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लघु-कथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
नीलेश शर्मा की लघुकथा- याद


ट्रेन में घुसते ही आज नोना को पता नहीं क्या हुआ, तेज तेज रोना शुरू कर दिया !

दो साल की बच्ची को समझाएँ भी तो कैसे ? माँ ने बहुत कोशिश की उसे सुलाने की पर पता नहीं आज क्या बात थी कि वह पिता की गोदी छोड़ने को तैयार नहीं! माँ गोद में लेकर बैठे तो फिर और तेज रोना शुरू! और माँ ट्रेन की गैलरी में टहले वह कुछ सुरक्षित और सुविधाजनक नहीं था।

आखिरकार पिता ने बेटी को कंधे से लगाया और थपकी देते हुए टहलना शुरू किया ! हल्का सा गुनगुनाने लगे ! यात्री मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, महिलाएँ कुछ भावुक हो उठीं! नोना थोड़ी देर बाद चुप हो गई, धीरे से पिता के कंधे पर सिर टिका दिया, आँखें रुक रुक कर बंद कीं और थोड़ी ही देर में मीठे सपनो में खो गयी !

आश्वस्त माँ, पिता की गोद से बच्ची को लेने के लिये उठी तो पिता की आँखे भीगी हुई थी !
माँ ने बच्ची को लेकर सीने से सटाया और पति की आँखों में आँखे डालकर शरारत से पूछा !
"बेटी पर इतना प्यार आया कि मोती बरस पड़े?"
"नहीं, बस, आज पता नहीं क्यों बाबूजी याद आ गए।"

१५ सितंबर २०१४

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