इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
कन्हैया लाल बाजपेयी, ठाकुर दास सिद्ध, परमेश्वर फुँकवाल, हरदीप संधु और
प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- जीवन की आपाधापी में
चाहिये ऐसा खाना-जिसे-पकाने-में-समय-न-लगे।-इसीलिये-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं नई शृंखला-
झटपट खाना।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
७- दर्पण के लिये शुभ स्थान। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
७-
जेरेनियम का गुलाबी जादू। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
७-
शयनकक्ष की पहली
पसंद हरा रंग |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१ अप्रैल को) गुरु तेगबहादुर,
केदारनाथ अग्रवाल, अजीत वाडेकर और पलक जैन जन्म हुआ था...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
संजीव सलिल की कलम से निर्मल शुक्ल के नवगीत संग्रह-
नहीं कुछ भी असंभव का परिचय। |
वर्ग पहेली- २६५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
स्वाती तिवारी की कहानी
स्त्री
मुक्ति का यूटोपिया
प्रथम दृष्टया सब कुछ अद्भुत
अलौकिक असाधारण था उसके घर में। सर्वप्रथम तो जान लीजिए कि
उसके घर की पारिवारिक व्यवस्था ऐसी बनी थी जिसकी न
पितृ-सत्तात्मकता थी न मातृ-सत्तात्मकता।
वहाँ व्यक्तिवादी सत्ता का साम्राज्य था। एक सुन्दर सा फ्लैट
जिसके ड्राइंग रूप में स्लेटी मेटेलिक कलर वाले साटन प्लस सुपर
फाईन नेट के कांन्ट्रास परदों ने मुझे पहली ही नजर में आकर्षित
कर लिया था। एक पल को मेरी नजरों में खुद के ड्राइंगरूम में
लगे हेण्डलूम के खादीवाले परदे फैल गए। फैले इसलिए कि वे
सरसराते तो थे ही नहीं अपनी रफ खद्दर भारी भरकम सरफेस की वजह
से। उसके घर में परदे सरसराते हुए अपने परदा होने
का और परदा लहराने का अहसास कराते हुए मुझे मेरी पसंद पर ही
शर्मिन्दा कर रहे थे। एक शानदार सोफा सेट और कार्नर पर फूलों
का बड़ा सा गुलदस्ता। साफ सुथरा करीने से सजा ड्राइंगरूम अपने
साजो सामान के साथ अपनी भव्यता और ऐश्वर्य का प्रमाण दे रहा
था।...आगे-
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कल्पना मनोरमा की
लघुकथा-
शिक्षा का विधान
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राम निहाल शुक्ल का आलेख
केदारनाथ अग्रवाल के गीत
*
गुणशेखर की चीन से पाती
जनसंख्या और भाषा नीतियाँ
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सामयिकी में डॉ. वेदप्रताप वैदिक
का दृष्टिकोण
आतंक की दवा
इस्लाम ही करे |
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पूनम पांडेय की
लघुकथा- जवाब
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दिनेश का संस्मरण
होली आई होगी
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परिचय दास का ललित निबंध
आओ व्यक्ति का
वसंत खोजें
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डॉ. कीर्तिवर्धन की कलम से
होली का महोत्सव
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
मदनमोहन शर्मा अरविंद की कहानी
होली पर लक्ष्मीपूजन
होली
का नाम सुनते ही अतीत के न जाने कितने चित्र गौरी शंकर की
आँखों के आगे घूम गये। न जाने कितनी यादें थीं जो फिर से मन की
गहराइयों को छू गयीं। टेसू के फूलों का रंग और उसकी महक, ढोलक
की थाप और ढोल की धमक, एकसाथ झूमने-गाने की मस्ती और अकेलेपन
की कसक, सब कुछ जैसे एक पल में महसूस कर लिया उन्होंने।
याद आ गया रामचरन पाण्डे, गुलाल
तो माथे पर चुटकी भर लगाता था पर कम्बख्त बाँहों में भर कर ऐसा
भींचता कि साँस रुकने लगती, साथ में उसका भाई, ‘थोड़ा लगाऊँगा’
कहते-कहते सिर में ढेर सारा रंग डाल कर भाग जाता। याद आये लाला
हजारी मल, पार्वती इस लिये उनसे पर्दा करती कि वे उसके पति से
उम्र में चार दिन बड़े थे। धूल वाले दिन लाला जबरन पार्वती का
घूँघट हटाते, गुलाल लगाते और ठहाका मार कर कहते ‘फागुन में जेठ
कहे भाभी’। पार्वती फिर भी लालाजी के पैर छूती और वे उसे...आगे- |
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