अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश // शब्दकोश // पता-


२७ . १०. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
जय चक्रवर्ती, कमला सिंह ज़ीनत, अमरेन्द्र सुमन, ज्योतिर्मयी पंत, रोहिणी कुमार भादानी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये चुना है- दीपावली के के बाद कुछ हल्का पौष्टिक और उत्सवी- पनीर पुलाव

गपशप के अंतर्गत- स्वास्तिक हम हर शुभ अवसर पर बनाते हैं। दीपावली पर भी बनाए लेकिन क्यों? आइये विस्तार से जानें- स्वास्तिक की महिमा

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - ५. खुली हवा खुशी का उपहार

सप्ताह का विचार- दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता।- विष्णु प्रभाकर

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (२७ अक्तूबर को) के.आर.नारायणन, ग्रैंड मास्टर दिव्येन्दु बरुआ, शेफ मनीत चौहान, अभिनेत्री पूजा बत्रा... विस्तार से

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम-विजय-का-बारहवाँ-और-अंतिम-भाग

वर्ग पहेली-२०८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 सुशांत सुप्रिय की कहानी- पाँचवीं दिशा

हम सब पिता को एक अंतर्मुखी व्यक्ति के रूप में जानते थे। दादाजी की मौत के बाद खेती-बाड़ी का दायित्व उनके कंधों पर आ गया था लेकिन शायद वे अपने वर्तमान जीवन से खुश नहीं थे। मुझे अक्सर लगता कि शायद वे कुछ और ही करना चाहते थे। शायद उनके जीवन का लक्ष्य कुछ और ही था। माँ पिता से ज्यादा दुनियादार महिला थीं। खेती-बाड़ी की देख-रेख का काम माँ और मामा ने सँभाल लिया। इसलिये घर की गाड़ी बिना लड़खड़ाए चलती रही। तब मैं चौदह साल का था और गाँव की पाठशाला में आठवीं कक्षा में पढ़ता था। एक दिन पिता ने घर में घोषणा की कि वे एक 'हॉट एयर बैलून' बनाएँगे और उसमें बैठ कर ऊपर आकाश में जाएँगे। घर-परिवार और गाँव में जब लोगों ने यह सुना तो वे तरह-तरह की बातें करने लगे। किसी ने कहा कि उनका दिमाग खिसक गया है। किसी ने गाँव के ओझा को बुला कर उनका इलाज करवाने की बात की। माँ ने भी इसे पिता की सनक बताया और उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहा, किंतु पिता अपनी बात पर कायम रहे। आगे-
*

शशिकांत सिंह शशि का व्यंग्य
दुनिया ऑन लाइन
*

शमशेर अहमद खाँ का आलेख
चमगादड़ हमारा मित्र हैं
*

कंदम्बरी मेहरा का आलेख-
हैलोवीन का त्यौहार

*

पुनर्पाठ में श्रीश बेंजवाल का आलेख
कंप्यूटिंग के पितामह डेनिस रिची

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-  दीपावली के अवसर पर     

अफसर खाँ सागर का व्यंग्य
कैटल क्लास की दीवाली
*

शोभाकांत झा का
ललित निबंध- रामराज्य
*

डॉ. राजनाथ त्रिपाठी का आलेख
सीता का निर्वासन- देश और विदेश में

*

पुनर्पाठ में अर्बुदा ओहरी के साथ मनाएँ
प्रकृति प्रेम के साथ दिवाली

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है मारीशस से
 कुंती मुकर्जी की कहानी- सोने का रथ

सोनलता आँखें मींचती हुई आयी और अपनी माँ से कहने लगी- “आज मैंने फिर वही सपना देखा।”
सोनलता की माँ प्रेमलता ध्यानमग्न होकर सूर्य को अर्घ्य दे रही थी। तुलसी के चौतरे पर घी का दिया जल रहा था और धूप बत्ती की सुगंध से वातावरण सात्विक बना हुआ था। सुबह के छः बजे थे। हवा में हल्की ठंडक अब भी थी और प्रेमलता एक झीनी साड़ी में लिपटी कोई मंत्र बुदबुदा रही थी। “आज भी माँ मेरी बात नहीं सुनेगी” सोनलता कोई बाधा दिये बिना अपने कमरे में लौट आयी और मन ही मन कहने लगी- “ऐसी भी कोई ज़िंदगी होती है।” वह सोलह साल की हो गयी थी और अब वह अपने लिये एक विस्तृत आकाश चाहती थी। उसने अपने कमरे की खिड़की खोल दी और आकाश की ओर देखने लगी। नीले आसमान में सफ़ेद सफ़ेद कुछेक बादल के टुकड़े फैले थे, समुद्र की लहरों पर सूर्य की स्वर्णिम किरणें अधखेलियाँ करने लगी थीं, वह समझ गयी कि आज का दिन सुहाना होगा। वह कुछ और सोचती कि उसने अपनी माँ को... आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा
पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading
     

आँकड़े विस्तार में

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com