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दृष्टिकोण

 

क्या आप फेसबुक के लती हो रहे हैं
योगेश पाण्डेय द्वारा संकलित


एक गणना के अनुसार इस समय फेसबुक पर एक अरब (१,०००,०००,०००) पंजीकृत सदस्य हैं, यानि दुनिया का हर सातवाँ व्यक्ति फेसबुक पर है। बहुत संभव है कि आप भी उन्ही में से एक हों और शौकिया फेसबुक का प्रयोग कर रहे हों। पर सोचने की बात है वो ये कि क्या आप फेसबुक का सिर्फ प्रयोग कर रहे हैं या आवश्यकता से अधिक प्रयोग कर रहे हैं या फिर आप इसके लती हो चुके हैं।

प्रयोग करने का अर्थ है कि आप फेसबुक पर प्रतिदिन एक घंटे से कम समय देते हैं, आवश्यकता से अधिक प्रयोग करने का अर्थ है एक घंटे से ज्यादा। और हाँ, प्रयोग करने से बस ये अर्थ नहीं है कि आप शारीरिक रूप से कंप्यूटर/लैपटॉप के सामने बैठकर या अपने स्मार्ट फोन को हाथ में लेकर प्रयोग करते हैं बल्कि अगर आप फेसबुक के बारे में सोचते हैं तो वह समय भी फेसबुक का प्रयोग करने में जोड़ा जाएगा। क्यों कि यह विचार उतनी देर के लिये आपके मस्तिष्क पर अधिकार बनाए हुए है।

फिर भी अगर आप सोचते हैं कि आप फेसबुक के आदी नहीं हैं तो इन लक्षणों पर ध्यान दें। कहीं इनमें से कोई लक्षण तो आप में नहीं? अगर इनमें से दो या अधिक लक्षण आपमें है तो आप फेसबुक के लती हो गए हैं।-
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क्या आप का दिमाग अक्सर इसी विचार में लगा रहता है कि आपकी पोस्ट की गयी चीजों पर क्या कितनी टिप्पणियाँ आई होंगी, कितने लोगों ने लाइक किया होगा।

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क्या आप बिना अर्थ बार-बार फेसबुक स्क्रीन रिफ्रेश करते हैं कि कुछ नया दिख जाए।

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क्या अगर थोड़ी देर आपका इंटरनेट नहीं चला तो आप अपडेट चेक करने साइबर कैफे चले जाते हैं या दोस्त को फ़ोन करके पूछते हैं।

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आप प्रसाधन (टॉयलेट) में भी मोबाइल या लैपटॉप लेकर जाते हैं कि फेसबुक प्रयोग कर सकें।

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आप सोने जाने से पहले सभी को शुभरात्रि कहते हैं और सुबह उठ कर सबसे पहले ये देखते हैं कि आपकी शुभरात्रि पर क्या प्रतिक्रिया आई।

आप और मैं-

अब मैं आपको अपने फेसबुक प्रयोग के बारे में बताता हूँ, मैं औसतन प्रतिदिन दस मिनट से भी कम फेसबुक प्रयोग करता हूँ। इसके बाद फेसबुक के बारे में नहीं सोचता। हाँ, इसे आप आवश्यकता से कम प्रयोग भी कह सकते हैं। मेरे विचार में आदर्श रूप से फेसबुक का प्रयोग आधे घंटे से अधिक नहीं करना चाहिए पर फिर भी मैंने ‘आवश्यकता से अधिक प्रयोग’ को एक घंटे से ऊपर रखा है।

और अब आपकी बात करते हैं, आप कितनी देर फेसबुक प्रयोग करते हैं? अगर आप प्रतिदिन आधे घंटे से ज्यादा फेसबुक का प्रयोग कर रहे हैं, और यह प्रयोग किसी प्रयोजन को सिद्ध नहीं करता, तो आप अपना समय बरबाद कर रहे हैं। प्रयोजन सिद्ध करने में निम्नलिखित बातें आती हैं- अपने व्यापार का प्रचार करना, किसी सामाजिक कार्य (समाज सेवा, एन.जी.ओ. या पत्रिका चलाने) में लगा होना या किसी अन्य सार्थक काम में लगे होना। इस स्थिति में आपका फेसबुक पर समय देना सार्थक है।

किस तरह के लोग फेसबुक आवश्यकता से अधिक प्रयोग करते हैं-

  • जिनके जीवन में कोई सार्थक उद्देश्य नहीं है।

  • जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं।

  • जो अपने जीवन से अधिक दूसरों को जीवन में रुचि रखते हैं।


क्या नुकसान पहुँचा सकता है फेसबुक का अधिक प्रयोग?

