नेहा। रुला दिया न दोनों 
					को! अब तुम बड़ी हो रही हो। थोड़ी मैच्योर हो जाओ।” पूनम ने 
					अपनी थकावट का बोझ अचानक नेहा के बाल-कन्धों पर डाल दिया था।
 
 एकाएक सहम गई नेहा। अचानक बड़ी हो गई। आँसुओं को आँखों की सीमा 
					के भीतर ही रोक लिया। बाहर नहीं लुढ़कने दिया। आज पहली बार 
					पूनम ने अपनी नेहा से ग़ुस्से में बात की थी। नेहा पूरी तरह से 
					चकराई खड़ी थी। वह शाम तक पालने के निकट भी नहीं गई। शाम को जब 
					नरेन घर आया तो वह अपने पापा के साथ चिपक कर खड़ी हो गई। नरेन 
					ने गोद में उठाया, उसके गाल पर पपी कर दी। और कहा, “हमारी 
					बिट्टो रानी कैसी है? उसके दोनो भाई क्या कर रहे हैं। आजकल तो 
					दादी अम्मा को बहुत काम रहता होगा। दो दो बच्चों की देखभाल जो 
					करनी होती है"।
 
 नेहा अपने पापा को बस देखती रही। फिर अचानक शून्य में ताकने 
					लगी। और अंततः रो दी। नरेन चकरा गया। कि यह क्या हुआ। उसने 
					प्रश्नवाचक दृष्टि से पूनम की ओर देखा। पूनम ने अपराधी सा 
					महसूस करते हुए कहा-
 “आज बिट्टो रानी को डाँट पड़ी है। मिन्कु चिन्कु को रुला दिया, 
					बस तब से गुमसुम है। पूरा दिन मुझसे एक बात नहीं की। बस दूर से 
					देखती रही दोनों भाइयों को।”
 “अरे आपने मेरी बेटी को डाँटा! हम आपसे बिल्कुल बात नहीं 
					करेंगे। अपनी बेटी के साथ चले जाएँगे। आपके साथ बिल्कुल नहीं 
					रहेंगे।”
 “नहीं पापा, ममी ने कुछ भी नहीं कहा। आप यहीं रहो। कहीं नहीं 
					जाओ।” रुआँसी नेहा अचानक पूरी तरह से परिपक्व हो गई थी। पूनम 
					और नरेन के हैरान होने की बारी थी अब।
 
 पूनम का पूरा दिन अब मिन्कु और चिन्कु की देखभाल में ही बीतने 
					लगा। नेहा के हिस्से में चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा था। पूनम को 
					स्वयं हैरानी भी होती कि न चाहते हुए भी यह सब कैसे हो जाता 
					है। नरेन आजकल दफ़्तर के काम से कुछ अधिक ही दौरों पर रहने लगा 
					था। पूनम पर ज़िम्मेदारी का बोझ बढ़ता जा रहा था।
 आज पूनम ने नेहा को ख़ुश करने के लिये स्ट्रॉबरी कस्टर्ड बनाया 
					है। नेहा को यह स्वाद प्रिय है। क्योंकि कस्टर्ड का रंग भी 
					गुलाबी सा हो जाता है और ऊपर मलाई जम जाती है, “हैलो मेरी 
					बिट्टो, देखो तुम्हारे लिये आज तो कस्टर्ड बनाया है। बीच में 
					केले भी डाले हैं काट कर। आज हमारी रानी बिटिया कस्टर्ड 
					खाएगी!”
 “नहीं ममी, मेरा दिल नहीं कर रहा खाने को।”
 पूनम कुछ समझ नहीं पाई। भला यह कैसे हो सकता है कि नेहा 
					कस्टर्ड खाने से इन्कार कर दे? ज़रूर कुछ ऐसा है जो नहीं होना 
					चाहिये। पूनम ने ज़िद नहीं की। नेहा सोने के लिये अपने बेडरूम 
					की तरफ़ चल दी। जबसे मिंकु और चिंकु पैदा हुए हैं, नेहा के 
					लिये माँ का आँचल पराया सा हो गया है। उसे माँ की गरमाहट की 
					जगह अलग कमरे की सर्द दीवारों के साथ जुड़ना पड़ता है।
 
