शुचि देर रात गए हॉस्टल वापस
लौटी। आजकल यह रोज का क्रम हो गया है। वह आईटियन हो गई है।
रात में काम करना उसे कभी अच्छा नहीं लगता था। बी एच यू
में रहते हुए कल्पना भी नहीं की थी कि कभी वह रात में
विभाग में हुआ करेगी। लेकिन यह कैम्पस सुरक्षित है। बल्कि
रातों में लैब यूँ गुलजार रह्ते हैं जैसे रात नहीं दिन हो।
एक बजे रात, रात नहीं लगती। प्रोफेसर, स्टूडेंट सब डटे
हुए।
शुरू में
यह सब अजीब लगता था। वह पूछती थी अपने सहयोगियों से - "तुम
दिन में काम क्यों नहीं करते।" वे हँस देते - हम रात-दिन
काम करते हैं।" यानी वही है कामचोर। लेकिन ऐसा भी क्या!
फिर समझा, रात गए काम कर के लौटने वाले अपने आप को
अतिरिक्त स्मार्ट समझते हैं। स्टूडेंट्स के लिये मजबूरी
है। इतना सारा प्रोजेक्ट वर्क, पढ़ाई, असाइनमेंट, लेकिन वह?
वह क्यों करे? उसे तो ऐसी कोई जरूरत महसूस नहीं होती। हाँ,
जब दिन का सारा समय लाइब्रेरी की खाक छानते गुजरा तो जरूर
लगा कि आज तो प्रयोगशाला में कुछ नहीं किया। और यहाँ सब
दौड़ रहे हैं। सबको जल्दी पड़ी है। पी एच डी लो, एम टेक , बी
टेक करो और भागो अमेरिका। अमेरिका, मल्टी नेशनल फर्म की
नौकरी, इससे कम के सपने कोई नहीं देखता। उसे तो लगा था कि
आई टी जाना एक कदम आगे बढ़ना है।
यहाँ आकर
लगा कि वह पिछड़े हुए लोगों की जमात में है। इसीलिये तो
उसने माशलकर से कहा था कि वह एक पेपर बनाने के लिये यहाँ
आई है। यहाँ का स्टैम्प लग जाये, बस।
"ठीक है, काम कीजिए । मैं रिकमेन्डेशन लेटर दूँगा।" प्रो.
माशलकर ने कहा था।
प्रोफेसरों के हिसाब से यह काम करना क्या होता है, आज शुचि
जान रही है। दिन- रात खट रही है, तीन साल बीत चुके। दो
प्रेजेन्टेशन दे चुकी। सबके लिये आँख की किरकिरी... लेकिन
एक पेपर अभी भी दूर की कौड़ी है, उसने इतना काम तो कर ही
लिया है, किन्तु पेपर तो तभी बनेगा न, जब गाइड की स्वीकृति
हो।
रात को लैब से लौटते हुए स्टाफ कैफेटेरिया में वेज
मंचूरियन खा लिया था। इसलिये पेट भरा है और नींद गायब है।
स्टाफ कैफेटेरिया खुला हुआ था, रात भर खुला रहता है। और भी
कैफे हैं जो सुबह चार बजे बन्द होते हैं। इस संस्थान में
सुबह चार बजे रात होती है और आठ बजे सवेरा। छात्रों को चार
घंटे सोने की मुहलत। तो अगर बिन ब्रश किए, बिन नहाए धोए,
पसीने की गंध से महकते लड़के क्लास में होते हैं तो खास बात
क्या!
शुचि कम्प्यूटर रूम में जा बैठी। हॉस्टल का कम्प्यूटर रूम
रात दो बजे तक तो खुला मिल ही जाता है। इसके बाद भी यदि
रुकना है तो बन्द करने की जिम्मेवारी आखिरी छात्रा की।
मेल बाक्स खोला। सुजय ने मेल भेजा था "अवर ब्यूटिफुल आर आई
टी गर्ल्स।" पढ़ने लगी - पूरा प्रश्न पत्र था ।
१. यदि किसी आर आई टी गर्ल को "हाउ टू फाल इन लव" किताब
गिफ्ट की जाय तो वह क्या करेगी?"
- वह उसका माउस पैड बना लेगी।
२. सुन्दर लड़कियाँ कहाँ मिलती हैं?
- चाँद पर। बाकी आर आई टी में हैं।
३. यदि किसी सुन्दर आर आई टी गर्ल को किसी आर आइ टी के
लड़के से प्यार हो जाए तो वह क्या करेगी?
- सवाल ही गलत है। सुन्दर लड़कियाँ आर आइ टी नहीं आतीं । या
तो वे शादी शुदा हैं या फिर आर आई टी में नहीं हैं।
४. इस संस्थान में लड़कियाँ मेकअप क्यों नहीं करतीं? मेक अप
करके थोड़ा बेहतर तो दिख ही सकती हैं...
- वे अपने को ब्यूटी विद ब्रेन समझती हैं।
५. आर आई टी गर्ल को यदि यह मेल भेजा जाय तो वे क्या
करेंगी?