इसकी सूची तो बहुत लम्बी है लेकिन आज मैं आपके साथ सात ऐसे बिंदु साझा कर रहा हूँ, जो आपको सबसे अधिक हानि पहुँचा सकते हैं। तो आइये देखते हैं इन्हें-

  • १. आप अनजाने अपनी खुशी का नियंत्रण दूसरों को दे देते हैं?
    कैसे? दरअसल अब आपकी खुशी इस बात पर निर्भर करने लगती है कि फेसबुक पर आपकी बातों, आपकी फोटो को कितने लोग लाइक कर रहे हैं, कितने लोग उसपर टिप्पणी कर रहे हैं …कैसे टिप्पणी कर रहे हैं इत्यादि। उदाहरण के लिये आपने एक नई घड़ी ली और उसकी फोटो प्रकाशित की…स्वाभाविक है कि आपको घड़ी बहुत पसंद थी इसलिए आपने ली …पर जब फेसबुक पे उसे अधिक लोग पसंद वाला बटन नहीं क्लिक करते बल्कि कोई उसका मज़ाक बना देता है तो आप दुखी हो जाते हैं, और उसका उल्टा भी, सही है, आप को कोई चीज पसंद नहीं है पर बाकी लोग उसको अच्छा कह देते हैं तो आप खुश हो जाते हैं तो एक तरह से आप अपनी खुशी का नियंत्रण अपने फेसबुक मित्रों को दे देते हैं। मैं यह नहीं कहता कि ऐसा सभी के साथ होता है पर इतना ज़रूर है कि हम कहीं न कहीं इन चीजों से प्रभावित होते हैं और लंबे समय के बाद ये छोटे छोटे प्रभाव बड़े होते जाते हैं जिसका हमें पता भी नहीं चलता कि हम अपना वास्तविक अस्तित्व कहाँ छोड़ आये।
     

  • २. आपको दूसरों की समृद्धि और अपना दुर्भाग्य दिखाई देने लगता है?
    फेसबुक पर लोग आमतौर पर लोग अपने जीवन की अच्छी अच्छी बातें ही साझा करते हैं। लोग अपने साथ हो रही अच्छी घटनाओं के बारे में बताते हैं, उनकी टिप्पणियाँ कुछ ऐसी होती हैं- मेरी नई कार, हमारा नया घर, मेरी कविता इस पत्रिका में प्रकाशित। सच पूछिये तो आप भी ऐसा ही करते हैं, पर अन्दर ही अन्दर आप अपनी असलियत भी जानते हैं कि ऐसी कारें या घर जीवन में एक ही खरीदे जाते हैं। या एक प्रकाशित रचना के पीछे बहुत सी अप्रकाशित रचनाएँ होती हैं। कुल मिलाकर यह कि दूसरों में आप वही देखते हैं जो वे आपको दिखाते हैं, आपको उनकी नई कार नज़र आती है पर उसके साथ आने वाला ईएमआई नहीं, आपको मित्र का सुंदर घर तो दीखता है पर उसके ऊपर हुआ खर्च नहीं। और ऐसा होने पर आप उनकी खुशियों की तुलना अपने ग़मों से करने लगते हैं और उदासी का अनुभव करने लगते हैं। फेसबुक के कारण अवसाद में जाने वालों की संख्या दिन ब दिन बढती जा रही है, इसलिये सावधान रहें कहीं आप भी इसके शिकार न हो जाएँ।
     

  • ३. वास्तविक मित्र और संबंधी बुरी तरह प्रभावित होते हैं-
    कई बार लोग बहुत गर्व से बताते हैं, “ फेसबुक पे मेरे ५०० मित्र हैं” लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि उनमें से आधे अगर सामने से गुजर जाएँ तो वे उन्हें पहचान भी नहीं पाएँगे। हकीकत में फेसबुक पे हमारे मित्र कम और परिचय ज्यादा होते हैं। खैर ये कोई खराब बात नहीं है लेकिन अगर हम इन लगभग झूठे संबंधों को आवश्यकता से अधिक समय देते हैं तो कहीं न कहीं हमें अपने परिवार और मित्रों को जो समय देना चाहिए उससे समझौता करते हैं। यह सही है कि हमारे घनिष्ठ मित्र और संबंधी भी फेसबुक पे होते हैं, लेकिन सच पूछा जाए तो फेसबुक पर वो भी हमारे लिए आम लोगों की तरह हो जाते हैं, क्योंकि फेसबुक तो एक भीड़ की तरह है और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। जो सामने पड़ा लाइक क्लिक किया, टिप्पणी लिखी और आगे बढ़ गए। व्यक्ति विशेष पर ध्यान देना, ये फेसबुक की आत्मा में ही नहीं है। इसलिये सचेत रहें कि भीड़ की बजाय अपनों पर ध्यान देना ज्यादा आवश्यक है।
     

