इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
शचीन्द्र भटनागर, राणा प्रताप सिंह, अम्बिका दत्त, कुमार गौरव
अजीतेन्दु और पुष्यमित्र की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड
के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है-
ब्रेड रोल। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
पुराने बर्तनों का रूपाकार। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
जन्मदिन मीता का ।
|
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
प्रकाशित चुनी हुई रचनाओं का संकलन जल्दी ही प्रकाशित होने
की प्रक्रिया में है। नई कार्यशाला की घोषणा में अभी कुछ समय
और... |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- इस
सप्ताह प्रस्तुत है ९ अगस्त २००६ को प्रकाशित पुष्यमित्र की कहानी-
मुम्बई टु सतपुड़ा।
|
वर्ग पहेली-१५२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
|
समकालीन
कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी
बॉडीगार्ड
गणित में एम.एस.सी. पास भूदेव को एक अनपढ़
नोखेलाल का बॉडीगार्ड बन जाना पड़ा। भूदेव समाज में दया, प्रेम और न्याय के समीकरण
को प्रतिष्ठित होते देखना चाहता था और गणित द्वारा दिमाग ही
नहीं हृदय भी लगाकर समस्या का समाधान किया करता था। जबकि
नोखेलाल अपराध की दुनिया का एक कुख्यात व्यक्ति था। वह हिंसा,
आतंक और शोषण की खेती करता हुआ खुद एक समस्या था। समाज को
जरूरत थी भूदेव के होने की और नोखेलाल के न होने की। लेकिन
विडंबना यह थी कि नोखेलाल के होनेके लिए, उसे बचाने के लिए
भूदेव को उसका कवच बन जाना पड़ा। जबकि कवच की जरूरत सही मायने
में भूदेव को थी। उस दिन भूदेव घर लौटा था कहीं से, शायद जिला
मुख्यालय स्थित एक कॉलेज से पार्ट टाइम क्लास लेकर, तो देखा
कि उसके पिता परिवार के लोगों में लड्डू बाँट रहे
हैं और सभी लोग बड़ी प्रसन्न मुद्रा में
हैं, जैसे एक ऐतिहासिक अवसर को सेलिब्रेट कर रहे हों। माँ ने
उसे कई लड्डू एक साथ थमाते हुए कहा, 'तुम्हारे बाऊजी आज नौकरी
पक्की करके आये हैं।' वह चौंका...नौकरी क्या कोई कुँवारी
कन्या है कि बाउजी उसके ब्याह की बात तय करके चले आये! कुतूहल
की ठंडी लकीरें उसके चेहरे पर उभर आयीं।
आगे-
*
ब्रह्मदेव का व्यंग्य
चिंता में आनंद है
*
डॉ. अशोक उदयवाल का आलेख
चुकंदर स्वास्थ्य का कलंदर
*
डॉ.अँगनेलाल से कलादीर्घा में
बौद्ध धर्म में कला
*
पुनर्पाठ में- शरद आलोक का संस्मरण
जिसने लंदन को नहीं जिया
उसने जीवन को नहीं जिया |
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पिछले
सप्ताह- |
१
साधना बलवटे की लघुकथा
यमराज
कसाब संवाद
*
डॉ. उषा राय का आलेख
स्वाभिमानी
क्रान्तिकारी: प्रीतिलता वाद्देदार
*
डॉ.मोहन कुमार के साथ पर्यटन
जैन तीर्थ
मुक्तागिरि
*
पुनर्पाठ में- कलादीर्घा के अंतर्गत
राजा रवि वर्मा का
कला संसार
* समकालीन
कहानियों में भारत से
सूरज प्रकाश की कहानी
सड़ी मछली
नींद नहीं आ रही। ११:४५ हो रहे हैं। स्लीपिंग पिल्स लिये हुए
भी दो घंटे हो गए। ये रोज़ का अफसाना हो गया है। गोली खा कर भी
नींद का न आना। शायद इसी को रिटायरमेंट ब्लू कहते हैं। डॉक्टर
बता रहा था – अब आपको उतनी शारीरिक और मानसिक थकान नहीं होती
जितनी पहले नौकरी के दौरान होती थी, कामकाज से जुड़ी उतनी
चिंताएँ भी नहीं रही हैं। एकाध बरस लग जाता है चालीस बरस से
बने रूटीन के बजाए अचानक दूसरा रूटीन अपनाने में। अब यही रूटीन
का बदलना या किसी भी रूटीन का न होना मुझे खासा परेशान कर रहा
है पिछले कई महीनों से। आदमी आखिर कितनी फिल्में देखे, कितनी
किताबें पढ़े और कितना संगीत सुने। २४ घंटे बहुत होते हैं किसी
भी खाली आदमी के लिए। वह भी बरसों बरस चलने वाला सिलसिला। एक
ही तरीका था रिटायरमेंट के बाद भी खुद को बिजी रखने का कि नये
सिरे से कोई और जॉब तलाश कर लिया जाए। लेकिन वह मैं करने से
रहा। जिंदगी भर बहुत खट लिये। अब और गुलामी नहीं करनी किसी की।
आगे-
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