अबकी बार फिर राम- रावण युद्ध
हुआ। पर प्रारब्ध द्वारा लिखे को कौन टाल सकता है? सो युद्ध करते करते लक्ष्मण
मूर्छित हो गए। हालाँकि अबके उन्होंने सोचा था कि अबकी बार चाहे कुछ भी हो जाए वे
रणभूमि में मूर्छित नहीं होंगे। बार बार मूर्छित हो भाई को परेशान करना ठीक नहीं।
पर प्रारब्ध के आगे कौन टिका जो वे टिक पाते! और मूर्छित हो ही गए।
उनके मूर्छित होने की खबर जैसे ही राम ने सुनी तो वे बहुत दुखी हुए। उन्हें आभास सा
हुआ कि युद्ध का अब अंत हो ही गया। अबके रावण की विजय निश्चित है। चलो, कोई बात
नहीं! ये आवश्यक नहीं कि हर बार राम की ही विजय हो! खासकर कलियुग में!
ज्यों ही युद्ध करते करते लक्ष्मण मूर्छित हुए तो उन्हें राम के शिविर में उठाकर
लाया गया। युद्ध भूमि के साथ ही सौभाग्य से एक सरकारी एमबीबीएस एमडी डॉक्टर का
प्राइवेट क्लिनिक था। हनुमान ने उन्हें शिविर से उठाया और उस सरकारी कम प्राइवेट
डॉक्टर के क्लिनिक में ले गए। हनुमान ने सोचा कि अबके फिर डॉक्टर उसे संजीवनी लाने
को कहेंगे ही सो उसने डॉक्टर के चेक करने से पहले ही हिमालय की ओर प्रस्थान करने की
पूरी तैयारी कर ली। पर डॉक्टर ने लक्ष्मण को चेक करने से पहले काउंटर पर पाँच सौ
जमा कराने को कहा तो हनुमान से रहा न गया सो पूछ बैठा, 'हे बैद्यराज! ये पाँच सौ
किस काम के? देखते नहीं ये प्रभु राम के भ्राता हैं। मूल्यों की रक्षा के लिए युद्ध
कर रहे हैं।'
'हमारे लिए न कोई किसीका भाई है न बहन! हमारे लिए तो हर जीव बस एक रोगी है। पाँच सौ
का हरा नोट है। वह चाहे भगवान हो चाहे भगवान का भक्त! यहाँ तो जो भी आता है पेशेंट
ही आता है। और हमारे पास आने के बाद पेशेंट तो पेशेंट, उसका अटैंडेंट भी हमारा
प्रिय पेशेंट बन जाता है। हम हर जीव में भगवान के नहीं पेशेंट के दर्शन करते हैं।
ये हमारी फीस है। हम पेशेंट को बाद में देखते हैं पहले उसकी जेब देखते हैं।'
'और उसके बाद?' हनुमान सुन अवाक् रह गए तो डॉक्टर ने मरीज की जेब को बीच में चेक
करना छोड़ हनुमान को अपने क्लिनिक के कोने जैसे में ले जाने के बाद कहा, 'देखो! तुम
राम के जन्म जन्म के सेवक हो! बस इसीलिए तुमसे सच कहने को मन कर गया। वरना सच तो हम
अपने बाप से भी नहीं कहते! पेशेंट के अटैंडेंट से तो क्या कहेंगे! उसे तो बस हम बिल
की पेमेंट करते रहने के सिवाय और कुछ नहीं कहते। पर भैया, हमें तो राम भी वैसे ही
रावण भी वैसे ही। धंधे में क्या राम तो क्या रावण! देखो! अगर कल को युद्ध करते करते
कुंभकरण आहत हो जाएँ तो क्या हम उसका इलाज करने से मना कर देंगे? नहीं न! हमें क्या
लेना राम से तो क्या लेना रावण से। हमें तो जो लेना है पेशेंट और उसके अटेंडैंट से
लेना है। हम तो डेड बॉडी तब तक नहीं देते जब तक हिसाब किताब पूरा न हो जाए। भैया!