 नेहा सुबह स्कूल जाने लगी है। नर्सरी। अब पूनम के लिये समस्या 
					है। उसी वक़्त उसके मिंकु और चिंकु आसमान सिर पर उठा लेते हैं। 
					एक का नैपी बदलना है। दूसरा दूध के लिये चिंघाड़ रहा है। “नेहा 
					अब तुम बड़ी हो गई हो। कम से कम अपना कोई काम तो खुद किया करो। 
					मेरा तो दिमाग़ खराब हो जाता है। सुबह सुबह उठ कर ये करो, वो 
					करो! तुम अपनी यूनिफ़ॉर्म तो खुद पहन लिया करो।”
 नेहा ने अपनी माँ की बात को बहुत गंभीरता से ले लिया है। वह 
					अपना दूध भी स्वयं ही गरम करने के लिये गैस चूल्हे के पास 
					पहुँच गई। नन्हीं सी नेहा एड़ियाँ उचका कर गैस के ऊपर रखे दूध 
					को देखने का प्रयास करती है। बहुत आसान नहीं है। वही होता है 
					जो नेहा नहीं चाहती। दूध नेहा की यूनिफ़ॉर्म पर गिर गया। 
					चिल्लाई नेहा। “अब क्या गिरा दिया!!” हड़बड़ाती हुई पूनम किचन 
					में दाख़िल होती है।
 “पूरी यूनिफ़ॉर्म गन्दी कर ली! तुम कभी सुधर नहीं सकतीं! ... 
					चलो अब जा कर दूसरी यूनिफ़ॉर्म निकालो।”
 सन्नाटे से भरी आँखें झपक भी नहीं पा रही थीं। मन में बस एक ही 
					विचार आ रहा था - ‘ममी ने एक बार भी नहीं पूछा कि नेहा तुम जल 
					तो नहीं गईं? आँसुओं को अब आँखों की कैद में रोक पाना छोटी से 
					नेहा के लिये कठिन हो रहा था। दर्द शरीर से कहीं अधिक अब दिल 
					में हो रहा था। दिमाग़ सुन्न हो रहा था। अल्मारी खोली। सभी 
					कपड़े एक ही रंग के लग रहे थे। यूनिफ़ॉर्म ढूँढ पाना मुश्किल 
					होता जा रहा था। बिना इस्तरी किये कपड़े पहन लिये। ममी तो कभी 
					भी ऐसे कपड़े पहन कर स्कूल नहीं जाने देती थी। फिर आज...?'
 
 अब नेहा को अकेले ही स्कूल बस के लिये दूसरी मंज़िल से नीचे 
					जाना पड़ता है। पहले तो ममी लिफ़्ट से नीचे छोड़ कर, बस में 
					बैठा कर आती थी। नेहा को समझ नहीं आ रहा कि उसका कुसूर क्या 
					है। सीढ़ियों में पान की पीक देख कर नेहा को उबकाई महसूस होती 
					है। लिफ़्ट से ऊपर नीचे आने के मज़े से भी वंचित!
 
 नेहा सहमती जा रही है। उसकी टीचर भी चिन्तित है। एक दिन नेहा 
					की ममी को बुलवा भेजती है। पूनम पड़ोस की मिसेज गुलवाड़ी से 
					मदद माँगती है। “अरे मिसेज़ दीवान, अगर पड़ोसी ही पड़ोसी के 
					काम नहीं आएगा तो भला दुनिया कैसे चलेगी? आप बेफ़िक्र हो कर 
					बच्ची के स्कूल जाइये। चिन्ता नको! अपुन है न। मिन्कु और 
					चिन्कु को अपुन देख लेगा। अरे हाँ पूनम जी आते वक्त रास्ते में 
					से एक लिटर दूध मेरे लिये लेते आइयेगा। घर में दूध ख़त्म हो 
					गया है।”
 पूनम को समझ नहीं आ रहा कि टीचर क्यों बुला रही है। नेहा के 
					रिज़ल्ट तो बुरे नहीं आते। पढ़ाई में तो अच्छी भली है, फिर 
					समस्या क्या हो सकती है?
 पूनम नेहा की क्लास में पहुँच गई है। मिसेज़ कूपर भली महिला 
					है। पूनम की आँखों की अनिश्चितता को समझ रही है। किन्तु बच्चों 
					के सामने बात नहीं करना चाहती। क्लास के बाहर आ गई है। पूनम 
					अभी तक अभिवादन से आगे नहीं बढ़ पाई है। “मिसेज़ दीवान, आप सोच 
					रही होंगी कि मैंने आपको स्कूल में क्यों बुलाया है?” पूनम 
					मिसेज़ कूपर की बात सुनने के लिये लगभग उतावली हो रही थी।
 
