अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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२१. ४. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
रामशंकर वर्मा, संतोष कुमार पांडेय, नीरज कुमार नीर, सरोजिनी प्रीतम तथा चंदन सेन की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

पिछले एक माह में फेसबुक के अपने पन्ने को ध्यान से देखते हुए कुछ रोचक तथ्यों से सामना हुआ। लगा कि इसे साझा करना रोचक रहेगा।...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- गर्मियों के मौसम में फलों का ताजापन समेटे कुछ ठंडे मीठे व्यंजनों के क्रम में- ट्राइफल

आज के दिन कि आज के दिन (२१ अप्रैल को) १८९१ मे बाबा भीमराव अंबेडकर, इसी वर्ष तमिल कवि भारतीदासन, १९१९ में गायिका शमशाद बेगम...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

घर परिवार के अंतर्गत- मेंहदी नारी की शृंगार है। इसके इतिहास और भूगोल के विषय में बता रही हैं गृहलक्ष्मी- रंग लाती है हिना...

सप्ताह का विचार में- दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। -कालिदास

वर्ग पहेली-१८१
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से
रत्ना ठाकुर की कहानी- गुड़िया का ब्याह

“तुम्हें अपनी गुड़िया का ब्याह नहीं करना क्या?” रीमा ने हमारी गुड़िया के घर का मुआयना करते हुए पूछा। हम इतनी देर से गर्व से उसे अपनी गुड़िया का घर दिखा रहे थे। मम्मी की नज़रों से छिपा कर कूड़े के ढेर से उठाई गई चीज़ों से अच्छी खासी गृहस्थी बन गई थी। जूते के डब्बे, माचिस की डिब्बियाँ, रंग बिरंगे गोटे, इन सब से हम ने अपनी रचनात्मक शक्तियों का उपयोग करते हुए अपनी गुड़िया की एक अच्छी खासी गृहस्थी बसा कर रखी थी, और हम तो सोच रहे थे कि रीमा अब तारीफ का पिटारा खोलने ही वाली है। पर ये सोचना भी तो हमारी गलती थी! आज तक रीमा ने किसी चीज़ की तारीफ की थी क्या, जो आज करती? खैर, हम ने अपनी सोच को लगाम देते हुए कहा, "ब्याह तो हो गया इसका! ये गुड्डा इसका पति ही तो है!” सच बात तो ये है कि रीमा के सामने भले हम कबूल ना करें पर अपनी गुड़िया की शादी हम कितनी बार कर चुके थे, हमें खुद भी याद नहीं था। रीमा ने नाक सिकोड़ते हुए कहा,” पर शादी के बाद वो ससुराल तो गई नहीं ना!... आगे-
*

अंतरा करवड़े की
लघुकथा- वीर
*

सुरेश कुमार पण्डा का ललित निबंध
ऋतुओं का बदलता संसार
*

लीला रामचरण धाकड़ से प्रकृति में
पक्षियों की प्रणय लीला
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पुनर्पाठ में- गुरुदयाल प्रदीप का आलेख-
जीवन की नियामक जैविक घड़ी

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पिछले सप्ताह-


प्रमोद यादव का व्यंग्य
रहम करो नकाब वालियों
*

सोती वीरेन्द्र चंद्र का आलेख
सब धर्मों के प्रतीक ऊधम सिंह
*

डॉ. ओमप्रकाश सिंह की कलम से
नवगीत मे नारी संघर्ष का चित्रण
*

पुनर्पाठ में- लंदन पाती के अंतर्गत
शैल अग्रवाल का आलेख- वृहद आकाश

*

समकालीन कहानियों में भारत से
एस आर हरनोट की कहानी- आभी

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के दुर्गम आनी क्षेत्र में ११,५०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित जलोरी पास से लगभग ५ किलोमीटर दूर सरेऊलसर झील के निर्मल जल को सदियों से ‘आभी‘ नामक एक चिड़िया निर्मल रखे हुए है जो झील में किसी भी तरह का तिनका पड़ने पर उसे अपनी चोंच से उठा कर दूर फेंक देती है। इस चिड़िया के इस कारनामे को यहाँ आने वाले विदेशी तथा अन्य पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इस झील के किनारे बूढ़ी नागिन माँ का प्राचीन मन्दिर स्थित है। स्थानीय लोग इस चिड़िया को ‘आभी‘ के नाम से पुकारते हैं।
-----यह कहानी उसी ‘आभी‘ के लिए----- आभी सदियों से व्यस्त है। कितनी सदियाँ बीत गईं हैं पर आभी का काम खत्म नहीं हुआ है। इक्कीसवीं सदी में तो और बढ़ गया है। सूरज उगने से पहले वह उठ जाती है। झील के किनारे पड़े शिलापट्ट पर बैठ कर पानी में कई डुबकियाँ लगाती है। फिर अपने छोटे-छोटे रेश्मी पंखों को फैलाकर झाड़ती है।... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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