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प्रकृति और पर्यावरण

 

पक्षियों की प्रणय लीला
-रामचरण धाकड़


पक्षियों का भी एक संसार होता है। वे भी अपनी संतति के लिए अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं। मादा पक्षी को जो भी नर पक्षी अपने लिए उपयुक्त लगता है, उसे लेकर वह एक सीजन या जन्मभर उसके बंधन में बँध जाती है।

स्थलीय एवं जलीय पक्षियों के प्रणय-प्रसंगों को देखने के लिए भरतपुर पक्षी-विहार विश्वविख्यात है, जो आगरा से पैंसठ किलोमीटर व जयपुर से एक सौ इक्यासी किलोमीटर दूर है। इस पक्षी विहार में मई से जून माह तक स्थलीय पक्षियों और जुलाई से अक्टूबर तक जलीय पक्षियों का प्रजनन काल होता है।

भरतपुर पक्षी विहार में, संसार में सबसे अधिक लगभग पंद्रह पक्षी जातियाँ विहार कर प्रजनन काल बिताती हैं। इन पंद्रह पक्षी जातियों में पेंटेड स्टार्क, ईग्रेट, कारमोरेंट, कॉटनटील, स्पून विल, आइबिस इत्यादि प्रमुख हैं। जलीय पक्षी प्रजनन काल में पेड़ों की डालियों पर घोंसले बनाते हैं, जबकि स्थलीय पक्षी जमीन या पेड़ों के तनों के खोखलों में अपना आवास बनाते हैं।

तरह-तरह के घोंसले

स्थलीय पक्षियों में ज्यादातर जातियों के पक्षी भूमि पर जमा की गयी छीलन, कतरन, घास, सूखी पत्तियों को बिछाकर घोंसला बनाते हैं। इस तरह के घोंसले बटेर, जंगली मुर्गी तथा अन्य आखेट करने वाले पक्षी बनाते हैं। टिटहरी जमीन पर कंकड़, छोटे-छोटे पत्थर व मिट्टी के टुकड़ों को इकट्ठे कर अपना घोंसला बनाती है। इन पत्थर, कंकड़ों का रंग अंडों के रंगों से मिलता-जुलता होता है, जिससे शिकारी पक्षियों को उसके अंडे आसानी से दिखायी नहीं पड़ते। कौवे, चील, गिद्ध इत्यादि पक्षी पेड़ों की टहनियों पर प्यालेनुमा घोंसले बनाते हैं, जिसके लिए वे पेड़ों की सूखी टहनियों, घास-फूस को इकट्ठा करते हैं।
इसी प्रकार गौरैयाँ, कठफोड़ा, मैना, होर्नबिल इत्यादि पक्षी जीवित या सूखे पेड़ों के तनों को खोखला कर घोंसले बनाते हैं। इन खोखले घोंसलों में पक्षी मुलायम घास-फूस का अस्तर बिछा लेते हैं। कस्तूरा, अवावील और मार्टिना चिड़ियाँ गीली मिट्टी के कोटरनुमा घोंसले बनाती हैं। इस काल में पक्षियों की लार ग्रंथियाँ काफी बड़ी हो जाती हैं। लार ग्रंथियों से निकलने वाले लार को ये मिट्टी में मिलाकर कोटरनुमा घोंसले बनाती हैं बया व सूर्य पक्षियों के घोंसले तो देखने लायक होते हैं। बया पेड़ों की टहनियों पर घास के तिनकों से एक लंबा घोंसला बुनती है। इसी प्रकार फूलचुकी पक्षी का घोंसला भी प्रायः बया के घोंसले जैसा होता है।

अनूठे प्रेम-प्रसंग

नर व मादा अपना जोड़ा बनाने के लिए एक-दूसरे को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। इन दिनों पक्षी के पुराने पंख हट जाते हैं। और इनके स्थान पर नये पंख निकल आते हैं। ओपनबिल स्टार्क, इग्रेट, स्पूनबिल आदि जातियों में तो प्रजनन काल में विशेष पंख निकलते हैं, जो प्रजनन काल के पश्चात गिर जाते हैं।

