उस
सम्मेलन में सभी राष्ट्रों को बुलाया गया था। निर्धारित
समय में महादेश, छोटे राष्ट्र एवं द्वीप पहुँच गए। एक
द्वीप ने छोटे राष्ट्र से कहा- भैय्या चलो चाय पी कर आएँ,
सुस्ती खत्म हो जाएगी।
छोटे राष्ट्र ने झिड़की दी- यहाँ जहर खाने के लिये वक्त नहीं
है और तुम्हें मटरगश्ती सूझी है देखते नहीं महादेशों की
हालत, वे चिंता के कारण सूख कर काँटे हो गए हैं।
द्वीप ने कहा- हालात खराब है तो यहाँ आये क्यों? बेमतलब
हमें भी घसीट लिया।
छोटे राष्ट्र ने कहा- मैं यहाँ सम्पूर्ण विश्व के स्वाहा
होने की बात कर रहा हूँ पर तुम समझते क्यों नहीं। भोंदू
हो। अपनी औकात बताओगे ही। स्टील के गहने पहनने वाले हीरा
जवाहरात की बात क्या जानेगा।
द्वीप रूठ गया- लो, तुम्हीं समझदार हो तो बताओ...?
तभी सम्मेलन शुरू होने की घंटी बज गई। सभी देश बैठक में
जाने लगे कि द्वीप ने देखा- महादेश हथियार रखे हैं। द्वीप
ने एक महादेश से कहा- इन्हें क्यों रखे हो, बिना
अस्त्र-शस्त्र के आते ही आपकी शान थोड़ी घट जाती।
महादेश गुर्राया- कोई दुश्मन वार कर दे तो मैंने इसे अपनी
रक्षा के लिये रखा है।
द्वीप ने कहा- हमारे ही प्राण क्यों जाएँ, हमें भी हथियार
दो।
महादेश- बदतमीज, तू पहले अपना पेट तो पाल ले, फिर हथियार
रखेगा, दूर हट, मुझे जाने दे।
सभा की कार्यवाही खत्म हुई, महादेश प्रसन्न थे कि
कार्यक्रम सफल रहा, वे बाहर निकलते कि छोटे राष्ट्रों एवं
द्वीपों ने दरवाजा जाम कर दिया, कहा- शांति के पुजारी हों
तो तुम जैसे, तुम ही हथियार बनाओ, बेचो और गला फाड़कर
चिल्लाओ कि विश्वयुद्ध न हो, हमारे पास हथियार नहीं है मगर
तुम गेहूँ के साथ हम कीड़े भी मरेंगे। तुम चाहते तो पूरे
विश्व की गरीबी दूर हो जाती। मगर तुम वैसा क्यों करोगे।
तुम्हें हमारे जैसे दीन अनाथों को डरा धमका कर महान कहलाना
है न।
महादेशों का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने छोटे
राष्ट्र और द्वीपों को धक्का मारकर गिराया। उन्हें कुचलते
हुए यह कहते चले गये हमसे जो टकराएगा, मिट्टी में मिल
जाएगा।
२७ जनवरी २०१४ |