- उनकी समझ में नहीं आयेगा। वे इसे काम्प्लीमेन्ट समझेंगी।
शुचि मुस्कराई।
फिर उसने अपने मेल बाक्स में पड़ा, कुछ ही दिन पहले पढ़ा
वेदिका का भेजा मेल " अवर हैंडसम आर आई टी ब्वायज" सुजय के
ई मेल पते पर भेज दिया।
१. यदि क्लास में कोई गंधाती बिल्ली और आर आई टी का लड़का
एक साथ पहुँच जायें तो कौन पहले भागेगा?
- बिल्ली। उसके भी बर्दाश्त की सीमा है।
२. यदि किसी आर आई टी गर्ल से उसे प्रेम हो जाए तो वह उसे
कहाँ घुमाने ले जायेगा?
- आर आई टी लाइब्रेरी और कहाँ? कॉमन सेन्स नहीं है क्या?
३. आर आई टी के लड़के नहाते क्यों नहीं?
- उन्हें लगता है कि वे ऐसे ही बहुत आकर्षक हैं।
४. यदि किसी आर आई टी ब्वाय को साबुन उपहार में दिया जाय
तो वह क्या करेगा?
- उसका केमिकल कम्पोजिशन ढूँढेगा या माउस पैड की तरह यूज
करेगा।
५. यदि उसे किसी लड़की से प्रेम निवेदन करना हो तो कौन सी
जगह उसे इसके लिये उपयुक्त लगेगी?
- आर आई टी लाइब्रेरी के अध्ययन -कक्ष का वह हिस्सा, जहाँ
सबसे ज्यादा भीड़ हो।
ई मेल भेज कर वह देर तक हँसती रही। जब मेल चेक कर रही थी,
तभी देखा था, निष्काम चैट करना चाहता है। चलो, थोड़ी बात कर
लेते हैं। फिर अच्छी नींद आयेगी।
उसने स्वीकृति भेज दी।
"प्रणाम मौसी।"
"क्या चल रहा है निशु?”
"कुछ नया नहीं। वही पढ़ाई ..
“घर पर सब ठीक हैं?”
“हाँ, कल ही बात हुई है।“
“लेकिन यह रात के दो बजे तुम कम्प्यूटर पर क्या कर रहे
हो?”
“क्यों? क्या सिर्फ़ आर आई टी वाले ही काम करते हैं?”
“नहीं, लेकिन..”
“हमारे एक्जाम्स हैं। यहाँ भी, एम आई टी में भी हम वैसे ही
पढ़ते हैं।“
सारे इंजीनियरिंग इन्स्टिट्यूट एक जैसे! शुचि ने सोचा।
अब यह कौन बीच में परेशान कर रहा है। बार बार टॉक बोर्ड पर
आने की कोशिश। बार-बार हाई! और साथ में एक :-)
उसे ताव आ गया। "हाई।"
“तुमसे बात करना चाहता हूँ।“
“क्यों?”
“बस ऐसे ही। दोस्ती करनी है। बुरा लगा?”
“अच्छा भी नहीं लगा।"
“आइ अम अ हैंडसम मैन। एक्स आर आई टियन।"
"आई एम अ ब्यूटीफुल आर आई टी गर्ल।" सुजय के ई मेल का असर
था शायद।
“कैसी दिखती हो? कोई फ़ोटो भेजो।"
“बस अभी। यह लो।"
उसने एक और विंडो खोला। गूगल में "मंकी" टाइप किया फिर एक
खौखियाते हुए बन्दर की तस्वीर कॉपी-पेस्ट करके भेज दी।
“बहुत सुन्दर हो। मैं मिलने आऊँ?”
“जरूर।"
“मैं आर आई टी गर्ल से बात कर रहा हूँ, शुचि ऐट आर आई टी
बी, राइट?”
“हाँ- हाँ।"
“किस विभाग में हो?”
“आई डी सी।" मन में सोचा - आई डोन्ट केयर।
“ओ के। मैं इंजीनियर हूँ।, सैन होजे, कैलीफ़ोर्निया में।
मैं इन्द्र हूँ।"
“अमेरिका में इंजीनियर क्या काम नहीं करते?”
“नहीं, वे शुचि जैसी बन्दर सूरत की लड़कियाँ तलाश करते
हैं?”
“माइ फुट।"
उसने चैट बोर्ड बन्द कर दिया। निशु पहले ही जा चुका था।
अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेटते ही जाने क्यों एक
अज्ञात आशंका ने धर दबोचा, उसने कुछ गलत तो नहीं किया!
क्यों बात की? फिर एक पुलक सी उभरी, अबतक की अनजानी। शुचि
सिहर गई। क्या- क्या मन में आता है आजकल! वह ऐसे कैसे बात
कर गई? या कि वह चाहने लगी है कि ऐसा कुछ हो उसके भी साथ?
एक सपना हो उसके भी पास। फिर एक खूबसूरत खयाल उभरा - कहीं
वह सचमुच आ गया तो? पागल हो ? कोई अमेरिका से इस तरह आता
है क्या?
