इस पखवारे- |
अनुभूति
में-1
रामस्वरूप सिंदूर, अनिता मांडा, भोलानाथ कुशवाहा, सुधीर विद्यार्थी और निर्मला
गर्ग
की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
उपन्यास-अंश में यू.एस.ए. से
इला प्रसाद के उपन्यास
''रोशनी आधी
अधूरी सी''
का अंश- फिर आया है
प्रेम
शुचि देर रात गए हॉस्टल वापस
लौटी। आजकल यह रोज का क्रम हो गया है। वह आईटियन हो गई है। रात में काम करना
उसे कभी अच्छा नहीं लगता था। बी एच यू में रहते हुए कल्पना भी नहीं की थी कि
कभी वह रात में विभाग में हुआ करेगी। लेकिन यह कैम्पस सुरक्षित है। बल्कि रातों
में लैब यूँ गुलजार रह्ते हैं जैसे रात नहीं दिन हो। एक बजे रात, रात नहीं
लगती। प्रोफेसर, स्टूडेंट सब डटे हुए। शुरू में यह
सब अजीब लगता था। वह पूछती थी अपने सहयोगियों से - "तुम दिन में काम क्यों नहीं
करते।" वे हँस देते - हम रात-दिन काम करते हैं।" यानी वही है कामचोर। लेकिन ऐसा
भी क्या! फिर समझा, रात गए काम कर के लौटने वाले अपने आप को अतिरिक्त स्मार्ट
समझते हैं। स्टूडेंट्स के लिये मजबूरी है। इतना सारा प्रोजेक्ट वर्क, पढ़ाई,
असाइनमेंट, लेकिन वह? वह क्यों करे? उसे तो ऐसी कोई जरूरत महसूस नहीं होती।
हाँ, जब दिन का सारा समय लाइब्रेरी की खाक छानते गुजरा तो जरूर लगा कि आज तो
प्रयोगशाला में कुछ नहीं किया।... आगे-
*
अंतरा करवड़े की लघुकथा
बुरी हवाएँ
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प्रभात कुमार का नगरनामा
कभी आइये
फरीदाबाद
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गुणशेखर की चीन से पाती
बिना ईश्वर
का देश
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का ग्यारहवाँ भाग |
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गोपाल चतुर्वेदी का व्यंग्य
देश का विकास जारी है
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संजीव वर्मा सलिल का आलेख
नवगीत और देश
*
शशि पाधा का संस्मरण
संत सिपाही
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सुनीता सिंह गर्ग की कलम से
झंडा ऊँचा रहे हमारा
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
शरद उपाध्याय की कहानी
प्रतीक्षा
आज उनकी नींद जल्दी ही खुल गई
थी। सर्दी के दिन थे। दिन अभी नहीं निकला था। आसमान लालिमा
लिये सूरज की प्रतीक्षा कर रहा था। पत्नी हमेशा की तरह उठ गई
थी। नहाकर अपने पूजा के बर्तन माँज रही थी। तभी उन्हें उठा देख
उनके लिए पानी ले आई और चाय बनाने चली गई। वे बाहर अखबार लेने
आ गए। मोहल्ला धीरे-धीरे जाग रहा
था। पड़ोस की छत पर शर्माजी अपनी पत्नी के साथ चाय पी रहे थे।
सड़क पर आवा-जाही शुरू हो गई थी। लोग-बाग घूमने के लिए निकल रहे
थे। उन्हें देखकर एक गाय तेजी से आकर दरवाजे पर खड़ी हो गई।
उन्होंने जमीन पर पड़ा अखबार उठाया और अंदर आ गए। पत्नी ने चाय
बनाकर टेबल पर रख दी।
"क्या बात है, आज जल्दी उठ गए?"
"हाँ, बस ऐसे ही नींद खुल गई। मैंने सोचा, उठ ही जाऊँ।"
कहकर वे अखबार पढ़ने लगे। पत्नी कुछ क्षण खड़ी रही, पर कोई
प्रतिक्रिया न पाकर पुनः अंदर जाकर अपना काम करने लगी।...
आगे- |
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