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स्वाद और स्वास्थ्य

लौकी के लाजवाब गुण  

 
 क्या आप जानते हैं?

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कि लौकी या तुम्बी का उपयोग मनुष्य कृषि युग से भी पहले से करता आ रहा है।
 

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कि अनेक भारतीय वाद्ययंत्रों में गोल लौकी का प्रयोग तुम्बे के रूप में किया जाता है।
 

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कि उत्तराखंड सबंधी बुद्ध साहित्य में तुंब या तुम्बरी का उल्लेख मिलता है।
 

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कि लौकी ढेर सी बीमारियों की सुलभ औषधि है।

लौकी सर्वत्र आसानी से उपलब्ध होने वाली सब्जी है। भारत के सभी प्रान्तों में इसकी उपज की जाती है तथा बारहों मास यह आसानी से सब जगह मिल जाती है।

रूप रंग बनावट-

इसकी लता (बेल), खेत, बाग, मचान, छप्पर आदि पर फैलती है। इसके पत्ते-मृदु एवं रोमश तथा लगभग ६-७ इंच के घेरे में गोलाकार के रूप में पंचकोणाकार या पाँच खण्ड वाले होते हैं। फूल-सफेद रंग के तथा फल १ से २ हाथ लम्बे, गोल या विभिन्न आकृतियों में आते हैं। फलों के अन्दर मृदु, कोमल, बीज भी असंख्य मात्रा में होते हैं।

रासायनिक विश्लेषण-

१०० ग्राम लौकी में अनुमानित खाद्य तत्व- पानी- ९६. १ग्राम, प्रोटीन- ०.२ ग्राम, वसा- ०.१ ग्राम, रेशा- ०.६ ग्राम, कार्बोज- २.५ ग्राम, कैल्शियम- २०मि.ग्रा., फॉस्फोरस- १० मि.ग्रा., लौह तत्व- ०.५ मि.ग्रा. थायेमीन- ०.०३ मि.ग्रा., रिबोफ्लेविन- ०.०१ मि.ग्रा., नियासिन- ०.२ मि.ग्रा., खनिज लवण- ०.५ प्रतिशत, ऊर्जा- १२ कि. कैलोरी। लौकी अपने आप में औषधीय गुणों से परिपूर्ण होने के साथ-साथ भोजन में रूचि भी उत्पन्न करती है। साथ ही अनेक रोगों में लाभकर होती है। लौकी में श्रेष्‍ठ किस्‍म का पोटेशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिसके कारण यह गुर्दे के रोगों में उपयोगी है इसमें खनिज लवण अच्‍छी मात्रा में मिलती है। लौकी के बीज का तेल कोलेस्‍ट्रॉल को कम करता है तथा हृदय को शक्‍ति देता है। ये रक्‍त की नाडि़यों को भी स्‍वस्‍थ बनाते है।

विविध नाम-

हिन्दी में इसे लौकी, मीठी तोम्बी, लम्बा कद्दू तथा अंग्रेजी में बोटल गॉर्ड व लेटिन में लॅजीनेरिया बल्गेरिस नाम से जाना जाता है। संस्कृत में इसे अलाबू तथा तुम्बी कहते हैं। आकृति के आधार पर सामान्यतः दो भेद किए जा सकते हैं। एक दीर्घा अलाबू दूसरा वर्तुल अलाबू।

इतिहास-

ऐसा माना जाता है कि लौकी या तुम्बी का उपयोग मनुष्य कृषि युग से भी पहले से करता आ रहा है। एक अन्य स्रोत के अनुसार लौकी का उपयोग दस हजार वर्षों से भी अधिक पुराना है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि लौकी का जन्मस्थल अफ्रीका है और कुछ भारत को लौकी का जन्मस्थल मानते हैं। लगभग ५००० वर्ष पहले लौकी अमेरिकी महाद्वीप पर पहुँची। दक्षिण पूर्व एशिया में भी लौकी भारत से ही पहुँची। ऋग्वेद में भी लौकी का वर्णन पाया जाता है। ऐसा समझा जाता है कि लौकी का जन्म उत्तराखंड के समीप हुआ होगा! उत्तराखंड सबंधी बुद्ध साहित्य में तुंब या तुम्बरी का उल्लेख मिलता है। वाद्ययंत्रों के लिये भी लौकी का प्रयोग प्राचीनकाल से होता आया है।

आयुर्वेद में-

मीठी लौकी का फल रुचिकर, वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए हितकर, पित्त व कफ दोष नाशक एवं धातुओं की पुष्टि करता है। लौकी की सब्जी स्वास्थ के लिए लाभदायक रहती है। एक गिलास ताजा लौकी का रस रोजाना पीने से मधुमेह, आमाशयिक प्रदाह, उच्च रक्तचाप और हृदय में रक्त संचितीकरण में लाभ मिलता है। सभी रोगों में लौकी का रस, सूप या सब्जी रोगी के लिए लाभकारी है। लौकी का उपयोग आंतों की कमजोरी, कब्‍ज, पीलिया, उच्‍च रक्‍तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, शरीर में जलन या मानसिक उत्‍तेजना आदि में बहुत उपयोगी है।

अन्य घरेलू उपयोग-

पेट में जलन, गैस या अल्सर होने पर कुछ दिन सिर्फ लौकी खाने से यह ठीक हो सकता है। केवल पर्याप्त मात्रा में लौकी क़ी सब्जी खाने से पुराने से पुराने कब्ज को भी आराम मिलता है। लौकी का रायता दस्तों में लाभप्रद है। अच्छी नींद के लिये लौकी के रस को तिल के तेल के साथ मिलाकर तलवों पर हल्की मालिश से नींद न आने के रोग में लाभ मिलता है। लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है। गर्मियों में लौकी को पीसकर पैर के तलवों पर मलने से पैरों की जलन शांत होती है।
 

कड़वी लौकी-

एक कड़वी लौकी और आती है, जिसका आयुर्वेदीय चिकित्सा में औषध रूप प्रयोग भी किया जाता है। इसके बीजों में सेपोनिन नामक तत्व पाया जाता है। कड़वी लौकी के पत्र, फल आदि सब मीठी लौकी के समान ही होते हैं, किन्तु फल स्वाद में बहुत कड़वा होता है। इसीलिए इसे हिन्दी में कड़वी लौकी, संस्कृत में कटुतुम्बी तथा अंग्रेजी में बिटरगोर्ड नाम से जाना जाता है। इसके फल की गुद्दी एकदम कड़वी, वामक एवं भेदन कार्य करती है। प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग वमन (उल्टी) करवाने में होता रहा है। कामला व श्वांस रोग में भी इसको दिया जाता है। यह अपने आप में वामक होने के साथ ही विरेचन भी करवाती है। दाह एवं शोध की अवस्था में इसकी गुद्दी को पीसकर लेप किया जाता है। इसके पत्तों से सिद्ध तैल का प्रयोग गण्डमाला, गाँठ या बद आदि रोगों पर करने से लाभ मिलता है। कड़वी लौकी को बिना किसी चिकित्सक की देखरेख के नहीं खाना चाहिये।

२० अप्रैल २०१५

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