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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
साधना बलवटे की लघुकथा- यमराज-कसाब संवाद


चित्रगुप्त, कर्मो का लेखा-जोखा करने बैठे ही थे, कि एक युवक सलाम ठोकता हुआ आ खड़ा हुआ ।

इतनी सुबह-सुबह कौन हो भाई? प्रश्न अभी हवा में ही था कि यमराज भी आसंदी पर विराजमान हो गये! चित्रगुप्त! कौन है यह प्राणी? इस समय तो किसी आत्मा का आगमन होना नहीं था।
जनाब मैं कसाब! अजमल आमिर कसाब।
यमराज- कसाब! तुम्हारी वेटिंग तो अभी लम्बी थी। बिरयानी के चावल खत्म हो गये क्या। राजीव के हत्यारे,बेअंत का हत्यारा,अफजल गुरू और भी बहुत लोग थे,तुम लाइन तोड़ कर कैसे चले आये?जानते नहीं हिन्दुस्तान में लाइन तोड़ने का हक सिर्फ वी.आय.पी’स को है।

करोड़ों का सुरक्षा-खर्च, और स्पेशल बिरयानी विथ मुर्ग-मुस्सलम, आपको क्या लगता है, मैं कोई आम आदमी हूँ? वो तो बुरा हो ३२ रुपये रोज कमाने वाले अमीर आदमी का छः सिलिंडरों की सब्सीडी क्या खत्म हुई नजर लगा दी मेरी जिन्दगी को। तीन साल में तीस बार पेट्रोल के दाम खुद ने बढाये और लाइन तोड़ने पर मुझे मजबूर कर दिया। आप नाराज न हों जनाब मैं तो बेचारा कुर्बानी का बकरा हूँ, नहीं तो इतनों को ओवर टेक करके थोड़े ही चला आता।

यमराज- क्या बकवास करते हो कुर्बान हुये होंगे तुम अपने मुल्क के लिये, हिन्दुस्तान के लिये सिर्फ एक अपराधी हो।
कसाब- मैंने कब कहा जनाब कि मैं हिन्दुस्तान के लिये कुर्बान हुआ हूँ, मैं तो उसकी सरकार के लिये....माफ कीजिये मेरी तो जबरजस्ती कुर्बानी दी गई है।
यमराज-जबरजस्ती !

कसाब-और क्या, उधर ममता अविश्वास का बम फोड़ती इसके पहले इन्होंने मेरी फाँसी की फुलझड़ियाँ छोड़ दीं। वो बात अलग है कि इधर इनके हाथ से अमोघ अस्त्र फिसल गया और उधर ममता का बम फुस्सी निकल गया। न गुजरात के चाँद को ग्रहण लगा, न मध्यावधि चुनाव हुये । मुर्गे का जान भी गई और ईद भी नहीं मनी।

यमराज- चलो छोड़ो अब आ ही गये हो तो तुम्हारा फैसला तो करना ही पड़ेगा। आखिर इच्छा विच्छा तो पूरी करा के आये हो ना!
कसाब-सच बताऊँ जनाब मेरा अपना मुल्क भी मेरी इतनी इच्छाएँ पूरी नहीं करता जितनी हिन्दुस्तानी सरकार ने की हैं।
यमराज-इतने बेगुनाहों की जान लेने के कारण तुम्हें तो नरक में ही जाना पड़ेगा। परन्तु पाकिस्तानी यमलोक से आई अर्जी में तुम्हारे लिये स्वर्ग की सिफारिश की गई है। क्या कहते हो चित्रगुप्त?

चित्रगुप्त कुछ कहते उसके पहले ही कसाब बोल पड़ाः- मेरे यहाँ की जन्नत से तो आपके यहाँ का दोजख ही अच्छा होगा, मुझे अपने दोजख में ही जगह दे दीजिये जनाब।

१६ सितंबर २०१३

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