 “बात यह है मिसेज़ दीवान, मैं पिछले कुछ हफ़्तों से नेहा में 
					खासा बदलाव महसूस कर रही हूँ। यह क्लास में एकदम चुप रहती है। 
					पहले नेहा क्लास में हँसी मज़ाक करती थी। सभी बच्चों के साथ 
					इंटर-एक्शन करती थी, सभी नर्सरी राइम्ज़ आगे बढ़ बढ़ कर सुनाती 
					थी, मगर अभी आई नोटिस कि यह एकदम डरी डरी रहती है। थोड़ी थोड़ी 
					बात पर रोने लगती है।”
 पूनम एकटक टीचर की बात सुन रही थी। परेशानी उसके माथे पर बल 
					बनाए जा रही थी। वह पूरी बात जानना चाह रही थी।
 “नाउ लुक मिसेज़ दीवान, आजकल नेहा की यूनिफ़ॉर्म ठीक से आयरन 
					नहीं होती है, उसके जूते बहुत गन्दे रहते हैं और कई बार तो 
					जूते के फीते भी ठीक से नहीं बाँधे होते।... मैं यह सब भी समझ 
					लेती। मगर कल मैंने जब नेहा का होमवर्क चैक करने के लिए इसकी 
					नोटबुक खोली, आई सॉ दिस!”
 
 पूनम ने कॉपी अपनी आँखों के सामने की – वहाँ एक औरत की ड्राइंग 
					बनी थी और नीचे टेढ़े मेढ़े अक्षरों में लिखा था – ममी गंदी 
					है।
 पूनम लगभग हकलाते हुए अपनी सफ़ाई दे रही थी, “वो क्या है 
					मिसेज़ कूपर पाँच महीने पहले नेहा के जुड़वाँ भाई पैदा हुए 
					हैं। शायद मैं उसे पूरा टाइम नहीं दे पा रही, इसीलिये रिएक्ट 
					कर रही है, लेकिन मैंने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था कि इसके मन ही 
					मन में इतनी प्रॉब्लम्स चल रही हैं।”
 
 मिसेज़ कूपर ने बहुत शान्त भाव से पूनम की बात सुनी, “लुक 
					मिसेज़ दीवान, मैं आपकी दिक्कतें समझ सकती हूँ, मगर आपको नेहा 
					को टाइम देना ही पड़ेगा। आप चाहें तो फुल-टाइम बाई रखिये। मैं 
					आपको एक बात साफ़ साफ़ बता दूँ कि इस हालत में लड़की पर काफ़ी 
					दबाव बन रहा है। बाद में आपको उसे किसी साइकेटेरिस्ट को दिखाना 
					पड़ सकता है। ठीक यही रहेगा कि आप अपने पति से मामला डिस्कस 
					करें और इससे पहले कि बात हाथ से खिसकने लगे, इसका कुछ इलाज 
					ढूँढने की कोशिश करें।”
 
 थकी हारी टूटी पूनम घर वापिस आ गई। वह रास्ते में से मिसेज़ 
					गुलवाड़ी के लिये दूध ख़रीदना भी भूल गई। उसके दिमाग़ में बार 
					बार यही बात बजती जा रही थी – ममी गन्दी है! क्या वह सच में ही 
					गन्दी है? क्या वह अपनी बेटी को पूरी तरह से नेगलेक्ट कर रही 
					है? लिफ़्ट में घुसते घुसते उसे याद आया कि मिसेज़ गुलवाड़ी के 
					लिये दूध खरीदना तो भूल ही गई। फिर से वापिस लौट पड़ी। उनके 
					सामने शर्मिन्दा नहीं होना चाहती थी। अभी तो स्कूल में मिली 
					शर्मिन्दग़ी से ही नहीं उबर पाई है।
 मन में बैठा चोर कहीं गुस्सा भी दिला रहा था कि आने दो आज घर। 
					इतनी पिटाई लगाऊँगी कि याद रखेगी उम्र भर। मगर फिर दिल में 
					बैठे डर ने समझाया कि मामला और बिगड़ न जाए। स्कूल में बात फैल 
					जाएगी। अभी तक तो केवल अपनी कॉपी में ही लिख रही है, यदि छोटी 
					सी आफत ने लोगों से कहना शुरू कर दिया तो?
 