उसने उस खयाल को परे झटक दिया।
करीब महीने भर बाद वह हॉस्टल के लॉन में बैठी, घास पर पैर
फैलाए शाम का नाश्ता, “उपमा" खा रही थी, जब किसी ने बतलाया
कि उसे मिलने कोई आया है। उसने सिर घुमा कर देखा। सामने
कुछ दूर पर एक मिस्टर हैंडसम खड़ा था। वह इसे तो नहीं
जानती! कौन है यह? अभी विभाग जाना है। सिलिकन वेफर क्लीन
करके फर्नेस में डाला था। दो घंटे के लिये सुजय को कह कर
आई थी। उसका भी वेफर है। ऑक्सीडेशन कम्प्लीट हो जाए और
शुचि न पहुँचे तो वह नाइट्रोजन अनीलिंग के लिये अपने वेफर
के साथ अनीलिंग फर्नेस में लोड कर देगा। इसीलिये शुचि
हॉस्टल चली आई। इतने दिनों से कोशिश कर रहे हैं। सब बेकार
जा रहा है। केवल ब्रेकडाउन के रिजल्ट मिलते हैं। एक डिवाइस
का कैरेक्टर्रिस्टिक्स सही आ जाय तो काम आगे बढ़े। वह तो
सोच रही है कि उसका अपना सेट अप रेडी हो जाय तो वह
प्लाज्मा में ही आक्सीडेशन करके देखेगी। क्या पता बेहतर
ऑक्साइड मिल जाए। फिर ऑक्सीडेशन अन्डर प्लाज्मा डिस्चार्ज
पर ही काम करना शुरु कर देगी। पता नहीं पेंच कहाँ है। उसके
लौटने पर सुजय जायेगा अपने हॉस्टल। यह कौन आ गया!
प्लेट घास पर छोड़ी, हाथ झाड़े - "हाई, आय अम शुचि!"
"हाई!" मधुर मुस्कान चेहरे के कोनों तक फैल गई। "आय अम
इन्द्र फ़्राम कैलीफ़ोर्निया।"
शुचि अवाक! कई मिनट उसका चेहरा देखती रही "यू? हियर?"
"तो याद है आपको।"
उसे बुरा लगा। क्यों पहचान लिया!
"याद नहीं था। सामने देखा तो याद आ गया।"
"नहीं, कोई बात नहीं।"
वह हँसने लगा। बेहद मोहक हँसी। "देखिए, मुझे भारत आना था।
आन्टी ने कुछ लड़कियाँ देखी हैं। लेकिन मैं आपसे मिलना
चाहता था। बहुत भटका हूँ, तब जाकर पता लगा। आप
इन्डस्ट्रियल डिजाइन सेन्टर (आई डी सी) नहीं, फ़ीजिक्स में
हैं।"
शुचि मन ही मन हँसी, उसने तो आई डोन्ट केयर कहा था। इस
बन्दे ने क्या समझा। वैसे सही समझा। आई डी सी वाले इसी नाम
से तो फेमस हैं। पक्का आर आई टियन है।
"मैं दस सालों से अमेरिका में हूँ। कम्प्यूटर इंजीनियर।
सीमेन कम्पनी में काम करता हूँ। मुझे गलत मत समझियेगा। आय
अम सिन्सियर। और हाँ, आप बिल्कुल वैसी ही दिखती हैं जैसी
फ़ोटो आपने भेजी थी।"
न चाहते हुए भी शुचि की हँसी छूट गई। मजाक का भाव इतना
स्पष्ट था उसके चेहरे पर।
"यू आर ब्यूटीफुल। हँसते हुए आप और अच्छी लगती हैं। हँसा
कीजिए।"
शुचि की समझ में नहीं आया, क्या जवाब दे। गुस्सा आया कि
पहली ही बार में यह इतनी बेतकल्लुफ़ी से कैसे बात कर रहा
है। और वह विरोध क्यों नहीं कर पा रही ?
वह उसे हॉस्टल कैम्पस से बाहर निकाल ले गई। सब देख रहे
हैं। पता नहीं कौन है। लेकिन वह अपना फ़ोटो आई डी उसे दे
गया, जाने के पहले। और उसके घर का पता ले गया।
शुचि बौखलाती रही बाद में कई दिनों तक कि कैसे यह सब कर
डाला उसने। अब घर पर जरूर तूफान मचने वाला है।
इसीलिये
गई थी आर आई टी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। घर पर सबने चैन
की साँस ली। चलो, कोई तो मिला। कोई तो पसंद आया। अब ब्याह
दो इसे जल्दी और पुण्य कमाओ। कोई ठिकाना नहीं कब इसका
दिमाग बदल जाए। इतने सालों से परेशान हैं हम। लड़का ठीक है।
भाई-बहन अमेरिका में। माँ -बाप हैं नहीं। मराठी है तो क्या
हुआ! बुआ - चाची की उपस्थिति में आनन-फानन में शादी हो गई
महीने भर के अन्दर।
"मुझे तो अब भी सब सपने जैसा लगता है! शुचि की शादी हो गई
, विश्वास नहीं आता।" माँ अक्सर कहती हैं। |