इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
राजा अवस्थी, बाबूलाल गौतम, अजामिल,
साधना ठकुरेला, और स्वदेश की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में-
फलराज।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१४- टी बैग
प्रयोग के बाद |
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
१७-
नाप में छुपी सफलता
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सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१३- विविधता में सौंदर्य की खोज
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- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं--आज
के दिन-(४
मई-को)
बुंदेलखंड के शासक छत्रसाल, कवि त्यागराज, साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु,
अभिनेत्री तृषा...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से नवगीत की पाठशाला के नवगीत संकलन-
नवगीत-२०१३ का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर |
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रस्तुत
है भारत से
डॉ
सुधा पांडेय की बौद्धकथा-
तृष्णा तू न गई
वाराणसी
का राजा भौतिक सुखों में इतना अधिक आसक्त था कि उसकी तृप्ति
कभी नहीं होती थी। धन का लोभी वह राजा प्रतिक्षण कई-कई नगरों
का राज्य जीतकर उन पर शासन करने को आतुर रहता था।
उस दिन राजद्वार पर एक तरुण ब्रह्मचारी आ पहुँचा था। ‘किसलिए
आये हो।’ राजा के पूछने पर उसने स्वाभाविक ढंग से उत्तर दिया-
‘महाराज, मुझे तीन ऐसे नगर ज्ञात हैं, जो प्रभूत धान्य,
स्वर्ण, अलंकारों से भरे हैं। उन्हें आसानी से जीता भी जा सकता
है। मैं आपको उन्हीं नगरों पर विजय प्राप्त करने की सलाह देने
आया हूँ।’
'कब चलेंगे?’ राजा उत्कंठा से भर उठा था।
‘कल प्रातः ही प्रस्थान करेंगे। आप जल्दी से सेनाएँ तैयार
करायें।’ तरुण ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया और अपने स्थान को लौट
गया था।
‘कैसा सुखद समाचार है। उस ब्रह्मचारी ब्राह्मण तरुण ने आकर
मेरे भाग्य के द्वार ही खोल दिये। बिना प्रयास किये ही उत्तर
पांचाल, इंद्रप्रस्थ और केकय- इन तीनों नगरों पर विजय प्राप्त
करने का... आगे-
*
प्रेरक प्रसंग
मौत की दवा
*
मनोज कुमार अम्बष्ट का आलेख-
अजंता एलोरा की गुफाओं में बौद्ध दर्शन
*
मुक्ता की कलम से-
गौतम बुद्ध की नगरी सारनाथ
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पुनर्पाठ
में मनोहर पुरी से जानें-
उत्सव बुद्ध
पूर्णिमा का |
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सरोजिनी प्रीतम का व्यंग्य
दुलारी के जूते
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रमेश खेर के साथ पर्यटन
दार्जिलिंग शहर भी सपना
भी
*
डॉ. शंकर सोनाने का आलेख
सोप ऑपेरा का
इतिहास
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का पाँचवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुधा राजे की कहानी-
नवरतन
महल
मैं
जब भोपाल से चरखारी पहुँचा तो रात होने लगी थी। कार से मैं और
सब इंस्पेक्टर संभाजी काले डाक बँगले पर पहुँचे। रात को एग करी
और चपातियाँ खाकर जब हम दोनों सोने गये तो कुक की तारीफ करनी
पड़ी। छोटे से कस्बे में इतना स्वादिष्ट खाना मिलने की हमें
उम्मीद नहीं थी। काले कहता ''ड्यूटी के लिये तो मैं घास खाकर
भी रह सकता हूँ'' जबकि मैं हमेशा कुछ रेडी फुड बैग में लेकर
चलता हूँ। मिल्क पाउडर कॉफी पाउच। सत्तू चने और बिस्किट। एक
सत्यकथा लेखक, जो इत्तेफाक से इंटेलीजेन्स ब्यूरो का अदना सेवक
भी था किंतु जाहिरा तौर पर पुरातत्व खोजी शोधार्थी था, काले को
विभाग से मेरे साथ आने के आदेश मिले थे सुरक्षा के लिये। लेकिन
मुझे खोजनी थीं परतें रहस्यमय मौतों के सिलसिले की। बाहर दो
कांस्टेबिल बरामदे में सो रहे थे बरामदा पूरी तरह ग्रिलों से
बंद था। रात ही मेरी संगिनी थी। टेबल पर अब भी आधा खाली बैग
पाईपर सोडा-मिक्स रखा था लेकिन मैं होश में रहना चाहता था।... आगे-
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