हमारा बिल चुका जाओ और अपनी डेड बॉडी ले जाओ। वरना बिल तो बढ़ता रहेगा।
जिंदगी की आस में उसे अपना घर बार बेच कर भी बिना एक पैसा कम किए अपने पेशेंट के
लिए हमें देना है। आज बंदा दस रूपए की घिया लेते हुए भी दो रूपए बिन कहे छुड़ा ही
लेता है पर क्या मजाल जो हमसे पैसा भी कम करवा जाए?
सतियुगी जीव हो, सो तुम्हें अँधेरे में रखना मैं नहीं चाहता! जबकि आज इस प्रोफेशन
में हर डॉक्टर मरीज के अभिभावक को अँधेरे में ही अधिकतर रखता है। ताकि उसका काम
चलता रहे! वकील की तरह! बस एकबार जो केस लेकर वकील के पास चला गया और मरीज को लेकर
अस्पताल आ गया तो समझो हर जन्म में भी बंदा वकील और डॉक्टर के पास ही पैदा हो! उसके
बाद आगे का काम होता है! हमारे इलाज के बाद अगर पेशेंट की किस्मत में जीना लिखा हो
तो बच जाता है। वैसे भगवान तो हम हैं नहीं। अरे हनुमान! सच पूछो तो हम सही मायने
में डॉक्टर भी नहीं। बस खींच खाँचकर बन गए तो बन गए।
किसीने नकल मारकर पेपर पास कर लिया तो किसीने पेपर मारकर! कसम की परवाह किसे? जहाँ
से दवाई में अधिक कमीशन हो पेशेंट के लिए उसे लिख देते हैं। उसे खाकर पेशेंट जिए या
मरे उसकी तकदीर! आज के पेशेंट दवाइयों के आसरे नहीं किस्मत के आसरे ही अधिक जी रहे
हैं। मूर्ख जनता हमें भगवान समझती हो तो समझती रहे। इसलिए अगर पेशेंट की तकदीर से
सलामती चाहते हो तो पहले फीस जमा कराओ और उसके बाद टोकन ले सामने के बैंच पर आराम
से बैठ जाओ! इसके बाद तुम्हें देख लूँगा। बस, तुम्हारे लिए इतना ही कर सकता हूँ। कह
डॉक्टर हनुमान को समझाने के बाद भले चंगे को बीमार करने के लिए अपनी सीट पर बैठ
दवाइयाँ लिखने को हुआ तो हनुमान ने दोनों हाथ जोड़ पूछा, 'पर डॉक्टर साहब! इनकी
मूर्छा तो हर युद्ध में मूर्छित होने के बाद संजीवनी से ही टूटती है। हिमालय पर तो
अब संजीवनी रही नहीं, बाबा लोग सब बेच गए! बस, इतना बता दो कि किस कंपनी की संजीवनी
असली है, तो मैं सूरज निकलने से पहले उसे ले आऊँ ताकि युद्ध का अंत पहले जैसा हो!'
'हे हनुमान! यह तो हमें भी नहीं मालूम कि कौन सी दवाई असली है और कौन सी नकली!!
दवाई बनाने वाली कंपनी भी आज यह नहीं जानती कि वह क्या बना रही है। बस, बना रही है
तो बना रही है। वे जो कुछ बना रहे हैं, हम पेशेंट को खिला रहे हैं। दवाई के ऊपर
लेबल कुछ और होता है तो उसके अंदर दवाई कुछ और! ऊपर से कंपनियों के लालच! यहाँ माया
से मुक्त कौन है? कहो तो बड़े अस्पताल लक्ष्मण को रैफर कर देता हूँ?'
'तो युद्ध के अंत का क्या होगा?' हनुमान अति चिंतित तो डॉक्टर साहब एक पर्ची पर कुछ
लिख उसे पर्ची थमाते बोले,'ये दूध के साथ सुबह शाम लेते रहना। टेंशन चली जाएगी। रही
बात युद्ध के अंत की, सो हे हनुमान! तुम लोगों ने इन बंदरों को बेकार में परेशान
करके रखा है, अब तो इन्हें चैन से जीने दो! क्योंकि आज यहाँ का हर दूसरा आदमी रावण
की पार्टी का सक्रिय सदस्य है। |