यदि आपके
घुटनों में दर्द है, तो आप सौ प्रतिशत नेता हैं, यदि आप
नेता हैं, तो आपके घुटनों में दर्द जरूर होगा। मतलब यह कि
नेता और घुटनों के दर्द का चोली-दामन का साथ है, एक-दूसरे
के पर्याय हैं। आजकल घुटने भी दो प्रकार के होते हैं,
राजनीतिक घुटने दूसरे सामाजिक घुटने। सामाजिक घुटनों के
बारे में कितने ही लोगों से पूछताछ की, तो पाया कि ९०-९४
साल तक उनके घुटने बिल्कुल फौलाद की तरह दुरुस्त पाये गये,
जैसे फैवीकोल से जोड़ रखे हों।
एक नेता के घुटने इतने कमजोर क्यों होते हैं? हमने अपनी एक
गली के झोला छाप छुटभइये नेता से पूछा कि क्या कारण है कि
नेता घुटनों से कमजोर होते हैं और घुटने नेताओं के कमजोर
होते हैं, नेताजी बोले- राजनीति में कोई शिक्षा का मापदंड
तो है नहीं, हमारे देश में चौधरी-जैसे बड़े नेता को केवल
उप-प्रधान मंत्री बनाया गया जबकि अशिक्षित नहीं थे। नेताजी
ने सकुचाते हुए मुख्य कारण घुटनों के दर्द का बताया कि
राजनीति में योग्यता के बल पर तो किसी दल में कोई घास नहीं
डालता, सिर्फ चमचागिरी, जी-हुजूरी, मक्खनबाजी से खासतौर पर
बड़े-बड़े दिग्गजों के चरण पकड़ते-पकड़ते, घुटनों के बल
झुकते-झुकते, उनके घुटने जब पूरी तरह से बोल जाते हैं, तब
उनको राजनीति में प्रवेश और पद मिलता है।
यही कारण है कि हमारे देश के बड़े-बड़े कर्णधार विदेशों में
जाकर घुटनों के बल गिरकर समझौते करते हैं, चाहे वो शिमला
समझौता हो, ताशकंद हो, लाहौर का बस समझौता हो, या फिर
कश्मीर में आतंकवादियों से किया समझौता हो। रूबिया रिहाई,
तो आतंकवादियों की रिहाई, कंधार जहाज यात्रियों की रिहाई
तो पाँच आतंकवादियों की रिहाई?
वो थे वी.पी. भाई यह हैं अटल बिहारी भाजपाई,
उधर कुआँ, इधर खाई, बीच में कांग्रेस (आई)
कहावत बिल्कुल ठीक है कि चोर-चोर मौसेरे भाई।
सन् १९४७ से लेकर आज तक जो भी हमने समझौता किया है, वो
घुटनों के बल गिरकर ही किया है। इसीलिए हमारे समझौते
घुटनों के बल गिर जाते हैं। जैसे संसद में बिन बहुमत के
सरकार। जब हमारे देश के नेताओं की जनता का बचपन कमजोर है,
बचपन भूखा है, तो घुटने भी कमजोर ही होंगे। जब घुटने कमजोर
होंगे, तो देश के नेताओं के व्यक्तित्व भी कमजोर होंगे।
जाहिर है, देश भी कमजोर होगा। यही वजह है कि हमारे देश के
नेता जगह-बे-जगह लुढ़कते दिखायी देते हैं। घाट हो बे घाट हो
या राजघाट हो या श्मशान घाट हो।
राजनीतिक प्रवेश में योग्यता के मापदंड होने चाहिए-
राजनीति में आने से पूर्व घुटने स्वस्थ हैं या नहीं?
राजनीति में घुटने के बल चल के आये हैं या योग्यता के बल
पर? यदि राजनीति में आने के बाद घुटने खराब हुए तो उनका
खर्चा भारत सरकार नहीं उठाएगी। शपथ ग्रहण करवायी जाए, कि
हम आतंकवादियों से, विदेशियों से घुटनों के बल गिरकर कोई
समझौता नहीं करेंगे। राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री हो या
अन्य कोई मंत्री इन सबके इलाज फ्री होने चाहिए, लेकिन
घुटनों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर इनके पर्सनल होने चाहिए।
भारतीय चिकित्सा के क्षेत्र में घुटने स्पेशलिस्ट डॉक्टर
की एक डिग्री शुरू की जाए।
प्रत्येक भारतीय नेता घुटनों के बल गिरने से और घुटनों के
दर्द से सख्त परेशान है। जब हमारा नेता गिरता है, तो हमारे
देश का मनोबल भी गिरता है।
घुटने-घुटने सब भले घुटनों का भला न दर्द
मुर्शरफ भय माने नहीं जनता कहें- क्या मर्द
हमारे देश के बच्चों की, नेताओं की, जवानों की, सबकी नींव
कमजोर है। इसलिए किसी ने सच ही कहा है, ‘जिस देश का बचपन
भूखा है, उस देश की जवानी क्या होगी।’ |