 नेहा घर लौटी तो बुरी तरह से ख़ौफ़ज़दा थी। माँ की नज़रों से 
					नज़रें नहीं मिला रही थी। पूनम ने कोई बात नहीं की। वैसे यह भी 
					अच्छा था कि मिन्कु और चिन्कु दोनों सो रहे थे। आज उसने नेहा 
					के कपड़े बदलवाए। और नाश्ता भी उसके आगे रखा। उससे बातचीत भी 
					की, “बेटा आज स्कूल में क्या क्या पढ़ाया?”
 “पॉली पुट दि कैटल ऑन...” नेहा के चेहरे की घबड़ाहट अभी तक सहज 
					नहीं हुई थी। एकाएक मिन्कु चिन्कु के रोने की आवाज़ आई। नेहा 
					उचक कर उठी, “ममी मैं देखती हूँ।” फिर अचानक ठिठक कर खड़ी हो 
					गई। “नहीं आप देख लीजिये।”
 नेहा की आँखों का दर्द आज पहली बार पूनम को महसूस हुआ।
 शाम को नरेन घर लौटा। अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक थका हुआ 
					लग रहा था। पूनम भाँप गई कि यह बात करने का सही मौक़ा नहीं है। 
					उसने नरेन को चाय बना कर दी। चाय पीकर नरेन ने नेहा को अपने 
					पास बुलाया, प्यार किया, “हाँ मेरी बिट्टो रानी, आज स्कूल कैसा 
					रहा?”
 “पापा, आज स्कूल में एक नई पोयम सिखाई। पॉली पुट दि कैटे 
					ऑन...”
 “बिट्टो कैटे नहीं, कैटल। बोलो कैटल!”
 “कैटल।”
 “बहुत अच्छे बिट्टो!”
 “पॉली पुट दि कैटल ऑन...”
 “हाँ जी, हमारी बेटी कितनी क्लैवर है। देखो बेटा ऐसे ही रोज़ 
					पापा को बताया करो कि स्कूल में क्या क्या सीखा।”
 “यस पापा!..”
 “और हमारी बिट्टो अपने भाइयों के साथ खेली क्या? क्या कहते हैं 
					भैया अपनी दीदी को? कहीं तंग तो नहीं करते? ”
 “नहीं पापा!... वो तो ममी को तंग करते हैं। मुझे बिल्कुल नहीं 
					करते।” नेहा उठी और अपने कमरे की तरफ़ चल दी।
 मिन्कु चिन्कु सो गये। टीवी पर कार्टून देखते देखते नेहा भी सो 
					गई, “हाँ जी, अब बताइये पुन्नो जी; भला आपका दिन कैसा बीता?”
 “आज नेहा की टीचर ने स्कूल बुलाया था, मिसेज़ कूपर ने।”
 “क्यों नेहा ठीक से पढ़ाई नहीं कर रही क्या? मुझे तो उसने अपनी 
					नई पोयम ठीक से सुनाई।”
 “बात खासी सीरियस है जी। टीचर कह रही थी कि नेहा क्लास में 
					चुपचाप रहने लगी है। परेशान दिखती है। और उसने एक पेंटिंग बनाई 
					है, एक औरत की पेंटिंग जिस के नीचे लिखा है ममी गन्दी है!”
 “क्या!... मगर क्यों? उसने ऐसा क्यों किया?... क्या तुमसे 
					नाराज़ चल रही है?”
 “बात मज़ाक की नहीं है जी, इस पर सीरियसली विचार करना 
					पड़ेगा।... आपको तो पता ही है कि मुझे सारा दिन मिन्कु और 
					चिन्कु से ही फुरसत नहीं मिल पाती।... आपको पता है, अब वो 
					मिन्कु चिन्कु के नज़दीक भी नहीं आती।... पहले कैसे कहा करती 
					थी कि दोनों काके उसके अपने हैं। मिन्कु चिन्कु उसके बेटे हैं। 
					अब तो उनके रोने की आवाज़ सुनती है, उनकी तरफ़ लपकती है मगर 
					जैसे अचानक उसके पाँव रुक जाते हैं, और वह वापिस चल पड़ती है। 
					बस सहमी रहती है।”
 “पुन्नी, मैं बहुत दिनों से ख़ुद महसूस कर रहा हूँ कि नेहा में 
					तेज़ी से बदलाव आ रहे हैं। उसकी स्पॉन्टेनियटी तो बिल्कुल 
					ख़त्म ही होती जा रही है। बस कुछ न कुछ सोचती रहती है और अपने 
					आपसे बुड़बुड़ाती रहती है।”
 “वो तो ठीक है, मगर अब उपाय भी तो हमें ही सोचना होगा न। मैंने 
					आज ममी को फोन किया था।”
 “किस बारे में।”
 “मैंने उनसे पूछा कि क्या वो नेहा को एक दो साल अपने पास रख 
					सकती हैं।... मगर वहाँ भाभी की बेटी भी अभी साल भर की है। माँ 
					ने कहा कि भाभी को मुश्किल होगी।”
 “हमारी तो माँ है ही नहीं कि उससे पूछा जा सके।... पुन्नी क्या 
					सच में समस्या इतनी बढ़ गई है कि तुम नेहा को अपने से दूर करने 
					तक के बारे में सोचने लगी हो? यह तो बहुत अच्छी स्थिति नहीं 
					है।”
 “बात यह हे नरेन कि आप तो सुबह निकल जाते हैं दफ़्तर। मेरे 
					लिये दिन भर इन बच्चों की देखभाल ही ज़िन्दगी बनकर रह गया है। 
					मिन्कु रोता है तो चिन्कु भी रोता है। फिर नेहा भी अभी है तो 
					बच्ची ही न। बालसुलभ गलतियाँ करती है। मुझे लगता है कि अब बड़ी 
					हो गई है। इसे ज़िम्मेदारी समझनी चाहिये।... बस इसी में गड़बड़ 
					हो जाती है। कुछ कठोर शब्द कह जाती हूँ उसे।... फिर दुखी भी 
					होती हूँ। … पर इस समस्या का हल तो हमें ही ढूँढना होगा नरेन।”
 “कोई फ़ुल-टाइम बाई खोजने का प्रयास करें?”
 “उससे समस्या हल नहीं होने वाली। बाइयों के अपने नख़रे कम हैं 
					क्या?
 ऐसा करते हैं, नेहा को पंचगनी स्कूल में दाखिला दिलवा देते 
					हैं। होस्टल में रहने से थोड़ा डिसिप्लिन भी सीख लेगी और 
					तुम्हारी मुश्किल भी हल हो जाएगी।”
 “इतनी छोटी बच्ची, रह लेगी होस्टल में?”
 “अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा न! ”
 नेहा का चिल्लाना, रोना कुछ काम नहीं आया। बस पहुँचा दी गई 
					पंचगनी। आहिस्ता आहिस्ता नेहा अपने आप को होस्टल के माहौल में 
					ढालने लगी। गर्मी की छुट्टियों में जब घर आती तो उसका अकेलापन 
					और बढ़ जाता। मिन्कु और चिन्कु बहुत ही विशेष जुड़वाँ बच्चे 
					थे। बस आपस में एक दूसरे के साथ ही मग्न। नेहा उनके लिये बस एक 
					नाम था। बहन के साथ लगाव जैसी कोई स्थिति बनने की उम्मीद करना 
					उनके साथ अन्याय होता। पूनम और नरेन ने कोई कोशिश भी तो नहीं 
					की।
 
