इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
रणवीर भदौरिया, विजय प्रताप आँसू, राघवेन्द्र तिवारी, डॉ. प्रदीप शुक्ल और राम
संजीवन वर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी
रसोई-संपादक शुचि लाई हैं स्वास्थ्यवर्धक सूपों की शृंखला में
गर्मागरम-
इमली की रसम। |
गपशप के अंतर्गत-
इत्र हम सबको पसंद है, लेकिन क्या इसका संबंध
किसी बीमारी से हो सकता है जानें डॉ. भावना कुँवर से-
इत्र में अवसाद |
जीवन शैली में- १०
साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद
और संतुष्ट बना सकती हैं - ९. ध्यान को
अपने जीवन का अंग बनाएँ।
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सप्ताह का विचार-
यदि अपने चुने हुए रास्ते
पर विश्वास, इस पर चलने का साहस, इसकी
कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति हो, तो रास्ता स्वयं अनुगमन करता
है। --धीरूभाई अंबानी |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (२४ नवंबर को) महाराजा जगजीत सिंह, सलीम खान, अमोल पालेकर, सेलीना
जेटली और... विस्तार से |
लोकप्रिय
लघुकथाओं
के
अंतर्गत-
अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- ९
फरवरी २००३ को प्रकाशित सूरज प्रकाश की लघुकथा-
कुकिंग क्लासेज |
वर्ग पहेली-२११
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपने विचार यहाँ लिखें |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
डॉ. अजय गोयल की कहानी-
माहिम पर प्रार्थना
ढोलक
की तत्काल व्यवस्था पाली हिल की उस बारह मंजिला इमारत में नहीं
हो सकी। खचाखच भरे हॉल में ‘रिंग सेरेमनी’ के लिए आए उन
छःसदस्यों के अलावा कोई उन्य उत्तर भारतीय नहीं था। अन्य
परिवार मुंबई वाले थे, जिनकी जड़ें अलग-अलग प्रांतों में थीं।
नवीन ने विभा को रिंग पहनाई। इसके बाद परंपरा के अनुसार विभा
का शृंगार होना था। जबकि नवीन विभा की निमन्त्रित कुछ सहेलियों
के सवालों में उलझ गया। यह युद्ध उसे अकेले ही लड़ना था। उसने
लड़ा भी और सटीक उत्तर दिए। दूसरे अर्थों में सहेलियों ने छान
लिया। ठोक-बजा भी लिया कि नवीन अप्रवासी ही है। उस समय मम्मी
थोड़ी अनमनी हो गई थीं। उन्होंने महसूस किया, अपना क्षेत्र होता
तो....तब नायन साथ होती। ढोलक की थाप पर ताल में बँधी घर-भर की
महिलाएँ नाचतीं-गातीं। यहीं से तो सासू का लाड़ शुरू होता है और
इसी प्यार के सहारे एक औरत जिन्दगी भर अपने आपको सींचती है।
पकाती है। विभा का शृंगार करती जेठानी सरला ने मम्मी को
समझाया, "ढोलक यहाँ कहाँ से मिलेगी? हम अपने गीत बिना ढोलक के
नहीं गा सकते क्यों?"
आगे-
*
सुशील यादव का व्यंग्य
गड़े मुर्दों की तलाश
*
डॉ. कमल प्रकाश अग्रवाल
से जानें
फूलों से
रोगों का इलाज
*
सुधीर वाजपेयी का आलेख
मंडला : जहाँ कभी समुद्र
लहराता था
*
पुनर्पाठ में मेहरून्निसा परवेज
का
ललित निबंध-
चिट्ठी में
बंद यादें |
अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले
सप्ताह- बाल दिवस विशेषांक में |
रेणु सहाय की बालकथा
सूरज और बादल
*
जयप्रकाश भारती का आलेख
नीति और चतुराई से भरी कहानियाँ
*
नताशा अरोड़ा से समझें
बाल रंगमंच की सार्थकता
*
पुनर्पाठ में देवेन्द्र कुमार
देवेश
का आलेख-
बाल पत्रिकाओं की
भूमिका और दायित्व
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
शीला इंद्र की कहानी-
उड़नखटोला
बड़े
ताऊजी कलकत्ते से लौटे। सुबह ही सुबह उनको मंजन के लिए लोटे
से पानी देते–देते नौ वर्ष के विजय ने एक बड़ी अजीब बात बड़े ही
रहस्यपूर्ण स्वर में उन्हें सुनाई- “आपको पता है, ताऊजी?
आजकल घर में से पैसे बहुत गायब हो रहे हैं!”
मुँह में भरा मंजन थूकते हुए बड़े ताऊजी ने हैरान होकर पूछा,
“पैसे गायब हो रहे हैं! कैसे? कौन कर रहा है?”
“यही तो पता नहीं कि कौन कर रहा है,” विजय ने परेशान होते कहा,
“पर जब से आप गए हैं बहुत से पैसे गायब हो चुके हैं। दादी ने
पानदान में सुबह को पाँच रुपये का नया-नया नोट रखा था, सो शाम
को गायब हो गया। बड़ी ताईजी के बटुए में से भी दो रुपये एक बार,
साढ़े तीन एक बार किसी ने निकाल लिये... और भी बहुत से पैसे रोज
ही गायब हो जाते हैं।“
कुल्ला-मंजन करना मुसीबत हो गया बड़े ताऊजी को। जल्दी-जल्दी
किसी प्रकार मुँह-हाथ धो कर अंदर गए। भीतर विजय की माँ और चाची...
आगे- |
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