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४. ११. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
भारतेन्दु मिश्र, ओम नीरव, सतीश जायसवाल, राजेन्द्र बहादुर सिंह राजन और विशाल मेहरा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा त्यौहारों के अवसर पर अतिथि सत्कार और प्रीतिभोज के लिये के लिये प्रस्तुत हैं कवाब और पकौड़े

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- चश्मे के केस के नये उपयोग

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- राम जी का उड़न-खटोला

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-३०, विषय- शहर में दीपावली, की चुनी हुई रचनाएँ अनुभूति के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हो चुकी हैं।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है २४ फरवरी २००६ को प्रकाशित फकीरचंद शुक्ला की कहानी- नकेल

वर्ग पहेली-१५८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
राज बुद्धिराजा की कहानी नीली कोठी

दिल्ली की एक मशहूर बस्ती पश्चिमी पटेल नगर और शादीपुर डिपो के बीच एक कोठी हुआ करती थी, जिसे नीली कोठी कहा जाता था। बात ज्यादा पुरानी नहीं है, सिर्फ पचास वर्ष पहले की है। डी. टी. सी. के बस ड्राइवर और कंडक्टर बस की रफ्तार धीमी करके यात्रियों से पूछते- 'कोई नीली कोठी उतरने वाला!' और, कुछ सवारियाँ नीचे उतर जातीं।
नीली कोठी के बाहर की पटरी बस-स्टैंड के रूप में बदल चुकी थी। उस स्टैंड पर तिपहिया स्कूटर भी रुकने लगे थे।
उन दिनों मैं डी.टी.सी. कालोनी में रहा करती थी। सड़क के इस पार मैं और उस पार नीली कोठी ! मैं अपने बरामदे में खड़े होकर बराबर उस नीली कोठी को देखा करती।
उस दो मंजिला कोठी के ठाट-बाट निराले थे। घर के सभी लोग मोटरों में आया करते थे। मुझे इतना ही पता चल सका कि उस कोठी में चार-पाँच लड़के, एक लड़की और एक माताजी रहा करती थीं। उनकी खूबसूरत साड़ी और घुटनों तक का कोट मेरी स्मृति में आज भी बसे हुए हैं।
एक दिन मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने देखा...
आगे-

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सुधा की लघुकथा
अवदान
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डॉ. रामजन्म मिश्र की कलम से
झारखण्ड के आदिवासी पर्व
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राजीव रंजन का आलेख
गुण्डाधुर- भूमकाल का जननायक
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पुनर्पाठ में- थकान से मुक्ति के लिये
अर्बुदा ओहरी की सलाह - उफ! यह थकान

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पिछले सप्ताह- दीपावली के अवसर पर


संकलित लोककथा
हनुमान की भक्ति-भावना
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रामसनेहीलाल शर्मा यायावर का आलेख
रामकालीन जनतांत्रिक संस्थाएँ
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डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण के जानें
जैन रामायण में राम की परिकल्पना
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पुनर्पाठ में- मनोहर पुरी की कलम से
पर्वपुंज दीपावली

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समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
भावना सक्सैना की कहानी संकल्प

सुन्दर सजे घर में लक्ष्मी गणेश की आरती हो रही है। चाँदी के थाल में धूप, दीपक, कपूर है, जिससे बारी बारी सभी आरती उतार रहे हैं। छोटी श्रेया आरती का थाल पकड़ने को लपक रही है, बाबा ने हाथ पकड़ कर उससे थाली घुमवाई। घंटी निरंतर बज रही है, आरती समाप्त हुई। दादी ने प्रसाद बाँटना शुरू किया किन्तु घंटी फिर भी बजती रही, ज्यों ही उसने प्रसाद ग्रहण करने को हाथ बढ़ाया उसकी आँख खुल गयी। ओह, यह तो सपना था! आँख खुली तो आदत के अनुसार त्वरित गति से उठ बैठी किन्तु फिर याद आया कि आज तो छुट्टी है, दिवाली की छुट्टी। पलंग के सिरहाने तकिया लगा अधलेटी सी हो गई, शरीर ज़रूर विश्रामावस्था में गया पर मन को विश्राम कहाँ? सोचने लगी, आज दिवाली है, मन में बचपन की सी पुलक तो नहीं पर हाँ रोशनी अवश्य है, वैचारिक रोशनी! सकारात्मकता का प्रकाश जिसने आज की दिवाली की सुबह भी रौशन कर दी है। बाबा ने हाथ पकड़कर राह तो दिखा दी लेकिन प्रसाद मिलने में अभी समय था, बस ज़रा दूर और! आज उसके इस अपने घर में पहली दिवाली है, अपना घर! कितने अरमानों से बनवाया था...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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