कुछ पक्षी, जिनमें बोलने की क्षमता होती है, नर मादा को अथवा मादा नर को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रकार का गाना गाते या जोर से आवाज करते हैं। कारमोरेंट जाति की मादा नर को आकर्षित करने के लिए एक विशेष प्रकार की तीखी आवाज करती है। इसके विपरीत जिन पक्षियों में बोलने की क्षमता नहीं होती वे मादा को आकर्षित करने के लिए विशेष प्रकार की उड़ानें, नाच या करतब दिखाते हैं।

हरेक जाति के पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए एक ऐसे निश्चित स्थान को चुनते हैं, जो भोजन, तापक्रम आदि से उपयुक्त हो। सबसे पहले नर अपना क्षेत्र निर्धारित करता है, जिसे पाने के लिए या तो उसे पहले से ही मौजूद पक्षियों से युद्ध करना पड़ता है या फिर उसी की तरह प्रवेश करने वाले अन्य पक्षियों से। एक बार क्षेत्र पर अधिकार करने के बाद नर मादा का इंतजार करता है। वह वहाँ बैठकर गाना गाता है। यानी वह एक प्रकार से मादा को घोंसला बनाने के लिए उपयुक्त स्थल मिलने की सूचना देता है। गाने से मादा उसकी ओर आकृष्ट होती ही है, साथ में दूसरे नर पक्षियों को भी चेतावनी मिल जाती है कि वह अपनी मादा की तलाश में है। मादा को रिझाने के लिए नर को कई तरह की अनुरंजनी प्रदर्शन भी करने पड़ते हैं। एक ही मादा को पाने के लिए अकसर कई नर पक्षियों में लड़ाई भी हो जाती है। मादा को रिझाने के लिए बलू जे नामक पक्षी हवा में ऊपर चक्कर लगाता है और फिर शोरगुल करता हुआ नीचे पानी में गोता लगा जाता है। यह मनोरंजक दृश्य गर्मी शुरू होते ही दिखायी पड़ता है।

बया पक्षी का प्रेम-प्रसंग

बया पक्षी का प्रेम-प्रसंग बड़ा रोचक है। प्रजनन ऋतु शुरू होते ही नर पेड़ों की शाखाओं पर घोंसले बनाना शुरू कर देता है। घोंसले की बुनाई के लिए वह एक-एक तिनका तोड़कर लाता है और कपड़े की बुनाई की तरह एक लंबा घोंसला तैयार करता है, लेकिन इसे वह अभी अधूरा छोड़ देता है। नर बया पक्षी घोंसले बनाने में विशेषज्ञ तो होते ही हैं, साथ ही गाने में भी अपनी अलग पहचान रखते हैं। घोंसला तैयार होते ही नर सुरीली आवाज में गाने की रट लगाना शुरू कर देता है। गाना सुनकर मादा दौड़ चली आती है। मादा भी ऐसी-वैसी मादा नहीं होती, बल्कि एक कुशल गृहिणी होती है। वह आकर नर द्वारा बनाये घोंसले का निरीक्षण करती है। यदि घोंसले की निर्माण-कला उसे पसंद आ जाती है, तो वह उसमें जाकर बैठ जाती है। और नर फिर घोंसले को पूरा करने में जुट जाता है। यदि मादा को घोंसला पसंद नहीं आता, तो वह उड़कर दूर जा बैठती है। थका-हारा नर पक्षी दूसरा नया घोंसला बनाने में जुट जाता है। जिस घोंसले को मादा पसंद कर लेती है, उसे नर पूरा कर देता है।

