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 ८. ६. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1
राम अवतार सिंह तोमर रास, कलीम आनंद, मनीष जोशी, अनिता ललित और विवेक ठाकुर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं नया पेय बनाने की विधि- स्ट्राबेरी हिमानी

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१९- लीच और घोंघे

कला और कलाकार- भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में अमृता शेरगिल की कला और जीवन से परिचय 

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १८- एक कोना पढ़ने वालों के लिये

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन- (८ जून को) साहित्यकार गौतम सचदेव, १९५७ को अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया, शिल्पा शेट्टी... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- योगेन्द्र वर्मा व्योम की कलम से आनंद कुमार गौरव के नवगीत संग्रह साँझी साँझ का परिचय।

वर्ग पहेली- २४०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुशांत सुप्रिय की कहानी एक उदास धुन

"रात वह होती है जब तुम सोए हुए हो और तुम्हारे भीतर अँधेरा भरा हो। "
-- अपनी ही डायरी में से।
आजकल मेरे लिए सारे दिन रातों जैसे हैं। भरी दुपहरी है। फिर भी चारों ओर अँधेरा है। आकाश लोहे की चादर-सा मेरे ऊपर तना है। भीतर एक अचीन्हा-सा दर्द है। बाहर एक अनाम-सी उदासी है। मेरी जेब ठंडी है। आँखों में अँधेरा है। सीने में रात है। दुख मेरे पैरों में लिपटा है। मेरे सिर पर बेकारी का कँटीला ताज है। बेरोज़गारी की मार मुझ पर भी पड़ी है। मैं सड़क पर आ खड़ा हुआ हूँ। कहीं कोई नौकरी मुझे नहीं तलाश रही। मेरे चारों ओर एक उदास धुन-सा बजता हुआ यह समय है। और इस अनिश्चित समय की उपज मैं हूँ। अब मैं भीड़ में अकेला हूँ। अपनों के बीच एक अजनबी हूँ। समय मुझे बिताता जा रहा है। मैं यूँ ही व्यतीत हो रहा हूँ। मेरा होना भी जैसे एक 'नहींपन' में बदलता जा रहा है। लगता है जैसे सारे धूसर और मटमैले रंग मेरे ही हिस्से में आ गए हैं और दिन एक बदनुमा दाग़-सा मेरे चेहरे से आ चिपका है।... आगे-
*

शुचिता श्रीवास्तव का व्यंग्य
कोई गारंटी नहीं
*

राजेन्द्र वर्मा का रचना प्रसंग
दोहे का शिल्प 

*

राजकुमार दाधीचि की कलम से
बूँदी की पानीदार कटार
*

पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का नवाँ भाग

पिछले सप्ताह-

नरेन्द्र कौर छाबड़ा की
लघुकथा- परिवर्तन
*

प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र का आलेख
प्रजापति ब्रह्मा की यज्ञ-स्थली पुष्कर 

*

सुधा कांत दास की कलम से
संत कबीर का काव्य पंथ
*

पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का आठवाँ भाग

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कहानी सपने

"धत्, तेरे काकरोच की। फिर चुन्नी में छेद। इन तेलचट्टों ने तो नाक में दम किया हुआ है। अब चुन्नी भी खानी थी तो रेशमा गुप्ता की। कभी मेहर पद्मसी की चुन्नी चाट कर देखी है? मगर मेहर की चुन्नी, रेशमा की चुन्नी की तरह कमरे में तार की अरगनी पर लटकी नहीं रहती है रात भर। बन्द रहती है गोडरेज की आलमारी के भीतर 'मौथप्रूफ' खुशबू में। "अभी पिछले ही दिनों नया सूट सिलवाया छींटदार चूड़ीदार और कुर्ता। चुन्नी के लिए रूपये इकठ्ठा करते–करते दो महीने लग गये इस बीच सिर्फ एक बार पहना, आखिर अमरेश की बहन से कितनी बार चुन्नी माँगी जा सकती थी? उसके पास भी तो दो ही रंगीन चुन्नियाँ हैं। हफ्ता भर ही हुआ चुन्नी को खरीदे। एक बार पहनी नहीं कि हो गया सत्यानाश।" रेशमा ने नाक तक चढ़ा गुस्सा भगौने में पानी के साथ गैस पर चढ़ा दिया और खुद पटरे पर बैठ गयी, पैरों को दोनों बाहों में समेट घुटनों पर चेहरा टिका लिया। रेशमा के पास मेहर पदमसी जैसी अलमारी...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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