साइंस डेली में हाल ही में
प्रकाशित एक लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि अवसाद
केवल मानसिक नहीं एक शारीरिक बीमारी है और इत्र से इसका गहरा
संबंध है। ऑटोइम्यून में गड़बड़ी की स्थिति, जिसे
ऑटोएंटीबॉडी नाम दिया गया है, बीमार की सुरक्षा प्रणाली पर
सीधा असर करती है। ऐसी अवस्था में न केवल तनाव और अवसाद (डिप्रेशन)
की स्थिति उत्पन्न होती है बल्कि सूँघने की शक्ति में भी कमी
आती है। इस बीमारी से ग्रस्त महिलाएँ और पुरुष बहुत अधिक और
तेज़ इत्र का प्रयोग करते हैं।
इतिहास में इत्र की सबसे बड़ी
दीवानी मेरी एन्टोयनेट अपने कभी ना नहाने के कड़वे सच को
छुपाने के लिए इत्र लगाकर अपना सारा वातावरण सुगंधमय बना
लेती थी। यूरोप में स्नान करना उस समय कोई आसान बात न थी।
इसलिए इत्र ही सफ़ाई और सुगंध के लिए एक सुविधाजनक उपाय था।
मेरी एंटोयनेट के समय से आज
के समय तक सफ़ाई के स्तर में बहुत सुधार आया है। मनचाहे स्तर
का गर्म पानी हवाबंद स्नानगृह और सफ़ाई के ढेरों सुरुचिपूर्ण
साधन आज घर-घर में उपलब्ध हैं, फिर भी इत्र के प्रयोग में
कोई कमी नहीं आई है। आज भी हम शरीर की दुर्गंध से मुक्ति के
लिए किसी न किसी इत्र का प्रयोग लगभग नियमित रूप से करते
हैं। अकसर दूसरों को प्रभावित करने, और अपनी पहचान बनाने के
लिए लोग महँगे, तेज़ और अधिक मात्रा में इत्र का प्रयोग करते
हैं।
इत्र आधुनिक जीवन शैली का
हिस्सा बनते जा रहे हैं लेकिन मध्यपूर्व के एक विश्वविद्यालय
के एक ताज़े शोध के अनुसार यह सत्य हाल ही में सामने आया कि
एक विशेषरूप के अवसाद से सूँघने की शक्ति में कमी आती है
जिसके कारण लोग ज़्यादा या तेज़ इत्र का प्रयोग करते हैं।
अगली बार जब किसी तेज़ इत्र की खुशबू आपके नथुनों से टकराए
तो आप संदेह कर सकते हैं कि यह व्यक्ति तनाव या अवसाद का
शिकार है।
यूएई में स्थित स्विस
एरेबियन परफ्यूम नामक कंपनी के चेयरमैन हुसैन अदमाली का भी
विचार है कि अलग प्रकार की सुगंध से विभिन्न लोगों की मानसिक
स्थिति में परिवर्तन होता है। उन्होंने आगे कहा कि हाँलाँकि
यह बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती कि इत्र का अवसाद से
कोई संबंध है या नहीं पर इत्र की सुगंध मन की भावनाओं पर असर
तो ज़रूर डालती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पर्फ्यूम
के विज्ञापन भी बनाए जाते हैं और उनको बेचा जाता है। यानी
परफ्यूम का मूड बताने के लिए विज्ञापन और ख़रीदार का मूड
बेहतर करने के लिए इत्र।
आमतौर पर यह समझा जाता है
कि इत्र न केवल शरीर को सुगंधित रखने कि लिए बल्कि मन को
प्रफुल्लित रखने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अपनी माँ की
गंध, या पहचान की कोई गंध उस व्यक्ति की याद दिला ही देती
है। इस तरह लोग गंध के द्वारा ही अपनी पुरानी यादों को भी
ताज़ा कर लेते हैं
यदि आप नाक बंद कर के कोई
चीज़ खाएँ तो निश्चित है कि आप उसका पूरा आनंद भी नहीं ले
पाएँगे। सुगंध में वह शक्ति है कि वह किसी भी अनुभव को
प्रभावित तो करती ही है, बेहतर भी बनाती है। पर इस सबकी
वैज्ञानिक व्याख्या के लिए अभी बहुत अध्ययन की आवश्यकता है।
अब उपभोक्ताओं को भी बंधी
बंधाई परिपाटी से बाहर निकलकर इत्र का चुनाव करते समय जागरूक
होने की आवश्यकता है क्यों कि अलग अलग व्यक्तियों के शरीर के
पर सही इत्र का चुनाव वैयक्तित्व में आत्मविश्वास की वृद्धि
करता जो दूसरों की दृष्टि में उसे अधिक लोकप्रिय बनाता है।
अनेक इत्र ऐसे आकर्षक होते
हैं कि उनकी सुगंध लोगों को पलटकर देखते पर विवश कर देती है।
इस तरह किसी पर भी पहला प्रभाव महत्वपूर्ण बनाया जा सकता है
और वह कहते हैं ना कि पहला-पहला प्रभाव ही अंतिम प्रभाव होता
है।
अच्छे से अच्छा इत्र भी दो
तीन छोटी फुहारों से अधिक नहीं छिड़कना चाहिए। अगर इसके बाद
भी आपको लगता है कि और इत्र होना चाहिए तो किसी विश्वासपात्र
व्यक्ति से पूछा जा सकता है कि और इत्र की आवश्यकता है या
नहीं और उसके आधार पर दैनिक इत्र की मात्रा का निर्धारण करना
चाहिए। अगर ऐसा महसूस हो कि कोई भावनात्मक दबाव परेशान कर
रहा है तो तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। इत्र में
अवसाद छुपाना स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है।
१० मार्च २००८
२४ नवंबर
२०१४ |