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१९. ५. २०१४

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में- सावित्री परमार, डॉ. मधु प्रधान, सुशील जैन, सुषमा जोशी दुबे तथा मयंक सिन्हा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- गर्मियों के मौसम में फलों का ताजापन समेटे कुछ ठंडे मीठे व्यंजनों के क्रम में- आड़ू-सट्राबेरी काब्लर

गपशप के अंतर्गत- भाग-दौड़ का जीवन, व्यस्तता के पल, मन सदा उलझन में, ऐसे में कैसे संभालें स्वयं को जानें विस्तार से- तनाव मुक्त जीवन...

जीवन शैली में- ऊर्जा से भरपूर जीवन शैली के लिये सही सोच आवश्यक है, इसलिये याद रखें-  सात बातें जिनके लिये झिझक नहीं होनी चाहिये

सप्ताह का विचार में- हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। -संतोष गोयल

- रचना व मनोरंजन में

आज के दिन कि (१९ मई को) साहित्यकार माणिक बंधोपाध्याय, भूतपूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीवारेड्डी, लेखक, अभिनेता, निर्देशक गिरीश कर्नाड...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक) - के अंतर्गत प्रस्तुत है २००४ में प्रकाशित स्वदेश राणा के उपन्यास— 'कोठेवाली' का पहला भाग

वर्ग पहेली-१८५
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
रमेश सैनी की कहानी- घोंसला

लता छत पर गीले कप‹ड़े सुखा रही थी, कि उसका ध्यान सेम की लता गुच्छ के समीप से आती सर्र सर्र की ध्वनि पर गयाŸ। उसने पलट कर देखा, एक चिड़िया फुर्र से उड़ गयी। वह फिर अपने काम में लग गयी। कुछ देर बाद फिर से सर्र सर्र की आवाज़ आयी। वह सेम की लताओं की ओर ब‹ढ़ गयी। पास जाकर देखा, एक चिड़िया ने लताओं और छत की रेलिंग के मध्य एक छोटा सा घोंसला बनाया है, जिसमें दो छोटे-छोटे सुन्दर सफेद अण्डे रखे हैंŸ। उसे पास देख चिड़िया चहचहाती हुई उसके आसपास उड़ने लगीŸ। शोभिता चिड़िया की घबराहट को समझ गयी और पलटकर नीचे उतर आयी। उसे अपना अतीत याद आया जब वह पहली बार माँ बनी थीŸ। वह चौबीस घंटे अपने बेटे को निहारती रहतीŸ। बार-बार उसका कपाल चूमतीŸ। मुँह साफ कर देती, कि कहीं उसे धूल तो नहीं लगी? लोग उसे चि‹ढाते, बƒच्चा घर के तीसरे कमरे में है, भला उसे धूल कैसे लगेगी? तब वह तपाक् से कहती, “आप लोग कहना तो मानते नहीं, सीधे कमरे में जूते पहनकर घुस आते हो, और धूल कमरे में... आगे-
*

दीपक दुबे का व्यंग्य
चोरों की हड़ताल
*

स्नेहलता की कलम से
एक सरोवर की कहानी
*

राहुल देव का आलेख
समकालीन कहानियों में अकेलापन
*

पुनर्पाठ में-
शैल अग्रवाल के साथ- यात्रा और पड़ाव

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पिछले सप्ताह-


महेशचंद्र द्विवेदी की व्यंग्य
अधिकार का असली मजा
*

रामचंद्र शर्मा का आलेख-
गौतम बुद्ध : क्रांतिदर्शी प्रवृत्तियाँ
*

योगेश पाण्डेय से जानें-
क्या आप फेसबुक के लती हो रहे हैं
*

पुनर्पाठ में- रोहित कुमार बोथरा
का आलेख- सा से सारंगी

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से शशिकांत सिंह शशि की कहानी- टोपियों वाला आदमी और बंदर

कथा वहीं से शुरू होती है। टोपियों वाला टोपियाँ बेचने जा रहा था। थक कर, पेड़ के नीचे सो गया। टोपियाँ लेकर बंदर पेड़ पर चढ़ गये। टोपियों वाले ने अपनी टोपी उतार कर उछाली तो बंदरों ने भी टोपियाँ चलाकर मारीं। इस प्रकार टोंपियों वाले को अपनी टोपियाँ मिल गईं। टोपियों वाला तो चला गया लेकिन जाते-जाते उसने बंदरों की ओर इशारा करके एक ऐसी बात कह दी जो उन्हें चुभ गई।
-"बंदर कहीं के। नकलची हो तुमलोग।"
बंदरो में विमर्श शुरू हो गया कि टोपियाँ क्यों वापस की गईं? बच्चे बंदरों ने लीडर बंदर से पूछा-
-"उस्ताद ! टोपियाँ वापस करके हमने अच्छा नहीं किया। हम पर नकलची होने का आरोप लग गया। यह कलंक कभी नहीं मिटेगा। आप तो अनुभवी हैं। आपको ज्ञात है कि आदमी किस प्रकार हमें बदनाम करने की मुहिम पर लगा रहता है। पहले ही उन लोगों ने उड़ा रखा है कि वे हमारे ही वंशज हैं। अब वक्त आ गया है कि हम आदमियों को... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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