  • ४) आप विशेष रूप से लती लोगों के साथ फँस जाते हैं-
    शायद आपने अर्थशास्त्र के परेटो सिद्धांत के बारे में सुना होगा …इस सिद्धांत का कहना है कि ८०% चीजों के लिए २०% चीजें जिम्मेदार होती हैं। उदाहरण के लिये- किसी कंपनी की ८०% बिक्री २०% खरीदारों की वजह से होती है। ऐसा ही कुछ फेसबुक पे भी होता है ८०% अपडेट २०% लोगों द्वारा ही किये जाते हैं और आपके पोस्ट बार बार उन्हीं के द्वारा लाइक किये जाते हैं। मूलरूप से ये वही लती लोग होते हैं जो बस फेसबुक से चिपके ही रहते हैं।
    और ऐसे लोगों से बार बार संपर्क करना शायद ही कभी स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। इससे अधिकतर समय नष्ट ही होता हैं।
     

  • ५) आपको समाजिक रूप से सक्रिय होने का भ्रम हो जाता है और सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत होती है-
    फेसबुक पे होने से कई लोग खुद को सामाजिक रूप से सक्रिय समझने लगते हैं, और मित्रों को सुप्रभात-शुभरात्रि कह कर के अपनी भूमिका पूरी समझ लेते हैं। धीरे -धीरे ये बिलकुल मशीनी हो जाता है। आप फेसबुक पे तो नमस्कार कहते हैं लेकिन जब उसी दोस्त से विद्यालय या कार्यालय में मिलते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं होती यहाँ तक कि हम बिना मुसकुराए सामने से गुजर जाते हैं। कुल मिलाकर यह कि फेसबुक पर तो हमारी पहचान मायने रखती है लेकिन हमारी खुद की उपस्थिति बेमानी हो जाती है।
    और जब आप ऐसे व्यवहार करने लगते हैं तो लोग आपसे बचने लगते हैं और कहीं न कहीं आपको नकली समझने लगते हैं। यानि आपको तो लगता है कि आप सबसे संपर्क में हैं पर इसके उलट आप अपना संपर्क खोते जाते हैं।
     

  • ६) आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है-
    फेसबुक पर लगे रहने से आपको शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की समस्याएँ हो सकती हैं। आपकी आँखें कमजोर पड़ सकती हैं, गलत मुद्रा में बैठने से आपको स्पॉन्डिलाइटिस हो सकता है। और अवसाद में जाने का खतरा तो हमेशा ही बना रहता है।
     

  • ७) आप अपने जीवन के सबसे सक्रिय दिनों को आलसी मनोरंजन में लगा देते हैं-
    फेसबुक प्रयोग करने वालों की जनसांख्यिकी देखी जाए तो इसका सबसे अधिक प्रयोग १३ से २८ वर्ष के लोग करते हैं। अगर आप इस आयु वर्ग से बाहर हैं तो ये बिंदु आपके ऊपर लागू नहीं होता।
    १३ से २८ वर्ष का समय वह समय होता है जब आपके अन्दर ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती। कभी सोचा है कि इस वक्त भगवान् आपको सबसे अधिक ऊर्जा क्यों देते है? क्योंकि ये हमारे जीवन के निर्माण के दिन होते हैं। इस समय आपके सामने करने को बहुत कुछ होता है। पढाई का बोझ या घर की जिम्मेदारी।
    उठाने की चुनौती, अपने कार्यक्षेत्र का चुनाव करने और प्रतियोगिताओं में अच्छे परिणाम लाने की कशमकश, अपने दिल की सुनकर कुछ कर गुजरने की चाहत, माता-पिता के सामने हाथ फैलाने की जगह उनका हाथ थामने कि जिद्द और ये सब करने के लिए उर्जा चाहिए, शक्ति चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से फेसबुक का आवश्यकता से अधिक प्रयोग करने वाले उसे गलत जगह लगा देते हैं। जिस समय उनके पास करने को इतने ज़रूरी काम हैं, उस समय वे अपने जीवन के जोश से भरे ये दिन, एक कोने में बैठ कर, और बहुत बार तो लेटे लेटे ही बिता देते हैं।

मित्रों अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि फेसबुक एक शोर -शाराबे से भरे बाजार की तरह है। यहाँ थोडा समय बितायेंगे तो अच्छा लगेगा लेकिन अगर वहीं घर बना कर रहने लगेंगे तो आपका जीवन औरों की आवाज़ के शोर में बहरा हो जाएगा। उसे बहरा मत होने दें। अपना समय, अपनी शक्ति, कुछ बड़ा, कुछ मूल्यवान, कुछ सार्थक, कुछ शानदार करने में लगाएँ और जब आप ऐसा करेंगे तो आपके इस काम को सिर्फ आपके मित्र ही नहीं बल्कि पूरा विश्व पसंद करेगा, और ऊपर वाला एक सुंदर सी टिप्पणी लिखेगा। आपके सब दिन सुखमय रहे!

१२ मई २०१४

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