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 २७. ४. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1
सौरभ पांडेय, नवीन चतुर्वेदी, मनोज चौहान, हरिवल्लभ शर्मा, और सुदीप शुक्ल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- चंदन का शर्बत

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१३- बगीचे के औजारों की देखभाल

जीवन शैली में- कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं- १६- अभिरुचि जो भूख उड़ा दे

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १२- ऊँचाई तक संग्रह और सजावट

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं--आज-के-दिन-(२७-अप्रैल-को) अभिनेत्री जोहरा सहगल, मलयालम कवि ओट्टपलक्कल नम्पियाटिक्कल वेलु कुरुप... विस्तार से 

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- शशि पुरवार की कलम से जयकृष्ण राय तुषार के नवगीत संग्रह- सदी को सुन रहा हूँ मैं का परिचय।

वर्ग पहेली- २३४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुधा राजे की कहानी- नवरतन महल

मैं जब भोपाल से चरखारी पहुँचा तो रात होने लगी थी। कार से मैं और सब इंस्पेक्टर संभाजी काले डाक बँगले पर पहुँचे। रात को एग करी और चपातियाँ खाकर जब हम दोनों सोने गये तो कुक की तारीफ करनी पड़ी। छोटे से कस्बे में इतना स्वादिष्ट खाना मिलने की हमें उम्मीद नहीं थी। काले कहता ''ड्यूटी के लिये तो मैं घास खाकर भी रह सकता हूँ'' जबकि मैं हमेशा कुछ रेडी फुड बैग में लेकर चलता हूँ। मिल्क पाउडर कॉफी पाउच। सत्तू चने और बिस्किट। एक सत्यकथा लेखक, जो इत्तेफाक से इंटेलीजेन्स ब्यूरो का अदना सेवक भी था किंतु जाहिरा तौर पर पुरातत्व खोजी शोधार्थी था, काले को विभाग से मेरे साथ आने के आदेश मिले थे सुरक्षा के लिये। लेकिन मुझे खोजनी थीं परतें रहस्यमय मौतों के सिलसिले की। बाहर दो कांस्टेबिल बरामदे में सो रहे थे बरामदा पूरी तरह ग्रिलों से बंद था। रात ही मेरी संगिनी थी। टेबल पर अब भी आधा खाली बैग पाईपर सोडा-मिक्स रखा था लेकिन मैं होश में रहना चाहता था। सिगरेट ऐश ट्रे में बुझाकर मैं... आगे-
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सरोजिनी प्रीतम का व्यंग्य
दुलारी के जूते
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रमेश खेर के साथ पर्यटन
दार्जिलिंग शहर भी सपना भी 

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डॉ. शंकर सोनाने का आलेख
सोप ऑपेरा का इतिहास
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पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का पाँचवाँ भाग

पिछले सप्ताह-

दुर्गेश गुप्त राज की लघुकथा
तेरहवीं का उत्सव
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डॉ. अशोक उदयवाल का आलेख
लौकी के लाजवाब गुण 

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सीताराम गुप्त का ललित निबंध
जा मरने से जग डरे
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पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का चौथा भाग

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है कैनेडा से
अश्विन गाँधी की कहानी- दिले नादान

गुरुवार, जून महीने की ग्यारह तारीख। शाम के छः बजे का समय। अविनाश लेक्चर शुरू करने की तैयारी में था। आज का विषय था- कंप्यूटर प्रोग्राम का विकासीकरण। क्लास पूरी भरी नहीं थी। कुछ और विद्यार्थियों के इंतज़ार में अविनाश इधर उधर की बातें कर रहा था। जो विद्यार्थी आ चुके थे उनमें से एक थी लीसा जोहन्सन और दूसरी थी बोनी ब्राउन। दोनों उम्र में बड़ी। करीब पैतालीस साल की। दोनों रजिस्टरर्ड नर्सें युनिवर्सिटी के चौथे साल में और डिग्री की कंप्यूटर जरूरतें पूरी करने के लिये अविनाश का कंप्यूटर लिट्रेसी का कोर्स ले रही थीं। दोनों सब के साथ साथ पढ़ रही थीं और साथ ही स्नातक बननेवाली थीं। बोनी क्लास में ज्यादा नहीं बोलती मगर लीसा दोनों का बोल लेती। "हमारे सोशीअल स्टडीज़ की क्लास के लिये हमें जेन्डर इस्युज़ पर सर्वे करना जरूरी है। क्या हम यहाँ इस क्लास में कर सकते हैं?" लीसा अविनाश से पूछ रही थी। "ठीक है, सात बजे मध्यांतर के आस पास ठीक रहेगा।... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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