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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
अभिषेक जैन की लघुकथा- माँ का विश्वास


गली के कुछ बिगङे बच्चों के साथ तेरह वर्षीय विष्णु पिकनिक मनाने के लिये जाने की तैयारी कर रहा था।

पड़ोसन को खबर लगी तो वो विष्णु की माँ से बोली-
''अरी विष्णु की माँ, पता है तेरा बेटा जिन बच्चों के साथ जा रहा है वो मुहल्ले के कैसे बिगड़े हुए बच्चे हैं? हर तरह का शौक पाले हुए हैं। तेरे बच्चे को भी बिगाड़ देंगे। अपने बेटे का कुछ ख्याल है तो उसे जाने से रोको। इन बच्चों के साथ मत खेलने दो। इनके साथ घूमना फिरना तो बिलकुल भी ठीक नहीं है।
अभी तुम लोग इस मुहल्ले मेँ नये नये आये हो इसलिये तुम्हें पता नहीं है बाकी पुरा मुहल्ला जानता है इन बिगड़े बच्चों के बारे में। सावधानी से काम लो और मेरी बात मान लो। विष्णु को उनके साथ मत भेजो।"

चुपचाप पड़ोसन की बात सुनने के बाद विष्णु की माँ ने कहा- ''फिर तो विष्णु जरुर जायेगा।''
पड़ोसन ने आश्चर्य से पूछा- ''मतलब? बेटे की तुम्हें कोई चिंता नहीं?''
विष्णु की माँ ने कहा यदि मेरे बेटे के जाने से भटके हुए बच्चे सही राह पर आते हैं तो बेटे को भेजने में बुराई क्या है?

पङोसन ने फिर कहा- ''मै समझी नहीं...''

विष्णु की माँ ने बड़े इत्मिनान से कहा- ''मेरा बेटा उनके साथ रहने पर बिगड़ के नहीं आयेगा बल्कि उनको सुधार के ले आयेगा। तुम भी उन बच्चो में बदलाव देख लेना, फिर कहना।"

२९ सितंबर २०१४

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