झंडा ऊँचा रहे हमारा..विश्व
विजयी तिरंगा प्यारा..
यह गीत भारत का हर बच्चा गुनगुनाता है.. बड़े ही शान से।
आख़िर क्या बात है इस ध्वज में जिसने आज़ादी के परवानों
में एक नया जोश भर दिया था और जो आज भी हर भारतीय को अपने
गरिमामय इतिहास की याद दिलाता है और विभिन्नता में एकता
वाले इस देश को एक सूत्र में बाँधे हुए है। हर स्वतंत्रता
दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर पर
राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया
जाता है। देश के प्रथम नागरिक से लेकर आम नागरिक तक इसे
सलामी देता है। २१ तोपों की सलामी से सेना इसका सम्मान
करती है। किसी भी देश का झंडा उस देश की पहचान होता है।
तिरंगा हम भारतीयों की पहचान है। राष्ट्रीय झंडे ने पहली
बार आज़ादी की घोषणा के कुछ ही दिन पहले २२ जुलाई १९४७ को
पहली बार अपना वो रंग रूप पाया जो आज तक कायम है। हमारा
राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना है इसलिए हम इसे तिरंगा
भी कहते हैं। सबसे ऊपर केसरिया रंग फिर सफ़ेद और सबसे नीचे
हरा। बीच में गहरे नीले रंग का चक्र बना है जिसमें २४ चक्र
हैं जिसे हम अशोक चक्र के नाम से जानते हैं। इस प्रतीक को
सारनाथ में अशोक महान के स्तंभ से लिया गया है। तिरंगे की
बनावट पर हमारे देश में काफ़ी ध्यान दिया जाता है क्यों कि
ये हमारे सम्मान से जुड़ा हुआ है। हर तिरंगे में अशोक चक्र
श्वेत रंग के तीन चौथाई भाग में ही होना चाहिए। राष्ट्रीय
ध्वज खादी के कपड़े का होना चाहिए। आज जो ध्वज हमारे देश
की पहचान है उसे इस रूप में ढालने वाले थे पिंगली वेंकैया।
तिरंगे में इन रंगो की क्या
महत्ता है ये जानना बहुत ज़रूरी है। केसरिया यानी भगवा रंग
वैराग्य का रंग है। हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को
सबसे पहले अपने ध्वज में इसलिए सम्मिलित किया जिससे आने
वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़ कर देश के विकास
में खुद को समर्पित कर दें। जैसे भक्ति में साधु वैराग ले
मोह माया से हट भक्ति का मार्ग अपनाते हैं। श्वेत रंग
प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया। हरा रंग
प्रकृति से संबंध और संपन्नता दर्शाता है, और केंद्र में
स्थित अशोक चक्र धर्म के २४ नियमों की याद दिलाता है।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज का
इतिहास भी बहुत रोचक है। २०वी सदी में जब हमारा देश
ब्रिटिश सरकार की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर
रहा था, तब स्वतंत्रता सेनानियों को एक ध्वज की ज़रूरत
महसूस हुई क्यों कि ध्वज स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का
प्रतीक रहा है। सन १९०४ में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर
निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया जिसे बाद में सिस्टर
निवेदिता ध्वज से जाना गया। यह ध्वज लाल और पीले रंग से
बना था। पहली बार तीन रंग वाला ध्वज सन १९०६ में बंगाल के
बँटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार
बोस लाए। इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, बीच में पीला
और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था। केसरिया रंग
पर ८ अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर
एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिंदी
में वंदेमातरम लिखा था।
सन १९०८ में सर भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा
लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में
केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता
को दर्शाते हुए हरा रंग इस्लाम के लिए और केसरिया हिंदू और
सफ़ेद ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतीक था। इस ध्वज
में भी देवनागरी में वंदेमातरम लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल
बने थे। इस ध्वज को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी
कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था। प्रथम विश्व युद्ध के
समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया
क्यों कि इसे बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों
द्वारा अपनाया गया था।
सन १९१६ में पिंगली
वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों
को एक सूत्र में बाँध दे। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी
और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल
फ़्लैग मिशन का गठन किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के
लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने
उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो
संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने का संकेत बने। पिंगली
वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना
कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण
भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को
लेकर तरह-तरह के वाद विवाद चलते रहे। अखिल भारतीय संस्कृत
कांग्रेस ने सन १९२४ में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में
गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का
प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का
विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिंदू, मुसलमान और सिख
तीनों धर्म को व्यक्त करता है।
काफ़ी तर्क वितर्क के बाद
भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन १९३१ में अखिल भारतीय
कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए ७ सदस्यों की
एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक
में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया,
श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था,
को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई
आंदोलन किए और १९४७ में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर
मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर
कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय
ध्वज को क्या रूप दिया जाए इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र
प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद
14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को
ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की।
१५ अगस्त १९४७ को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की
आज़ादी का प्रतीक बन गया।
राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश
की पहचान है इसलिए इसे हर भारतीय सम्मान दे ये तो ज़रूरी
है ही कोई भी व्यक्ति इसकी गरिमा को धूमिल ना करे इसके लिए
भारतीय कानून में कुछ धाराएँ बनाई गई है। फ्लैग कोड इंडिया
-२००२ में राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी कुछ ख़ास बातों का
ज़िक्र किया गया है जिसे हम भारतीयों को जानना ज़रूरी है।
सन २००२ के पहले आम जनता राष्ट्रीय दिवस को छोड़ किसी और
दिन इसे किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं लगा सकती थी। सिर्फ़
सरकारी कार्यालयों में ही इसे लगाया जा सकता था। सन २००२
में भारत के जाने माने उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने
कार्यालय के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था जिसके लिए उन्हें
सूचित किया गया कि उन्हें ऐसा करने पर कानूनी कार्यवाही से
गुज़राना होगा। इसके विरोध में उन्होंने दिल्ली उच्च
न्यायालय में एक जन हित याचिका इस बाबत दायर की कि भारत की
आम जनता को सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज लहराने और उसे
प्यार देने का नागरिक अधिकार है। यह मामला उच्च न्यायालय
से उच्चतम न्यायालय में गया और न्यायालय ने भारत सरकार को
इस मामले पर विचार करने के लिए एक कमेटी बिठाने की सलाह
दी। अंत में भारतीय मंत्रालय ने एक संवैधानिक संशोधन कर
सभी भारतवासियों को साल के ३६५ दिन राष्ट्रध्वज सम्मान के
साथ लगाने का अधिकार दिया।
इसी के साथ ध्वज के
सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय
किस आचरण संहिता का ध्यान
रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना
चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन २००५ के
पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों में उपयोग में नहीं लाया
जा सकता था, लेकिन सन २००५ में फिर एक संशोधन के साथ
भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया लेकिन इसमें
ध्यान रखने वाली बात ये है ये किसी भी वस्त्र पर कमर के
नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के
रूप में नहीं पहना जा सकता है।१५ अगस्त
२००७ |