इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
डॉ. ताराप्रकाश जोशी, राज
सक्सेना, रेनू यादव, रूद्रपाल गुप्त सरस और अब्बास रजा अल्वी की
रचनाएँ। |
कलम गही नहिं
हाथ- |
जहाँ वर्षा का कोई मौसम न हो वहाँ वर्षा का
उत्सव हो जाना स्वाभाविक है। इमारात दुनिया का एक ऐसा ही कोना है।
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- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
सर्दी के मौसम में सूपों की पुरानी शृंखला को जारी रखते हुए-
सब सब्जी सूप। |
आज के दिन
(२७ जनवरी) को १९४० में भारतीय धावक अजमेर सिंह, १९६७ में अभिनेता बॉबी
देओल का जन्म हुआ था। ...
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हास
परिहास
के अंतर्गत- कुछ नये और
कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी
का आनंद...
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नवगीत की पाठशाला में-
भारतीय विवाह के उत्सवी आयोजनों पर आधारित नयी कार्यशाला-
३२ 'शादी उत्सव गाजा बाजा' के विषय में जानें
विस्तार से... |
लोकप्रिय
उपन्यास
(धारावाहिक)-
के
अंतर्गत प्रस्तुत है २००३ में प्रकाशित
रवीन्द्र कालिया के उपन्यास—
'एबीसीडी' का
चौथा भाग।
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वर्ग पहेली-१७०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में-
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समकालीन कहानियों में भारत से
वर्षा
ठाकुर की कहानी- आजादी के लड्डू
"टेस्टीमोनियल?"
"हाँ। बाहर की यूनिवर्सिटीज के लिए लगता है।"
"तुम भी बाहर चले जाओगे?"
"हाँ, सब लोग तो वही कर रहे हैं, इस डिग्री से क्या होगा? दस
पाँच हजार की नौकरी? जब तक डॉलर में कमाई न हो तब तक कहाँ कुछ
हो पाता है? कीड़े मकोड़ों जैसे जीते रहते हैं बस।"
नेहा खामोश थी। कॉलेज का आखिरी सेमेस्टर था। सब लोग भविष्य की
तैयारियों में जुटे हुए थे। किसी का कैंपस सिलेक्शन हो गया था,
किसी को एम बी ए करना था तो किसी को बाप दादा की कंपनी सँभालनी
थी। पर एक बड़ा वर्ग ऐसा था जो हायर स्टडीज के लिए विदेश जाना
चाहता था। वहाँ से फलाँ-फलाँ यूनिवर्सिटीज से एम एस की डिग्री
लेके वहीं की वहीं नौकरी लग जाती और फिर वहीं शादी, बच्चे,
जिन्दगी। नेहा को समझ नहीं आता था कि विदेश जाकर उन्हें क्या
अच्छा लगता था। कितनी भी चकाचौंध हो, कुछ वक्त के बाद तो फीकी
पड़ ही जाती थी, वैसे ही जैसे रेस्टोरेंट का खाना...
आगे-
*
नूतन प्रसाद की लघुकथा
दाढ़ी में तिनका
*
राहुल देव की समीक्षा
समकालीन कहानियों में देश
*
विनय भदौरिया का आलेख
नवगीत में राजनीति और व्यवस्था
*
पुनर्पाठ में-
डॉ. नितिन उपाध्ये का प्रहसन-
रक्तदान
1 |
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पिछले
सप्ताह- |
१
विनोद विप्लव का व्यंग्य
अथ श्री मीडिया मंडी कथा
*
प्राण चड्ढा से प्रकृति में
आकाश नीम और कृष्णा हल्दी
*
प्रौद्योगिकी में जानकारी
वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय में विकसित
हिंदी साफ्टवेयर
*
पुनर्पाठ में- डॉ. गुरुदयाल प्रदीप से जानें
मानव क्लोनिंग ने मचाई
हलचल
*
वरिष्ठ कथाकारों की
प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में कामतानाथ की कहानी-
मेहमान
शीतला प्रसाद का हाथ हवा में ही रुक गया। संध्या-स्नान-ध्यान
के बाद चौके में पीढ़े पर बैठे बेसन की रोटी और सरसों के साग
का पहला निवाला मुँह में डालने ही जा रहे थे कि किसी ने दरवाजे
की कुंडी खटखटायी। कुंडी दोबारा खटकी तो उन्होंने निवाला वापस
थाली में रख दिया और अपनी पत्नी की ओर देखा जो चूल्हे पर
रोटियाँ सेंक रही थी। कुंडी की आवाज सुनकर उनका हाथ भी ढीला
पड़ गया था। 'राम औतार न हो कहीं?' आँचल से माथे का पसीना
पोंछते हुए उन्होंने कहा। राम औतार को शीतला प्रसाद की भांजी
ब्याही थी। इस रिश्ते से वह उनके दामाद लगते थे। हसनगंज तहसील
में कानूनगो थे। कभी किसी काम से शहर आते थे तो उनके यहाँ जरूर
आते थे, खास तौर से जब रात में रुकना होता था। दिन भर शहर में
काम निपटाकर बिना पहले से कोई सूचना दिये शाम तक उनके यहाँ
पहुँच जाते। महीने के अंतिम दिन चल रहे थे। रुपये-पैसे तो खतम
थे ही, राशन भी सामाप्तप्राय था।
आगे- |
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