इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
मनोज जैन मधुर, प्रदीप कांत, मीनू
बिस्वास, त्रिलोक सिंह ठकुरेला और विवेक ठाकुर की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में-
गुलाब का शर्बत।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२१-
बालकनी में बगीचा |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा
भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में
नारायण
श्रीधर बेंद्रे
की कला और जीवन से परिचय |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२१- खिलते हुए रंगों का संसार
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- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(२९ जून को) साहित्यकार देवकीनंदन खत्री, शिक्षाविद प्रशांतचंद्र
महालनोबीस, हास्य कवि शैल चतुर्वेदी...
विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से आचार्य भगवत दुबे के नवगीत
संग्रह
हम जंगल के अमलतास का परिचय। |
वर्ग पहेली- २४३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
सुभाष चंदर की कहानी
बजरंगी लल्ला की बारात
गाँव में बारात की तैयारियाँ
पूरे जोरों पर थीं। बिंदा चाचा कल की बनी दाढ़ी को चिम्मन नाई
से दुबारा खुरचवा रहे थे तो मास्टर तोताराम अपने सफेद सूट के
साथ मैच मिलाने के लिए अपने काले जूतों पर खड़िया पोत रहे थे।
जुम्मन मियाँ के बालों की मेहँदी सूखने वाली थी, सो अब दाढ़ी
रँगाई का काम चल रहा था। बलेसर के ताऊ पगड़ी को साँचे में
बिठाने के प्रयास में खुद बैठे जा रहे थे। किस्सा कोताह ये कि
बारात में जाने वाला हर व्यक्ति मुस्तैदी से अपनी तैयारी में
लगा था।
दूल्हे राजा उर्फ बजरंगी लाल गुप्ता वल्द लाला रामदीन हलवाई की
तैयारियाँ भी काफी हद तक पूरी हो चुकी थीं। पीले रंग की कमीज,
हरे रंग की पैंट और उसके नीचे चमचमाते काले बूढ में बजरंगी
पूरे फिट-फाट लग रहे थे। कुल जमा आधा कटोरी कड़वे तेल ने बालों
के साथ चेहरा भी चमका दिया था।
बजरंगी की अम्मा ने अपने लल्ला को ऊपर से नीचे तक देखा,
न्यौछावर हो आईं। पर तभी याद आया कि लल्ला ने आँखों में काजल
तो डाला ही नहीं... आगे-
*
कुमार गौरव अजीतेन्दु की
लघुकथा- बँसवारी
*
सरिता भावे का यात्रा संस्मरण
रणथम्भौर की बाघिन
*
जगजीत सिंह का आलेख
अकाल तख्त के संस्थापक गुरू हरगोविंद सिंह जी
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का पहला भाग |
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आजाद बरेलवी का व्यंग्य
घुटनों का भला न दर्द
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
तुरई भी स्वास्थ्य वर्धक हैं
*
डॉ. सौरभ मालवीय का
दृष्टिकोण -
संस्कार की परिधि
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का दसवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
शिबनकृष्ण रैणा की कहानी
रिश्ते
जिस दिन मिस्टर मजूमदार को पता
चला कि उनका तबादला अन्यत्र हो गया है, उसी दिन से दोनों
पति-पत्नी सामान समेटने और उसके बण्डल बनवाने, बच्चों की टी.सी
निकलवाने, दूधवाले, अखबार वाले आदि का हिसाब चुकता करने में लग
गए थे। पन्द्रह वर्षों के सेवाकाल में यह उनका चौथा तबादला था।
सम्भवत: अभी तक यही वह स्थान था जहाँ पर मिस्टर मजूमदार दस
वर्षों तक जमे रहे, अन्यथा दूसरी जगहों पर वे डेढ़ या दो साल
से अधिक कभी नहीं रहे। मि. मजूमदार अपने काम में बड़े ही
कार्यकुशल और मेहनती समझे जाते थे, किन्तु महकमा उनका कुछ इस
तरह का था कि तबादला होना लाजि़मी था। वैसे प्रयास तो उन्होंने
खूब किया था कि तबादला कुछ समय के लिए टल जाए किन्तु उन्हें
सफलता नहीं मिली थी।
ऑफिस से मि. मजूमदार परसों रिलीव हुए थे। ‘लालबाग’ में उनकी
विदाई पार्टी हुई और आज वे इस शहर को छोड़ रहे थे। उनके बच्चे
सवेरे से ही तैयार बैठे थे।... आगे-
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