हार्नबिल पक्षियों का नीड़ निर्माण

हार्नबिल पक्षियों का नीड़ निर्माण भी बड़ा अद्भुत होता है। जोड़ा बनाने के बाद हार्नबिल मादा किसी पेड़ के तने में बनाये गये खोखले घोंसले में चली जाती है। इस खोखले तने के अंदर बैठकर वह अपनी चोंच को उस्तरे के रूप में इस्तेमाल कर अपनी बिष्ठा से प्रवेश द्वार बंद कर देती है। मात्र एक छोटी-सी दरार ही छोड़ती है, जिससे नर पक्षी अपनी चोंच अंदर डालकर उसे भोजन पहुँचाता रहे। मादा इस दीवारबंद कठघरे में बंद हो जाती है। जिससे कोई बाहर का जीव या पक्षी उसके बच्चों व मादा पर आक्रमण न कर सके। मादा द्वारा बनाया गया यह प्लास्टर सीमेंट-जैसा मजबूत होता है। मादा इसमें दस पंद्रह दिन बिताती है, तब तक उसके अंडों से बच्चे बाहर निकल आते हैं। इस अवधि में नर भोजन लाकर उसको देता रहता है। भोजन में पीपल या बरगद के अंजीर या छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े होते हैं। मादा के लिए भोजन जमा करने के लिए नर को काफी मेहनत करनी पड़ती है। जिसके कारण वह सूख कर काँटा हो जाता है जबकि, मादा आराम के दिन बिताने के कारण स्वस्थ हो जाती है। मादा भी इन दिनों में अपने पंखों को त्याग देती है। जब बच्चे लगभग पंद्रह दिन के हो जाते हैं, तो मादा दीवार तोड़कर बाहर निकल आती है। उसके बाद फिर से दीवार की मरम्मत कर दी जाती है। नर और मादा दोनों बच्चों को तब तक खिलाते-पिलाते हैं, जब तक कि वे अपने पैरों पर खड़े होने योग्य नहीं हो जाते।

कुकू जाति के पक्षी

कुकू जाति के पक्षी तो दूसरे पक्षी के बनाये घोंसलों में अंडे दे आते हैं। इतना ही नहीं वे अंडों की पैतृक जिम्मेदारियाँ भी उन्हीं पर थोप आते हैं। पपीहा नामक पक्षी प्रायः बेबलर के घोंसलों में अंडे दे आता है और अपने अंडों की जगह बनाने के लिए बेबलर पक्षी द्वारा दिये गये अंडों में से दो या तीन को अलग कर देता है। कोयल आमतौर पर घरेलू तथा जंगली कौवों के घोंसलों में अपने अंडे रख आती है।

जकाना पक्षी

जकाना पक्षी पानी में तैरते हुए पत्तों पर अंडे देता है। मादा अंडे देकर चली जाती है, नर उन्हें सेता है। इतना ही नहीं, पानी के घटने व बढ़ने से पत्तों से ये अंडे लुढ़कते नहीं हैं।

अलग-अलग पक्षी प्रजातियों के रोचक प्रेम-प्रसंग यहाँ देखे जा सकते हैं। पक्षी विहार में चकवा-चकवी की विरह-वेदना, बया का नीड़-निर्माण, हंसा की मदमाती चाल, जलकौवों की गोताखोरी, पपीहा की पीऊ-पीऊ, मोर का नृत्य, प्रेमी कपोत की गूटर-गूँ इन दिनों सुनी जा सकती है।

पक्षियों का प्रजनन काल

वर्षा ऋतु शुरू होते ही जलीय पक्षियों का प्रजनन-काल शुरू हो जाता है। जुलाई माह में आपिनबिल स्टार्क, कारमोरेंट, इग्रेस अपने घोंसले बनाने शुरू कर देते हैं। घोंसले मुख्यतया बबूलों के छतरीनुमा पेड़ों पर होते हैं। स्थलीय पक्षियों का प्रजनन वर्षा से पहले समाप्त हो चुका होता है। अप्रैल व मई माहों में कबूतर, तोता, टिटहरी, जकाना इत्यादि का प्रजनन पूरा हो जाता है।

अगस्त एवं सितम्बर माह के अंत तक ओपिनबिल स्टार्क, लार्ज कारमोरेंट, लिटिल एवं मीडियम इग्रेट, आइबिस, रेड पेंटेड, बुलबुल का प्रजनन समाप्त हो जाता है। भारतीय सारस का प्रजनन जून-जुलाई तक समाप्त हो जाता है। पानी के पास रहने वाली अधिकांश प्रजातियों का प्रजनन अक्सर सितम्बर तक पूरा हो जाता है। अक्टूबर व नवम्बर तक इनके बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो ये घोंसलों को छोड़कर उड़ जाते हैं। कुछ पक्षी जातियों का प्रजनन वर्ष में दो बार होता है।

पक्षी विहार में मुख्यतया सर्द ऋतु में आने वाले विदेशी मेहमान पक्षियों को देखने पर्यटक आते ही हैं, परंतु प्रजनन कालीन दिनों में भी पक्षी प्रजनन को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ आती रहती है।

२१ अप्रैल २०१४

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