इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
अश्विनी कुमार विष्णु,
शादाब जफर शादाब, डॉ. विजय शिंदे, अभिषेक जैन और रजनीश कुमार
गौड़ की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा त्यौहारों के
अवसर पर अतिथि सत्कार और शाम की चाय के
लिये प्रस्तुत हैं
तरह तरह के नमकीन
व्यंजन। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
बोतलों से बनी कंदीलें। |
सुनो कहानी-
छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
उड़ने वाला कालीन।
|
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-३० का विषय है- शहर-में
दीपावली रचना भेजने की अंतिम तिथि है- २५ अक्तूबर,
विस्तार से यहाँ देखें।
|
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत-
इस
सप्ताह प्रस्तुत है ९ फरवरी
२००६ को प्रकाशित प्रत्यक्षा की
कहानी— पिकनिक।
|
वर्ग पहेली-१५६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
लिखें
/
पढ़ें |
|
साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
|
कालजयी
कहानियों स्तंभ गौरवगाथा में
किशोरी रमण शर्मा की कहानी
अंतिम पड़ाव
रामदयाल अपने पीछे अठहत्तर साल
छोड़ आये हैं। छः फीट लम्बे रामदयाल अब कुछ झुककर चलते हैं।
चेहरे पर कुछ झुर्रियाँ पड़ गई हैं और गले की चमड़ी झूल गई है।
सीधे-सादे सपाट व्यक्ति हैं। सामान्य से वस्त्रों में ही घर से
बाजार या आसपास के पड़ोसियों से मिलने-जुलने के लिए निकल पड़ते
हैं। अक्सर उनके साथ उनकी पत्नी भी होती हैं। वह लम्बी,
गौरवर्ण की और स्लिम। सत्तर पार करने के बाद भी पूरी तरह शौकीन
हैं। रामदयाल के रंग-ढंग से कुछ विपरीत। घर में भी ठीक-ठाक ही
रहती हैं। किन्तु यदि घर से बाहर जाना होता है तो बाल ठीक करती
हैं, मुखमण्डल पर क्रीम, पाउडर तथा होठों पर हल्की लिपिस्टिक
अवश्य लगाती हैं। कानों में टाप्स न पहनकर लम्बा झुमका या लटकन
पहनती हैं और कलाइयों में पतली-पतली सोने की चूड़ियाँ, तन पर
ब्लाउज और साड़ी मैचिंग। साड़ी कुछ-कुछ जमीन को छूती होती है।
उनके पाँवों की खूबसूरत चप्पलें साड़ी की कोर से लुकाछिपी खेला
करती हैं। वह कश्मीरी हैं। काश्मीर का पूरा सौन्दर्य उनमें
दृष्टिगोचर होता है। किन्तु उनका प्रौढ़ और प्रौढ़ोत्तर काल का
अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर में
व्यतीत हुआ है।
आगे-
*
शरद तैलंग का व्यंग्य
चाँटा परंपरा
*
उमाशंकर तिवारी का रचना प्रसंग
नवगीत पाँचवें दशक से सातवें दशक तक
*
सुप्रिया का आलेख
शरद ऋतु वस्तुतः पर्वों की ऋतु
*
पुनर्पाठ में- महेश दर्पण का संस्मरण
एक कथा अर्धशती को नमन |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले
सप्ताह- विजयदशमी के अवसर पर |
१
अशोक गौतम का व्यंग्य
सुनो हे परेशान हनुमान
*
पर्यटन के अंतर्गत जानें
छत्तीसगढ़ में राम के वनवास स्थल
*
गुणवंत शाह का दृष्टिकोण
जटायु का व्यक्तित्व
*
पुनर्पाठ में- डॉ विद्यानिवास मिश्र
का आलेख-
विजयोत्सव
* कालजयी
कहानियों स्तंभ गौरवगाथा में
प्रेमचंद की कहानी
राजहठ
दशहरे के दिन थे, अचलगढ़ में उत्सव की तैयारियाँ हो रही थीं।
दरबारे आम में राज्य के मंत्रियों के स्थान पर अप्सराएँ
शोभायमान थीं। धर्मशालाओं और सरायों में घोड़े हिनहिना रहे थे।
रियासत के नौकर, क्या छोटे, क्या बड़े, रसद पहुँचाने के बहाने
से दरबारे आम में जमे रहते थे। किसी तरह हटाये न हटते थे।
दरबारे खास में पंडित, पुजारी और महन्त लोग आसन जमाए पाठ करते
हुए नजर आते थे। वहाँ किसी राज्य के कर्मचारी की शकल न दिखायी
देती थी। घी और पूजा की सामग्री न होने के कारण सुबह की पूजा
शाम को होती थी। रसद न मिलने की वजह से पंडित लोग हवन के घी और
मेवों के भोग को अग्निकुंड में डालते थे। दरबारे आम में
अंग्रेजी प्रबन्ध था और दरबारे खास में राज्य का।
1
राजा देवमल बड़े हौसलेमन्द रईस थे। इस वार्षिक आनन्दोत्सव में
वह जी खोलकर रुपया खर्च करते। जब अकाल पड़ा, राज्य के आधे लोग
भूखों तड़पकर मर गए। बुखार, हैजा और प्लेग में हजारों लोग हर
साल मृत्यु का ग्रास बन जाते थे।
आगे- |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|