अच्छी
काम वाली पाकर जयंती अपने भाग्य पर फूली नहीं समाती, जहाँ
कहीं महिला मण्डल जुटता, गाहे बगाहे जयंती ननकी की तारीफों
के पुल बाँधने लगती, ऐसा लगता काम वाली बाई नहीं बहू मिल
गई हो जयंती को। इसी बजह से जयंती की कई मित्र दुश्मन बन
गईं, लेकिन उससे जयंती को कोई फर्क न पड़ा। जयंती के घर की
रंगत दिनों-दिन खिलती जा रही थी। पति की ना-नुकर जो कभी
उसका चैन छीन लेती थी आज वो उसे गुलदान में सजे फूलों
सरीखा सम्हाल लेती है। ये सब और किसी का नहीं ननकी का जादू
था।
"आज क्या हुआ? कहाँ मर गई ननकी, मुझे आज किशोरी के स्कूल
जाना था तो इसे भी नहीं आना था। कम से कम कल बता कर जाती
तो नहाने से पहले सारा काम तो कर लेती।”
जयंती बड़-बड़ाकर झाड़ू उठाने जा ही रही थी कि दरवाजे पर
खट-खट की आवाज हुई, एक फलाँग में जयंती ने सदर द्वार का
रास्ता तय किया और ज्यों ही दरवाजा खोला तो सामने मुरझाए
गुलाब सा मुँह लिए ननकी अपनी आठ साल की बेटी का हाथ पकड़े
खड़ी थी। उसकी आँखों से अपराध बोध टपक रहा था। जयंती ने ये
देख उसे कुछ न कह कर अंदर लगा लिया और सहानुभूति दर्शाते
हुए कहा, "ननकी तू इतनी देर से क्यों आई? आज कल कितना
ट्रेफिक है मुझे डर लग रहा था कहीं ..." कहते हुए जयंती
रुक गई।
"अच्छा बता, बात क्या है? काम तो हो जाएगा”
प्रेम भरे शब्द सुनकर ननकी फफक पड़ी और सुबकते हुए उसने
अपना सारा दुख जयंती के सामने परोस दिया। “बस इतनी सी बात
है” जयंती ने बिन्नो को अपने दोनों पैरों के बीच खींचते
हुये कहा और सिर पर हाथ फिराते हुए बोली “ननकी तू चिंता मत
कर अब तेरी बेटी जरूर स्कूल जाएगी इसकी फीस हम देंगें।
मैं तो इस बात से खुश हूँ कि तू शिक्षा की कीमत
पहचानती है।"
ननकी अपना आँचल फैलाकर जयंती के बच्चों के लिए खूब दुआएँ
माँगने लगी और कहा कि “दीदी जैसे आपने मेरी बिटिया की
शिक्षा के लिए व्यवस्था की, भगवान हमेशा आपको साथ देता
रहे।"
जयंती को लगा जैसे उसे अमृतघट मिल गया हो।
१ अप्रैल २०१६ |