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१५. ९. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
पितृपक्ष के अवसर पर पिता को समर्पित, विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों के संवेदनशील संबोधन।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये चुनी है- आने वाले त्यौहारों को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्यवर्धक मीठा दही फलों वाला

गपशप के अंतर्गत- त्योहार आने वाले हैं और मेहमानों का आना जाना जल्दी ही शुरू हो जाएगा। ऐसे में कुछ उपयोगी सुझाव- घर को कैसे रखें व्यवस्थित

जीवन शैली में- शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं। १४ प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- १३

सप्ताह का विचार- संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है उतनी कटार नहीं। --जयशंकर प्रसाद

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (१५ सितंबर को) शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, डॉ. रामकुमार वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, पी. चिदंबरम... विस्तार से

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और प्रेरक वक्‍ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय का छठा भाग

वर्ग पहेली-२०२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

विशेषांकों की समीक्षाएँ

 

साहित्य एवं संस्कृति में- पितृपक्ष में पिता के लिये

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 राजकुमार राकेश की कहानी-
पिता

बच्चा साढ़े बारह बरस से कुछ महीने ज्यादा उमर का था। यही कोई दो ढाई महीने ज्यादा। पर दादी यानी अम्मा उसे तेरह का जवान सधान कहती थी। इसी तर्ज पर लोगबाग भी उसे अच्छा भला जिम्मेदार जवान मान लेने लगे थे। हालाँकि उसके साथ के बच्चे खूब खेलते और आपस में लड़ते झगड़ते थे पर खुद उसने ऐसे कामों से तौबा कर ली थी। उसने मान लिया था कि उस बच्चे के साथ ऐसा ही होता होगा, जिसकी माँ बहुत पहले मर चुकी हो। और अब कुछ ही दिन पहले मजदूरों की हड़ताल में पुलिस की गोली से उसके पिता की भी मौत हो गई हो। और उन दोनों के मरे हुए शरीरों की कपालक्रिया उसने अपने हाथों से की हो। और खासकर तब तो और भी ज्यादा जब अम्मा अनगिनत बार कह चुकी हो कि अब उसके कंधों पर उसके छोटे दो भाईयों और दो बहनों का भार है। बल्कि वह तो अक्सर कहती थी कि यह इन चारों के लिए अब पिता की तरह है। उसका कहना था कि पिता कहीं बाहर से उधार नहीं लाया जा सकता। वह तो हमेशा अपने घर के अंदर होता है। आगे-
*

नीलेश शर्मा की
लघुकथा- याद
*

सुबोध कुमार नंदन का आलेख
पूर्वजों के उद्धार के लिये प्रसिद्ध तीर्थ- गया
*

तृषा पटेल का शोध निबंध
वेद और पुराण में श्रद्धा व श्राद्ध
*

पुनर्पाठ में जयप्रकाश मानस का
ललित निबंध- काग के भाग

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पिछले सप्ताह-  हिंदी दिवस के अवसर पर

चीन से डॉ. गुणशेखर का
व्यंग्य- नंगमेव जयते
*

डॉ. उषा तैलंग के शब्दों में-
महाभाव स्वरूपिणी श्री राधा
*

इला प्रसाद के कहानी संग्रह-
''तुम इतना क्यों रोईं रूपाली'' से परिचय
*

शैलेन्द्र चौहान का आलेख-
सदा सजीली गजल दुष्यंत की

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
डॉ.सरस्वती माथुर की कहानी- आयोजन

लाजवंती गोखले एशिया के इस बहुचर्चित और विशाल साहित्यिक उत्सव में जब पहुँची तो फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी थी और रंगायन हॉल में वरिष्ठ रंगकर्मी व फिल्मकार विक्रांत सेठ का 'की नोट' चल रहा थाl बाहर के फ्रंट लॉन में बहुत से लेखक एक गोल मेज के चारों ओर कॉफ़ी पीते हुए सहज बातचीत कर रहे थे। शहर के बीचों बीच बने "लेखक पैलेस" में गत पाँच सालों से पाँच दिवसीय फेस्टिवल हर वर्ष जनवरी में ही आयोजित किया जाता है। सभी से एक ही मंच पर मिलने जुलने का यह अवसर किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है !सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक अलग- अलग सत्र और सांस्कृतिक आयोजन चलते रहते हैं। देश विदेश की प्रमुख प्रसिद्ध हस्तियाँ गुलाबी नगर का मुख्य आकर्षण होती हैं। जहाँ निगाह डालो लेखकों का जमघट नज़र आता हैl लेखक पैलेस के बीचों बीच एक लान है जहाँ सर्दियों की ऊनी सी धूप में लेखको के समूह संवाद में डूबे नज़र आते हैं। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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