इस सप्ताह- |
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अनुभूति
में-
वर्षा की बौछारों से भीगी
कविताओं का सुंदर समारोह गीतों की दुनिया से। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में-
भुट्टे वाला
पिजा। |
गपशप के अंतर्गत- वर्षा हो और छाते
की बात न हो, यह भला कैसे हो सकता है। वर्षा के साथ छाते के विषय में रोचक
तथ्यों का आनंद लें
विस्तार से... |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४ प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- ५
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सप्ताह-का-विचार-में-
फल-के
समय वृक्ष, वर्षा के समय बादल और सम्पत्ति के समय सज्जन झुक जाते हैं।
परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-कि-आज-के-दिन-(२१-जुलाई-को)
१९११ में-साहित्यकार-उमाशंकर-जोशी,-१९१५
में लेखिका इस्मत चुगताई, १९३० में गीतकार आनंद बख्शी...
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लोकप्रिय
उपन्यास
(धारावाहिक) -
के
अंतर्गत प्रस्तुत है २००५
में
प्रकाशित
सुषम बेदी के उपन्यास—
'लौटना' का
चौथा भाग। |
वर्ग पहेली-१९४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- वर्षा मंगल विशेषांक |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
शुभ्रा उपाध्याय की-कहानी--
अषाढ़ के दिन
आसमान काले-काले बादलों से भर गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को
तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ मन जैसे नई ऊर्जा से उमग
गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम बिल्कुल बदल गया। जैसे
किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। कितनी देर से उसकी खीझ
अपने से होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी,
किन्तु यहाँ तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को
सहलाती धीरे-धीरे बह रही थीं, बादलों की नमीं आँखों के सहारे
मन की गहराइयों में उतर रही थी और उसका मन बूँद-बूँद भीगता
क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील होता जा रहा था। उसने एक लम्बी
साँस ली। आँखें बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर
ऊपर देखा। बादल न जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे
इतने बेफिक्र भी न थे कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न
पूछ सकें। उसने स्पष्ट देखा- दो मेघदूतों को आपस में
कहते-सुनते और रुककर बतियाते। ये मेघदूत अपने-अपने आत्मीयों
को अपना संदेशा ऐसे ही भेजा करते हैं शायद! इनके लिए तो कोई
कालिदास महाकाव्य की रचना नहीं करते।
... आगे-
*
बसंत आर्य की लघुकथा
बारिश
*
कुमार अंबुज का एकालाप-
अपनी बारिश के बीच
*
उमाशंकर चतुर्वेदी का निबंध
पावस
के शृंगारिक छंद
*
पुनर्पाठ में- डॉ. नवाज देवबंदी का
गजल संग्रह-
पहली बारिश
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कुँवर भारती की लघुकथा
नेताजी
*
नवीन नौटियाल का आलेख-
हम गूजर जंगल के
वासी
*
अशोक उदयवाल से जानें
कचरी के गुण कमाल के
*
पुनर्पाठ में-
अर्बुदा ओहरी से सुनें-
कहानी काफी की
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.के. से
कादंबरी मेहरा की-कहानी--
दूसरी बार
यह कौन सुबह सुबह इस कार पार्क के किनारे दिखाई दी?
शायद यह भी मेरी तरह चहल कदमी करने निकली है। ऊँह...ज़रा मोटी
है! ज्यादा लम्बी भी नहीं है। शायद पंजाब से हो। पर इसकी क्या
गारंटी! आजकल तो सब सलवार कमीज़ पहनती हैं। ऊँह... होगा! ज़रा
स्मार्ट होती तो बात भी थी, मचक मचक कर चल रही है। थोड़ी देर
बाद रुक कर खड़ी हो जाती है, साँस फूलने लगी होगी। पता नहीं
हमारे देश की औरतों को लम्बे बाल क्यों अच्छे लगते हैं। हीरानी
के बाल कटे हुए थे। साँवली सलोनी सूरत पर दो मोटी मोटी, भारी
पलकों वाली आँखें और ऊँचे सँवारे छोटे कटे बाल। जब हलके बैंगनी
रंग की, वायल की, घुटनों तक लम्बी फ्राक पहन लेती थी तब कितनी
कसी हुई और सुडौल लगती थी! उसे बाहों में भरे एक अरसा हो गया।
कहाँ चली गयी? जुबान की तेज जरूर थी मगर क्या रस था। आर्मी
सर्किल में तो कितनी ही ऐसी थीं जो मेरे साथ नाचना पसंद करती
थीं मगर जिस दिन किसी को प्लीज़ किया नहीं कि हीरानी आपे से
बाहर हो जाती थी।... आगे-
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