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११. ११. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
अनिरुद्ध नीरव, मनोज श्रीवास्तव, शोभा मिश्रा, अलका मिश्रा कशिश और ब्रजेन्द्र सागर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा त्यौहारों के अवसर पर अतिथि सत्कार और प्रीतिभोज के लिये के लिये प्रस्तुत हैं तरह तरह के पुलाव

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुराने बर्तन नई सजावट

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- राम जी का उड़न-खटोला

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- नई कार्यशाला नया साल, नया जीवन, नया उत्साह आदि नये पन पर आधारित होगी। तिथि की प्रतीक्षा करें।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १ अगस्त २००६ को प्रकाशित अभिरंजन कुमार की कहानी— 'तुम सच कहती हो गौरैया'।

वर्ग पहेली-१५९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
नीलमणि शर्मा की कहानी ड्रैसिंग टेबल

“आ गया सारा सामान श्यामली का! कुछ छूटा तो नहीं !” .....शांतनु ने अपने बेटे से पूछा।
’’जी पापा... सब कुछ ले आया हूँ... माँ की विदाई में कोई कमी नहीं रहने देंगे!...आखिर माँ को जीते-जी जब कोई कमी नहीं होने दी...तो अब भला अंतिम यात्रा में क्यों रहे...!‘‘ सिद्धार्थ सुबकते हुए अपने पापा के गले लग गया।
उसकी पीठ पर सांत्वना भरा हाथ फेरते हुए शांतनु ने फिर पूछा-’’ड्रैसिंग टेबल कहाँ है...बाहर रखी है क्या....?‘‘
सिद्धार्थ बार-बार अपने आँसू पोंछता। फिर बह आते....अपने आँसुओं के बाँध को रोकने की असफल कोशिश करते हुए सिद्धार्थ ने बताया-‘‘पापा, ड्रैसिंग टेबल तो नहीं लाया....!’’
अपराधी-सा महसूस करता सिद्धार्थ अभी अपने बचाव में कुछ कहता कि अंदर औरतों की भीड़ में से उसकी दादी बाहर आ गई-‘‘मति भरष्ट हो गई दीखे तेरी, जो छोरे को डाँट रया है ऐसे बखत में....मैंने मना करी थी डिरेसिंग टेबल लाने को...भला क्या याँ शादी-बिया हो रया है जो तू डिरेसिंग टेबल के लिए सापा करे बैठा है...! चल... दिन छिपने को है जल्दी करो। ..नाँय तो सारी रात ऐसे ही बितानी पड़ेगी... आगे-

*

हरीश नवल का व्यंग्य
छपती का नाम कहानी
*

अवधेश मिश्र की कलम से श्रद्धांजलि
लखनऊ वाश और बद्रीनाथ आर्

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प्रो. हरिमोहन का आलेख
उत्तरांचल का लोक नाट्य पांडवनृत्य
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पुनर्पाठ में- सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक
का आलेख- करुणा की मूर्ति महादेवी

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पिछले सप्ताह-


सुधा की लघुकथा
अवदान
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डॉ. रामजन्म मिश्र की कलम से
झारखण्ड के आदिवासी पर्व
*

राजीव रंजन का आलेख
गुण्डाधुर- भूमकाल का जननायक
*

पुनर्पाठ में- थकान से मुक्ति के लिये
अर्बुदा ओहरी की सलाह - उफ! यह थकान

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समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
राज बुद्धिराजा की कहानी नीली कोठी

दिल्ली की एक मशहूर बस्ती पश्चिमी पटेल नगर और शादीपुर डिपो के बीच एक कोठी हुआ करती थी, जिसे नीली कोठी कहा जाता था। बात ज्यादा पुरानी नहीं है, सिर्फ पचास वर्ष पहले की है। डी. टी. सी. के बस ड्राइवर और कंडक्टर बस की रफ्तार धीमी करके यात्रियों से पूछते- 'कोई नीली कोठी उतरने वाला!' और, कुछ सवारियाँ नीचे उतर जातीं।
नीली कोठी के बाहर की पटरी बस-स्टैंड के रूप में बदल चुकी थी। उस स्टैंड पर तिपहिया स्कूटर भी रुकने लगे थे।
उन दिनों मैं डी.टी.सी. कालोनी में रहा करती थी। सड़क के इस पार मैं और उस पार नीली कोठी ! मैं अपने बरामदे में खड़े होकर बराबर उस नीली कोठी को देखा करती।
उस दो मंजिला कोठी के ठाट-बाट निराले थे। घर के सभी लोग मोटरों में आया करते थे। मुझे इतना ही पता चल सका कि उस कोठी में चार-पाँच लड़के, एक लड़की और एक माताजी रहा करती थीं। उनकी खूबसूरत साड़ी और घुटनों तक का कोट मेरी स्मृति में आज भी बसे हुए हैं। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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