इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
दीपावली के अवसर पर विविध
विधाओं में सजी, नये पुराने अनेक रचनाकारों की उत्सवी रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा त्यौहारों के
अवसर पर अतिथि सत्कार और रात्रिभोज के लिये के
लिये प्रस्तुत हैं
दावत की सब्जियाँ। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
फुलझरियों की सुरक्षित फुहार। |
सुनो कहानी-
छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
राम जी का उड़न-खटोला।
|
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-३०, विषय- शहर में
दीपावली, की चुनी हुई रचनाएँ अनुभूति के दीपावली विशेषांक में
प्रकाशित हो रही हैं।
|
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- इस सप्ताह
प्रस्तुत है १६ अक्तूबर २००४ को प्रकाशित शिवानी की
कहानी— पिटी हुई गोट।
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वर्ग पहेली-१५७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
दीपावली
के अवसर पर |
समकालीन
कहानियों में सूरीनाम से
भावना सक्सैना की कहानी
संकल्प
सुन्दर सजे घर में लक्ष्मी गणेश
की आरती हो रही है। चाँदी के थाल में धूप, दीपक, कपूर है, जिससे
बारी बारी सभी आरती उतार रहे हैं। छोटी श्रेया आरती का थाल
पकड़ने को लपक रही है, बाबा ने हाथ पकड़ कर उससे थाली घुमवाई।
घंटी निरंतर बज रही है, आरती समाप्त हुई। दादी ने प्रसाद
बाँटना शुरू किया किन्तु घंटी फिर भी बजती रही, ज्यों ही उसने
प्रसाद ग्रहण करने को हाथ बढ़ाया उसकी आँख खुल गयी। ओह, यह तो
सपना था!
आँख खुली तो आदत के अनुसार त्वरित गति से उठ बैठी किन्तु फिर
याद आया कि आज तो छुट्टी है, दिवाली की छुट्टी। पलंग के
सिरहाने तकिया लगा अधलेटी सी हो गई, शरीर ज़रूर विश्रामावस्था
में गया पर मन को विश्राम कहाँ? सोचने लगी, आज दिवाली है, मन
में बचपन की सी पुलक तो नहीं पर हाँ रोशनी अवश्य है, वैचारिक
रोशनी! सकारात्मकता का प्रकाश जिसने आज की दिवाली की सुबह भी
रौशन कर दी है। बाबा ने हाथ पकड़कर राह तो दिखा दी लेकिन
प्रसाद मिलने में अभी समय था, बस ज़रा दूर और!
आज उसके इस अपने घर में पहली दिवाली है, अपना घर! कितने
अरमानों से तैयार कराया था उसने यह घर, हर कोने हर दीवार को
विशेष तरजीह देते हुए।
आगे-
*
संकलित
लोककथा
हनुमान की भक्ति-भावना
*
रामसनेहीलाल शर्मा यायावर का आलेख
रामकालीन जनतांत्रिक संस्थाएँ
*
डॉ.
योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण के जानें
जैन रामायण में राम
की परिकल्पना
*
पुनर्पाठ में- मनोहर पुरी की कलम से
पर्वपुंज दीपावली |
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पिछले
सप्ताह- |
१
शरद तैलंग का व्यंग्य
चाँटा परंपरा
*
उमाशंकर तिवारी का रचना प्रसंग
नवगीत पाँचवें दशक से सातवें दशक तक
*
सुप्रिया
का आलेख
शरद ऋतु वस्तुतः
पर्वों की ऋतु
*
पुनर्पाठ में- महेश दर्पण का संस्मरण
एक कथा अर्धशती को नमन
*
समकालीन कहानियों में भारत से
किशोरी रमण शर्मा की कहानी
अंतिम पड़ाव
रामदयाल अपने पीछे अठहत्तर साल
छोड़ आये हैं। छः फीट लम्बे रामदयाल अब कुछ झुककर चलते हैं।
चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ पड़ गई हैं और गले की चमड़ी झूल गई है।
सीधे-सादे सपाट व्यक्ति हैं। सामान्य से वस्त्रों में ही घर से
बाजार या आसपास के पड़ोसियों से मिलने-जुलने के लिए निकल पड़ते
हैं। अक्सर उनके साथ उनकी पत्नी भी होती हैं। वह लम्बी,
गौरवर्ण की और स्लिम। सत्तर पार करने के बाद भी पूरी तरह शौकीन
हैं। रामदयाल के रंग-ढंग से कुछ विपरीत। घर में भी ठीक-ठाक ही
रहती हैं। किन्तु यदि घर से बाहर जाना होता है तो बाल ठीक करती
हैं, मुखमण्डल पर क्रीम, पाउडर तथा होठों पर हल्की लिपिस्टिक
अवश्य लगाती हैं। कानों में टाप्स न पहनकर लम्बा झुमका या लटकन
पहनती हैं और कलाइयों में पतली-पतली सोने की चूड़ियाँ, तन पर
ब्लाउज और साड़ी मैचिंग। साड़ी कुछ-कुछ जमीन को छूती होती है।
उनके पाँवों की खूबसूरत चप्पलें साड़ी की कोर से लुकाछिपी खेला
करती हैं। वह कश्मीरी हैं। काश्मीर का पूरा सौन्दर्य उनमें
दृष्टिगोचर होता है। किन्तु उनका प्रौढ़ और प्रौढ़ोत्तर काल...
आगे- |
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