 रक्षा-बन्धन पर भी भाई बहन इकठ्ठे नहीं हो पाते थे। छुट्टियाँ 
					नहीं होती थीं न उन दिनों। दूरियाँ कुछ अजीब ढंग से बढ़ती जा 
					रही थीं। नेहा यदि अंतर्मुखी न बन जाती तो इसे आश्चर्य ही कहा 
					जा सकता था।
 “सुनिये, अब तो मिन्कु और चिन्कु कुछ बड़े हो गये हैं। क्यों न 
					हम नेहा को वापिस बुला लें। अब तो हालात बदल चुके हैं।” पूनम 
					ने अपनी इच्छा नरेन के सामने रखी।
 “पुन्नो, मैं नहीं समझता कि नेहा अब घर वापिस आना चाहेगी। मैं 
					उसके व्यवहार को ख़ासी गहराई से महसूस करता रहा हूँ। फिर भी 
					उससे बात करता हूँ। हाँ एक बात साफ़ है कि हमने उसे उसकी 
					मर्ज़ी के ख़िलाफ़ होस्टल में भेजा था। अब उसकी मर्ज़ी के बिना 
					उसे घर आने को नहीं कहूँगा।”
 “अरे, हमारी बेटी है आख़िर। क्या हमारा इतना भी हक़ नहीं कि 
					उसे घर वापिस बुला सकें?”
 “नहीं पूनम, बात इतनी आसान नहीं है। नेहा एक बहुत ही सेंसिटिव 
					लड़की है। क्या तुमने महसूस नहीं किया कि वो हमसे कभी कुछ भी 
					नहीं माँगती... जो हम ले देते हैं, बिना किसी ना नुकर के ले 
					लेती है। उसे होस्टल भेज कर शायद हमने उसे एक अलग संसार में 
					भेज दिया है। मैं उस दुनिया से वापिस आने का रास्ता देख नहीं 
					पा रहा हूँ।”
 “आप मुझे डराइये मत। कोशिश तो करिये।”
 सब कोशिशें नाक़ाम रहीं। नेहा ने स्कूल के बाद जूनियर कॉलेज और 
					बी.ए. की पढ़ाई भी होस्टल में रह कर ही पूरी की। उसे अपने माँ 
					बाप के साथ कोई भी रिश्ता मंज़ूर नहीं था। इसका सीधा तरीका था 
					कि अपने नाम के साथ जाति का जिक्र ही न करे। वैसे भी कविता 
					लिखने का शौक़ था उसे। बस लगा लिया अपने नाम के साथ एक 
					तख़्ख़लुस – नेहा अनामिका।
 
