| जैसा कि लेखों में इतिहास को 
घसीटने की परंपरा है हमारे देश में भी एक प्रमुख परंपरा अत्यन्त प्राचीन काल से 
विद्यमान रही है जिसका नाम है 'चाँटा परंपरा। इतिहास जिसे जब चाहे साक्षी बनाया जा 
सकता है इस मामले में भी साक्षी है कि कभी लक्ष्मण द्वारा सूर्पनखा की नाक काट कर 
शक्तिशाली रावण के मुँह पर चाँटा जड़ा गया तो कभी रावण द्वारा सीताहरण करके । एकलव्य 
ने वाणों से श्वान मुख बंद करके अर्जुन को इसका स्वाद चखाया तो कृष्ण ने अपने मामा 
कंस के सम्मुख पूतना बध करके इसका प्रदर्शन किया। जैसे जैसे समाज में परिवर्तन आए 
चाँटा संस्कृति भी पनपती गई।
 चाँटा संस्कृति की विकास यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण योगदान इस देश के अध्यापकों ने 
दिया। उनके लिए यह हथियार ब्रह्मास्त्र बन गया जिसके प्रयोग अनेक मौकों पर किए जाने 
का उल्लेख मिलता है। ग्रामीण अंचलों के विद्यालयों में इस हथियार का विशेष प्रचलन 
पाया गया जिसका योगदान आगे चल कर ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की दिशा में अत्यन्त 
महत्वपूर्ण सावित हुआ।
 
 इसी कार्यक्रम के अन्तर्गत गाँव की पाठशाला में छात्रों को यह सिखाया जाता था कि 
'बच्चों, यदि तुम इन्साफ की डगर पर चल कर दिखाओगे तो तुम कल के नेता बन जाओगे और यह 
देश तुम्हारा हो जाएगा।' उनमें से कई बच्चे तो आज के नेता बन भी गए हैं और सारे देश 
को अपना समझने लगे हैं साथ ही इन्साफ की डगर को छोड़ कर किसी दूसरी डगर पर चलने लगे 
हैं । यह बात और है कि अध्यापक धीरे धीरे डंडा युग में प्रवेश कर गए।
 
 इस संस्कृति में उल्लेखनीय सिद्धांत दिया एक महापुरूष ने। उनके सिद्धांत के अनुसार 
यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर चाँटा मारे तो दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो, जिसने 
चाँटा मारने वालों में एक नई चेतना जागृत की। इसी के अंतर्गत एक बार जब एक प्रथम 
पुरूष ने द्वितीय पुरूष के प्रथम गाल पर चाँटा रसीद कर दिया तो द्वितीय पुरूष जो 
महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग ले चुके थे ने सहयोग देते हुए तथा इस 
सिद्धांत का महत्व जानने के लिए प्रथम पुरूष के सम्मुख अपना द्वितीय गाल प्रस्तुत 
कर दिया। प्रथम पुरूष ने द्वितीय पुरूष की 'जो इच्छा राखो मनमाही' के चक्कर में राम 
की कृपा मान कर तथा उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए उसे द्वितीय चाँटा भी आसानी से 
उपलब्ध करवा दिया।
 
 प्रथम पुरूष द्वारा द्वितीय पुरूष के द्वितीय गाल पर जड़ते ही द्वितीय पुरूष चेतन हो 
गया और फिर उस गाँधी भक्त ने आव न देखा ताव वरन प्रथम पुरूष के 'सिर से पाँवों में 
कहीं पेट में सीने में कहीं' प्रहारों की झड़ी लगा दी। जब किसी ने उससे उस सिद्धान्त 
की अवहेलना करने का कारण जानना चाहा तो उसका उत्तर था 'उस महापुरूष ने अपने 
सिद्धान्त में मात्र दो चाँटों की सीमा निर्धारित की थी बस उसके पश्चात मैनें अपना 
सिद्धान्त लागू कर दिया।'
 
 चाँटे का महत्व कई गुना तब और बढ़ जाता है जब इसे सार्वजनिक स्थल पर किसी को प्रदान 
किया जाए। इस क्षेत्र में इस तरह का साहस दिखलाने वाला सबसे प्रतिष्ठित तथा अर्जुन 
पुरस्कार पाने योग्य व्यक्ति वह होता है जो किसी दरोगा या अधिकारी को चाँटा मारे। 
अपने इस वीरतापूर्ण कार्य के लिए उस व्यक्ति को अनेक अवसरों पर बाद में पुलिस विभाग 
द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा है।
 
 चाँटे की महत्ता में इस बात का भी विशेष महत्व है कि यदि गोरे गोरे गालों पर पाँचों 
उँगलियों के निशान भी प्रदर्शित हों तो वह प्रहारक की शक्ति सामर्थ्य का परिचायक 
होता है।
 
 कुछ समय पूर्व राजनीति क्षेत्र में वर्षों से महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानने 
वाले राजनीतिज्ञों में से एक मंत्राणी महोदया ने संविधान संशोधन की तर्ज पर ही 
चाँटे सम्बन्धी सिद्धान्त में आमूल चूल परिवर्तन करके महिलाओं को यह सलाह दे डाली 
कि यदि तुम्हारे पति परमेश्वर तुम्हें एक चाँटा मारें तो तुम भी उन्हें दो मारो। 
गनीमत है कि यह सुझाव केवल निजी क्षेत्र की महिलाओँ को ही दिया गया है यदि इसे 
सार्वजनिक क्षेत्र में भी सम्मिलित किया जाता तो सूरत कुछ और ही होगी।
 
 मंत्राणी महोदया की सलाह पर अमल करने वाली एक महिला ने जब अपने पति से एक चाँटा 
खाने के बाद उसके दोनों गालों पर जब दो चाँटे मारे तो पति के मुँह में भरी पान की 
पीक उस पतिव्रता के मुख मण्डल को रक्तिम कर गई तब उस महिला ने अपने पति से ये माँग 
की कि वह उसके लिए भी पान खरीदकर लाए फिर उसे चाँटा मारे।
 
 इस देश में यहाँ की जनता प्रतिदिन महँगाई, बेरोज़गारी, गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, 
बीमारी, अफसरवाद, रिश्वतखोरी, राजनीति रूपी अनेकों चाँटे खा रही है। खेद है उसके 
पास मात्र मताधिकार का ही एकमात्र चाँटा है लेकिन यह सत्य है कि इतने चाँटे खाने के 
बाद जब उसका यह चाँटा पड़ता है तो वो वाकई असली चाँटा होता है।
 |