अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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६ . १०. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
बृजेश द्विवेदी अमन, अरुण शर्मा अनंत, प्रभा मजूमदार, डॉ. नलिन और ऋतेश खरे की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये चुने हैं- दीपावली की तैयारी में विशेष व्यंजनों के अंतर्गत- नमकपारे

गपशप के अंतर्गत- जल्दी ही सर्दियों के दिन शुरू होंगे और साथ ही शुरू होगी फेफड़ों में संक्रमण, गले में खिच-खिच, इससे बचें और पढ़ें- सर्दियों में सर्दी

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - २. व्यायाम में चुस्ती है?

सप्ताह का विचार- हर-चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। -संतोष गोयल

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (६ अक्तूबर को) धावक धर्मपाल सिंह, वैज्ञानिक मेघनाथ साहा, अभिनेता विनोद खन्ना का जन्म ... विस्तार से

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और प्रेरक वक्‍ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय का नवाँ भाग

वर्ग पहेली-२०५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 वर्षा ठाकुर की कहानी- ढलते सूरज को सलाम

मैं अस्त होते सूरज को सलाम करता हूँ। सुबह का सूरज तो मुझे दिखता ही नहीं था। मेरे ब्लॉक के पीछे से कब निकल आता और सर पर चढ़ जाता पता ही नहीं चलता। जब नया नया कलकत्ता आया था तो बड़ा अजीब लगता था, कितना भी जल्दी उठ जाओ, सूरज सर पर ही मिलता था। फिर मैंने मॉर्निंग वाक का इरादा त्याग दिया। पर मेरी मुलाकात अस्त होते सूरज से रोज ही हो जाती। बात इतनी आगे बढ़ चुकी थी कि मुझसे मुलाकात किये बिना सूरज अस्त ही नहीं होता। और मुलाकात भी कैसी, शाम को छह बजे स्कूटर से घर लौटते हुए जब अंतिम चौराहे पर पहुँचता तो बाँयें मुड़ते ही सड़क के दूसरे छोर पर पेड़ों और इमारतों की कतार से ठीक ऊपर मेरा दोस्त डला रहता था, दिन भर की थकान से चूर पसरने को तैयार, बिलकुल मेरी तरह। बस यहीं से शुरू होकर गली के अंतिम मोड़ पर खत्म हो जाती हमारी मुलाकात। और इन दोनों मोड़ों के बीच लगभग दो सौ मीटर की दूरी जो मैं स्कूटर से अमूमन पंद्रह सेकंड में पूरी कर लेता, वही होता था हमारी दुआ सलाम का वक़्त।... आगे-
*

प्रमोद यादव की लघुकथा
अदृश्य आँखें
*

डॉ. अशोक उदयवाल से
स्वाद और स्वास्थ्य में- एक अनार सौ उपकार
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सुरेश कुमार पण्डा का ललित निबंध
उदास चाँदनी

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पुनर्पाठ में सुप्रिया से जानें
शरदऋतु वस्तुतः पर्वों की ऋतु

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पिछले सप्ताह-        नवरात्रि में माँ को समर्पित

अभिषेक जैन की लघुकथा
माँ का विश्वास
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डॉ. जगदीश व्योम का आलेख
हिंदी हाइकु कविताओं में माँ
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मृदुला शर्मा की कलम से
पाँच मिनट की रामलीला पाँच लाख की भीड़

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पुनर्पाठ में अजातशत्रु का संस्मरण
गाँव में नवदुर्गा

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 नीलेश शर्मा की कहानी- अजन्मी

बच्ची को माँ के गर्भ में रहते हुए बीस हफ्ते हो चुके थे! खुद बच्ची को भी दो रोज पहले ही पता चला था कि वो एक बेटी के रूप में जन्म लेगी। बाहरी दुनिया के लिए तो गर्भ एक अंधकारमय जीवन होता है लेकिन बच्ची के लिए नहीं था। हर पल परमेश्वर उसके साथ रहते थे। एक रंगीन, मोहक, कल्पनाओं में खोयी रहने वाली दुनिया में दोनों मस्त रहते थे। प्रभु अपने हाथों से उसका रूप गढ़ते और उसे देख कर मुग्ध हो जाते। कहते हैं दूध में सिंदूर घोल कर प्रभु रचना करते हैं कन्या की। प्रभु अपने दूतों से दूर दूर से कभी सुन्दरता को मँगवाते, कभी कोमलता को और उस बच्ची के शरीर में भर देते। कभी अपने किसी खास बन्दे से कहते कि कोयल की आवाज में जरा सा शहद घोल कर दो। कभी हिरनी से चितवन माँगते, कभी जलते हुए दीपकों से रौशनी लेते और कभी चंद्रमा से उसकी चाँदनी ही माँग लेते। अपने हाथों से वो बच्ची को सजाते। वो बच्ची प्रभु की बड़ी लाडली थी। प्रभु के हाथ जब उस बच्ची के लघु गात को स्पर्श करते तो दिन भर के शांत पड़े... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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