 नरेन ने काफी समझाया कि उसे अर्थशास्त्र में डिग्री करनी 
					चाहिये। मगर नेहा भला ऐसा कुछ क्यों करती जिससे नरेन को 
					प्रसन्नता का आभास भी मिल सके? उसने निर्णय लिया कि वह 
					मास-मीडिया में बी.ए. करेगी। यानी कि यहाँ भी विद्रोह! नेहा ने 
					तय कर लिया है कि वह अपना जीवन स्वयं जियेगी। अपनी राहें स्वयं 
					तय करेगी।
 पढ़ाई पूरी होते ही उसे एक टी.वी. चैनल में नौकरी मिल गई, 
					“पापा मुझे घाटकोपर से शूटिंग के लिये जाने में खासी दिक्कत 
					होती है। फिर ऑटो-रिक्शा और टैक्सी में पैसे फ़िज़ूल में ख़र्च 
					होते हैं... मैं अँधेरी लोखण्डवाला में शिफ़्ट करने जा रही 
					हूँ।”
 “तुम मुझे सूचना दे रही हो या अनुमति माँग रही हो?”
 “जी मैंने एक फ़्लैट किराए पर ले लिया है, वहाँ से ज़्यादातर 
					शूटिंग स्पॉट्स नज़दीक हैं। फिर मुझे रात बिरात लेट भी आना 
					पड़ता है।”
 पूनम अवाक! बस बेटी की बात सुनती रही। उसे उम्मीद थी कि अभी 
					नरेन कुछ कहेगा, बेटी को डाँटेगा, मगर ऐसा कुछ
  भी 
					नहीं हुआ। जो नरेन ने कहा, पूनम को समझ नहीं आ रहा था, “बेटा, 
					आपके पास पैसों का इन्तज़ाम है क्या? या मैं कोई मदद करूँ?” “नो पापा, मैं मैनेज कर लूँगी।”
 ***
 उस दिन के बाद से आज तक मैनेज ही कर रही है।... रिश्ते केवल एक 
					नाम हैं उसके लिये। कोई अहमियत नहीं रह गई। मगर फिर भी उसके घर 
					के एक कोने में एक तस्वीर रखी है जिसमें नरेन, पूनम, मिन्कु और 
					चिन्कु मौजूद हैं। हमेशा की तरह वह उस फ़्रेम से बाहर खड़ी है।
 |